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Rajasthan Politics: सीएम गहलोत की OPS, मुफ्त स्वास्थ्य और सस्ते सिलेंडर पर भारी पड़ रहा पेपरलीक और वीरांगनाओं का आक्रोश - Rajasthan Politics

एक ओर सीएम गहलोत ओपीएस, मुफ्त स्वास्थ्य और सस्ते सिलेंडर मुहैया करा आगामी विधानसभा में कांग्रेस की सत्ता वापसी में लगे हैं तो वहीं दूसरी ओर पेपरलीक प्रकरण और वीरांगनाओं के आंदोलन ने उनकी समस्याएं (Political challenge of CM Ashok Gehlot) बढ़ा दी है.

Political challenge of CM Ashok Gehlot
Political challenge of CM Ashok Gehlot
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Published : Mar 8, 2023, 4:31 PM IST

सीएम गहलोत के लिए सियासी चुनौती बने पायलट और किरोड़ी मीणा

जयपुर. प्रदेश में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं. साल के आखिर में यह साफ हो जाएगा कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार इतिहास बनाते हुए रिपीट होगी या फिर भाजपा को जनता सिर माथे पर बिठाएगी. बहरहाल सीएम गहलोत अपनी जन कल्याणकारी योजनाओं के दम पर सरकार रिपीट कराने की कोशिश में जुटे हैं. जिसके तहत सीधे जनता को राहत पहुंचाने के लिए सरकारी कर्मचारियों को ओपीएस, 100 यूनिट फ्री बिजली, 500 में गैस सिलेंडर और 25 लाख तक का स्वास्थ्य बीमा की सुविधा मुहैया करा कर जनता को यह भरोसा दिलाना चाहते हैं कि कांग्रेस जनता की हितेषी है. खैर, योजनाएं तो जनता के लिए ही बनाती है, लेकिन गहलोत की जन कल्याणकारी योजनाओं पर इन दिनों पेपर लीक और अब पुलवामा के शहीदों की वीरांगनाओं का आंदोलन भारी पड़ रहा है या फिर कह सकते हैं कि ये दोनों ही मामले मौजूदा सरकार के लिए कोढ़ में खाज की तरह है.

बीते करीब डेढ़ सप्ताह से वीरांगनाओं का आंदोलन जारी है और अब इस आंदोलन के केंद्र में राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट आ गए हैं. यही कारण है कि इसमें पायलट की एंट्री से सीएम गहलोत की परेशानियां एकाएक बढ़ गई हैं और वो दबाव में आ गए हैं. दूसरी ओर जिन युवाओं की बात इस बजट में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने की है, अब वो भी नाराज हैं. साथ ही युवाओं की आवाज उठा रहे उपेन यादव का आंदोलन भी गहलोत पर भारी पड़ रहा है.

भाजपा की आपसी और जन कल्याणकारी योजनाओं के बंद होने का डर दिखा कर गहलोत जनता का साथ पा रहे हैं. लेकिन उनके सामने सचिन पायलट और भाजपा सांसद किरोड़ी लाल मीणा सबसे बड़ी चुनौती हैं. हालांकि, प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा में मुख्यमंत्री पद के लिए जबरदस्त रस्साकशी चल रही है, जिससे कहीं न कहीं सीएम गहलोत को फायदा जरूर पहुंच रहा है. इसके इतर पायलट पेपरलीक प्रकरण को उठा गाहे-बगाहे गहलोत की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं. साथ ही शहीदों की वीरांगनाओं का उनके निवास के बाहर धरने पर बैठना भी सीएम के लिए नई आफत बन गई है.

इसे भी पढ़ें - वीरांगनाओं के प्रदर्शन पर सीएम का बयान, पूछा- शहीदों के बच्चों का हक मारना उचित है क्या?

इधर, पायलट ने वीरांगनाओं के मामले में अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है. वीरांगनाओं से मुलाकात के बाद पायलट ने बयान दिया था कि सरकार को इस मामले में संवेदनशीलता दिखानी चाहिए. अगर कोई नियम संशोधित करने पड़े तो वो भी करना चाहिए. साथ ही उन्होंने वीरांगनाओं से बदसलूकी करने वाले पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई करने की भी बात कही थी.

दूसरी ओर भाजपा के राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा के अलग से उठाए मुद्दे भी गहलोत पर भारी पड़ रहे हैं. चाहे पेपरलीक का मामला हो या फिर वीरांगनाओ की लड़ाई के मुख्य किरदार बनने के रूप में. ऐसे में गहलोत को एक तरफ तो भाजपा के नेताओं की मुख्यमंत्री पद के लिए चल रही रस्साकशी का फायदा मिल रहा है. लेकिन दूसरी ओर उनकी ही पार्टी के सचिन पायलट और भाजपा के राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा उनकी रणनीति पर भारी पड़ रहे हैं.

इन दोनों नामों के साथ एक नाम उपेन यादव का भी है, जो युवाओं से जुड़े मुद्दे उठाकर मुख्यमंत्री गहलोत को गुजरात और उत्तर प्रदेश जैसे चुनाव में भी आलाकमान के सामने दुविधा में डाल चुके हैं. ऐसे में अब राजस्थान के चुनाव से पहले जिस तरह से उपेन यादव ने पेपर लीक व भर्तियों जैसे मुद्दे उठाते हुए आंदोलन चला रखा है, उससे अब वो गहलोत के लिए तीसरी सबसे बड़ी चुनौती बन गए हैं.

सीएम गहलोत के लिए सियासी चुनौती बने पायलट और किरोड़ी मीणा

जयपुर. प्रदेश में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं. साल के आखिर में यह साफ हो जाएगा कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार इतिहास बनाते हुए रिपीट होगी या फिर भाजपा को जनता सिर माथे पर बिठाएगी. बहरहाल सीएम गहलोत अपनी जन कल्याणकारी योजनाओं के दम पर सरकार रिपीट कराने की कोशिश में जुटे हैं. जिसके तहत सीधे जनता को राहत पहुंचाने के लिए सरकारी कर्मचारियों को ओपीएस, 100 यूनिट फ्री बिजली, 500 में गैस सिलेंडर और 25 लाख तक का स्वास्थ्य बीमा की सुविधा मुहैया करा कर जनता को यह भरोसा दिलाना चाहते हैं कि कांग्रेस जनता की हितेषी है. खैर, योजनाएं तो जनता के लिए ही बनाती है, लेकिन गहलोत की जन कल्याणकारी योजनाओं पर इन दिनों पेपर लीक और अब पुलवामा के शहीदों की वीरांगनाओं का आंदोलन भारी पड़ रहा है या फिर कह सकते हैं कि ये दोनों ही मामले मौजूदा सरकार के लिए कोढ़ में खाज की तरह है.

बीते करीब डेढ़ सप्ताह से वीरांगनाओं का आंदोलन जारी है और अब इस आंदोलन के केंद्र में राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट आ गए हैं. यही कारण है कि इसमें पायलट की एंट्री से सीएम गहलोत की परेशानियां एकाएक बढ़ गई हैं और वो दबाव में आ गए हैं. दूसरी ओर जिन युवाओं की बात इस बजट में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने की है, अब वो भी नाराज हैं. साथ ही युवाओं की आवाज उठा रहे उपेन यादव का आंदोलन भी गहलोत पर भारी पड़ रहा है.

भाजपा की आपसी और जन कल्याणकारी योजनाओं के बंद होने का डर दिखा कर गहलोत जनता का साथ पा रहे हैं. लेकिन उनके सामने सचिन पायलट और भाजपा सांसद किरोड़ी लाल मीणा सबसे बड़ी चुनौती हैं. हालांकि, प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा में मुख्यमंत्री पद के लिए जबरदस्त रस्साकशी चल रही है, जिससे कहीं न कहीं सीएम गहलोत को फायदा जरूर पहुंच रहा है. इसके इतर पायलट पेपरलीक प्रकरण को उठा गाहे-बगाहे गहलोत की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं. साथ ही शहीदों की वीरांगनाओं का उनके निवास के बाहर धरने पर बैठना भी सीएम के लिए नई आफत बन गई है.

इसे भी पढ़ें - वीरांगनाओं के प्रदर्शन पर सीएम का बयान, पूछा- शहीदों के बच्चों का हक मारना उचित है क्या?

इधर, पायलट ने वीरांगनाओं के मामले में अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है. वीरांगनाओं से मुलाकात के बाद पायलट ने बयान दिया था कि सरकार को इस मामले में संवेदनशीलता दिखानी चाहिए. अगर कोई नियम संशोधित करने पड़े तो वो भी करना चाहिए. साथ ही उन्होंने वीरांगनाओं से बदसलूकी करने वाले पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई करने की भी बात कही थी.

दूसरी ओर भाजपा के राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा के अलग से उठाए मुद्दे भी गहलोत पर भारी पड़ रहे हैं. चाहे पेपरलीक का मामला हो या फिर वीरांगनाओ की लड़ाई के मुख्य किरदार बनने के रूप में. ऐसे में गहलोत को एक तरफ तो भाजपा के नेताओं की मुख्यमंत्री पद के लिए चल रही रस्साकशी का फायदा मिल रहा है. लेकिन दूसरी ओर उनकी ही पार्टी के सचिन पायलट और भाजपा के राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा उनकी रणनीति पर भारी पड़ रहे हैं.

इन दोनों नामों के साथ एक नाम उपेन यादव का भी है, जो युवाओं से जुड़े मुद्दे उठाकर मुख्यमंत्री गहलोत को गुजरात और उत्तर प्रदेश जैसे चुनाव में भी आलाकमान के सामने दुविधा में डाल चुके हैं. ऐसे में अब राजस्थान के चुनाव से पहले जिस तरह से उपेन यादव ने पेपर लीक व भर्तियों जैसे मुद्दे उठाते हुए आंदोलन चला रखा है, उससे अब वो गहलोत के लिए तीसरी सबसे बड़ी चुनौती बन गए हैं.

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