जयपुर. आज से ठीक एक महीने पहले 25 सितम्बर का जो कुछ राजस्थान कांग्रेस में हुआ, वह पार्टी के इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है. इस दिन कांग्रेस आलाकमान की ओर से पर्यवेक्षक बनाकर भेजे गए मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन को विधायक दल की बैठक कर एक लाइन का प्रस्ताव लाने को भेजा गया था. हालांकि सीएम अशोक गहलोत के समर्थन में अधिकांश कांग्रेस विधायकों इस बैठक में नहीं पहुंचे और स्पीकर सीपी जोशी को अपने इस्तीफे सौंप दिए. 25 सितम्बर को खड़ा हुआ सियासी बंवडर भले ही शांत हो गया हो, लेकिन थमा नहीं है.
एक महीने बाद जब 26 अक्टूबर को मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर पदभार ग्रहण (Kharge to take oath as congress president) करेंगे, तो बीते 20 दिनों से शांत पड़ी राजस्थान कांग्रेस की राजनीति में एक बार फिर सियासी तूफान आ सकता है. प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता आने के बाद से ही मुख्यमंत्री की कुर्सी की लड़ाई शुरू हो गई थी. कुर्सी के सबसे प्रबल दावेदार माने जा रहे सचिन पायलट को पछाड़कर राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले अशोक गहलोत कुर्सी पर काबिज हुए, लेकिन उसके बाद से ही लगातार दोनों नेताओं और उनके समर्थकों में सत्ता संघर्ष जारी है.
सचिन पायलट से बढ़ी मुख्यमंत्री की कुर्सी की दूरी: साल 2020 में सचिन पायलट इसी कुर्सी के लिए पार्टी से बगावत कर दिल्ली चले गए और उनके समर्थक 18 विधायक मानेसर में डट गए. करीब एक माह के बाद आलाकमान और पायलट समर्थकों में सहमति बनी. लेकिन उस घटना के 2 साल 2 महीने बाद एक बार फिर 25 सितम्बर को प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में जो कुछ घटा, उसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी.
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प्रदेश कांग्रेस के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब पार्टी आलाकमान की ओर से आया एक लाइन का प्रस्ताव पास करवाने के लिए होने वाली विधायक दल की बैठक में विधायक नहीं पहुंचे. कांग्रेस आलाकमान को आंख दिखाते हुए गहलोत गुट के विधायकों ने अपने इस्तीफे स्पीकर सीपी जोशी को सौंप दिए. इस घटना से आलाकमान की नजर में गहलोत की विश्वसनीयता पर जरूर असर पड़ा.
इस घटना के चलते गहलोत को दिल्ली जाकर न केवल सोनिया गांधी से बल्कि सार्वजनिक रूप से माफी मांगते हुए यह कहना पड़ा कि अब वह राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर हैं. यानी सबसे बड़ा नुकसान गहलोत को हुआ. जिन्हें आलाकमान उनकी विश्वसनीयता के रिजल्ट के तौर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना चाहता था. इस घटना ने आलाकमान के प्रति गहलोत की विश्वसनीयता कमजोर कर दी.
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बताया जाता है कि विधायक दल की बैठक के बाद सचिन पायलट को राजस्थान के मुख्यमंत्री की कमान सौंपी जाती. लेकिन 25 सितंबर की रात हुई घटना से सचिन पायलट की मुख्यमंत्री पद की कुर्सी से दूरी बढ़ गई. अब यह नहीं कहा जा सकता कि पायलट को राजस्थान के मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए और कितना लंबा इंतजार करना पड़ेगा.
इस तरह से सिलसिलेवार तरीके से कांग्रेस में 25 सितम्बर की गति घटनाएं: आपको सिलसिलेवार बताते हैं कि आखिर यह सियासी बंवडर उठा कैसे? (Story of September 25th in Rajasthan Congress) कैसे इसकी पटकथा तैयार हुई? दरअसल 24 सितम्बर को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास पार्टी आलाकमान से विधायक दल की बैठक बुलाए जाने के निर्देश आए. उस समय सीएमआर में मुख्य सचेतक महेश जोशी व कई वरिष्ठ मंत्री मौजूद थे. गहलोत ने महेश जोशी को विधायक दल की बैठक बुलाने के निर्देश दिए.
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सभी विधायकों को सूचना देने के लिए कहा. अगले दिन सुबह गहलोत का जैसलमेर में तनोट माता के दर्शन करने जाने का कार्यक्रम तय था. अगले दिन 25 सितम्बर को गहलोत पीसीसी अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा व मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास के साथ जैसलमेर निकल गए. पीछे से संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल के यहां विधायकों का जमावड़ा होने लगा. बस यहीं से बुनने लगी सियासी बवंडर की पटकथा.
25 सितम्बर 2022 की पूरी कहानी
यहां सियासी बंवडर का पहला चैप्टर खत्म होता है. वहीं स्पीकर सीपी जोशी के यहां शुरू होता है दूसरा चैप्टर. जहां विधायक अपने इस्तीफे स्पीकर सीपी जोशी को सौंपते हैं. इसी बीच स्पीकर हाउस पर ही विधायक डिनर भी करते हैं. विधायकों को मनाने के लिए प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भी पहुंचते हैं. लेकिन विधायक नहीं मानते हैं. रात करीब 10:30 बजे विधायकों की बात ऑब्जर्वर तक पहुंचाने के लिए मंत्री शांति धारीवाल, मंत्री महेश जोशी, मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास व निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा सीएमआर पहुंचते हैं और करीब 90 विधायकों के साथ होने का दावा करते हुए तीन सूत्री मांगों से ऑब्जर्वर्स को अवगत करवाते हैं.
यह था गहलोत गुट के विधायकों का 3 सूत्री एजेंडा
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अब इंतजार आलाकमान के फैसले का: इस तरह से 25 सितम्बर को दोपहर 12 बजे शुरू हुआ सियासी बंवडर रात 12 बजे तक अपने चरम पर होता है. वहीं इसके परिणामस्वरूप गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष की दौड़ से बाहर हो जाते हैं. इस बंवडर की पटकथा रचने के आरोप में मंत्री शांति धारीवाल, मंत्री महेश जोशी और आरटीडीसी चैयरमेन धर्मेन्द्र राठौड़ को अनुशासनहीनता का नोटिस जारी होता है. इसके बाद शुरू होती है गहलोत और पायलट गुट के विधायकों की ओर से एक दूसरे पर बयानबाजी, जिसे रोकने के लिए कांग्रेस आलाकमान को आदेश जारी करने पड़ते हैं. वहीं इन सब के बीच पायलट के हाथ एक बार फिर सत्ता की चाबी आते-आते रह जाती है. लेकिन कहानी अभी भी खत्म नहीं हुई है. कहानी का तीसरा चैप्टर शुरू होने का अभी भी सबको इंतजार है.