जयपुर. कोरोना काल खंड में पूरे भारत में न केवल शहरी बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी आर्थिक संकट गहरा गया था. शहरों से गांव की ओर श्रमिकों का पलायन शुरू हो गया. शहरों में रोजगार नही मिला तो लाखों-लाख परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया. ऐसे में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना एक उम्मीद के रूप में सामने आई. राजस्थान देश का ऐसा राज्य बना जिसने मनरेगा के तहत सबसे ज्यादा रोजगार उपलब्ध कराए. इस योजना के तहत वर्ष 2020-21 में मनरेगा 13 से 15 लाख अतिरिक्त परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराया गया.
मनरेगा योजना ऐसे बनी संजीवनी
- योजना के तहत वर्ष 2020-21 में मनरेगा के कुल 8 लाख 85 हजार कार्य किये गए. जिसमें से 1 लाख 67 हजार सामुदायिक विकास के कार्य, जबकि 7 लाख 18 हजार के सामुदायिक विकास के कार्य लिए गए.
- वर्ष 2020-21 में 98,78000 श्रमिकों को रोजगार से संबल दिया गया.
- कोविड -19 महामारी से बचाव के लिए श्रमिकों को जागरूक करने और कार्यस्थल पर राज्य सरकार और चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की गाइड लाइन की पालना के अनुसार आवश्यक व्यवस्थाएं सुनिश्चित की गई.
- कोविड - 19 के दौरान 8,21000 नवीन जॉबकार्ड जारी कर 21 लाख के अधिक व्यक्तियों को पंजीकृत किया गया. वित्तिय वर्ष 2020 - 21 में आज तक लगभग 15 लाख अतिरिक्त परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराया गया.
- वर्ष 2020-21 कुल 6958 करोड़ हो चुका है, जिसमें श्रम मद पर 5495 करोड़, सामग्री पर 1172 करोड़ और प्रशानिक मद में 350 मरोड़ का व्यय किया जा चुका है, जिसमे केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 75 फीसदी और राज्य सरकार की हिस्सेदारी 25 फीसदी है.
- राज्य में एक गांव चार काम के तहत कुल 42468 कार्य स्वीकृत किए गए. 11615 कार्य पूर्ण किए गए, 23262 कार्य प्रगति पर हैं. इसके तहत चारागाह विकास के 10613 कार्य स्वीकृत कर 3266 कार्य पूर्ण और 6023 कार्य प्रगति पर हैं. मॉडल तालाब के 11247 कार्य स्वीकृत हुए हैं, जिसमें से 3112 कार्य पूर्ण हुए, 6820 कार्य प्रगति पर हैं. श्मशान/कब्रिस्तान विकास के 10917 कार्य स्वीकृत हुए हैं, जिसमें से 2602 कार्य पूर्ण हुए, 5489 कार्य प्रगति पर हैं. इसी प्रकार खेल मैदान विकास के 9691 कार्य स्वीकृत हुए हैं, जिनमें से 3071 कार्य पूर्ण हुए और 5129 कार्य प्रगति पर हैं.
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पलायन के दौर में मनरेगा बनी रोजगार का सहारा
इस साल मार्च में लगे लॉक डाउन से चारों ओर बड़े पैमान पर नौकरी के नुकसान के संकेत आए थे. विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र में, जहां लाखों कर्मचारी अचानक तालाबंदी के कारण बेरोजगार हो गए. लाखों की संख्या में श्रमिक शहरों से गांव की पलायन करने लगे. गांव में पहुंचे श्रमिकों को मनरेगा का सहारा मिला. न केवल श्रमिकों को बल्कि पढ़े लिखे डिग्रीधारी बेरोजगारों को भी मनरेगा के तहत काम मिला.
मई-जून में बढ़ी काम की मांग
मनरेगा के तहत काम मांगने वालों की अधिक संख्या हताशा के कारण भी रही. शहरी श्रमिकों से अधिकांश घर चले गए. उनके पास कोई काम नहीं रहा. इसलिए वे मनरेगा योजना से जुड़ गए. डेटा के विश्लेषण से पता चलता है कि मई-जून में मनरेगा के तहत काम की मांग बढ़ी. मनरेगा आयुक्त का कहना है कि लॉकडाउन के बाद जैसे ही अनलॉक हुआ, उसके तुरन्त बाद 8 लाख 21 हजार नवीन जॉबकार्ड जारी कर 21 लाख के अधिक व्यक्तियों को पंजीकृत किया गया. लगभग 13 - 15 लाख अतिरिक्त परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराया गया. वर्ष 2020-21 में मनरेगा के तहत करीब 70 लाख श्रमिकों को काम दिया गया.
100 दिन के रोजगार की गारंटी
ग्रामीण घरों में कम से कम 100 दिन की गारंटी वाला रोजगार उपलब्ध कराने के लिए 2006 में मनरेगा की शुरुआत की गई थी. ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से संचालित सबसे बड़ी योजना है. यह सामुदायिक कार्यों के माध्यम से सहभागी लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में एक कदम था. इस योजना ने ग्रामीण पलायन को रोकने में बड़ी भूमिका अदा की है. इस योजना का सबसे व्यापक असर और उनके सामने आया कोरोना काल में, जब लोगों के पास रोजगार नहीं रहा. उस वक्त मनरेगा योजना वरदान साबित हुई.