जयपुर. हेरिटेज सिटी जयपुर में किले, महल और बसावट के साथ-साथ यहां के पुराने कॉलेजों का भी महत्व है. इन्हीं में शामिल है प्रदेश का सबसे बड़ा महिला महाविद्यालय महारानी कॉलेज. जिसकी स्थापना साल 1944 में हुई थी और इसके ठीक दो साल बाद यहां लाइब्रेरी स्थापित हुई थी. जिसमें ऐसी सैकड़ों रेयर बुक्स मौजूद हैं, जो राजस्थान के एकीकरण और भारत के आजाद होने से भी पहले की हैं. जिनके न तो अब पब्लिकेशन बचे हैं और न ही ऑथर. खैर, अब इन पुस्तकों को सहेजने के लिए कॉलेज प्रशासन की पहल पर इस लाइब्रेरी को डिजिटलाइज किया जा रहा है.
लाइब्रेरी का इतिहास - 11 छात्रों और 3 शिक्षकों के साथ स्टेट पीरियड में 1 अगस्त, 1944 को महारानी कॉलेज की शुरुआत हुई थी. तब इस कॉलेज का नाम इंटरमीडिएट कॉलेज फॉर वुमन हुआ करता था. इस कॉलेज की फाउंडर प्रिंसिपल सावित्री भारतीय थीं. बाद में आजादी से ठीक 3 दिन पहले 12 अगस्त, 1947 को इस कॉलेज को वर्तमान परिसर में शुरू किया गया था और तभी इसका नाम बदलकर महारानी कॉलेज कर दिया गया. आगे चलकर साल 1962 में महारानी कॉलेज राजस्थान विश्वविद्यालय का एक प्रमुख हिस्सा बन गया.
राज परिवार के सहयोग से हुई थी शुरुआत - वहीं, इस कॉलेज की लाइब्रेरी का भी अपना एक इतिहास रहा है. साल 1946 में तत्कालीन जयपुर राज परिवार के सहयोग से कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राओं के लिए एक लाइब्रेरी की शुरुआत की गई थी. तब छात्राओं की संख्या को मद्देनजर रखते हुए किताबों को रखवाया गया था. लेकिन समय के साथ-साथ जब कॉलेज में छात्राओं की संख्या बढ़ने लगी तो यहां किताबों के लिए विश्वविद्यालय से अलग फंड भी मिलने लगा. वर्तमान में यहां करीब सवा लाख किताबें हैं.
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लाइब्रेरी में होगी लाइव ट्रैकिंग और सर्चिंग की सुविधा - कॉलेज प्राचार्य प्रोफेसर मुक्ता अग्रवाल ने बताया कि लाइब्रेरी में लगभग सवा लाख किताबें हैं. हर साल यूनिवर्सिटी से 5 लाख का फंड आता है. जिसमें नई किताबें खरीदी जाती हैं और इन किताबों के मेंटेनेंस के लिए लोकल फंड में भी छात्राओं से रीडिंग रूम फीस ली जाती है. उन्होंने बताया कि इसको अपडेट करने के लिए अब डिजिटलाइज किया जा रहा है, ताकि जो बच्चे दूरदराज के क्षेत्रों में रहते हैं और कॉलेज रोज नहीं आ पाते हैं, वो भी किताबों को लाइव ट्रैक और सर्च कर सकें.
5 से 6 माह में उपलब्ध होगी डिजिटलाइज बुक्स - प्रोफेसर अग्रवाल ने आगे बताया कि कुछ किताबों की लिमिटेड कॉपी होती हैं. ऐसी किताबों को रिजर्व करा कर ईशु कराया जा सकेगा. इसके लिए एक सॉफ्टवेयर खरीदा गया है. जिसका नाम डिजिटल लाइब्रेरी मैनेजमेंट है. इस सॉफ्टवेयर के जरिए लाइब्रेरी में मौजूद सभी किताबों को डिजिटल फॉर्म में डाला जाएगा. जिसमें किताब का नाम, ऑथर का नाम, पब्लिकेशन का नाम शामिल होगा. जिस एजेंसी को ये काम दिया गया है, उसके जरिए करीब 45 हजार किताबों को 15 से 20 दिन में डिजिटल फॉर्म में कर दिया जाएगा. कोशिश यही है कि 5 से 6 महीने में सभी किताबों को डिजिटलाइज किया जा सके.
बता दें कि महारानी कॉलेज की लाइब्रेरी में आर्ट्स, साइंस और कॉमर्स के 30 से ज्यादा विषयों की रेफरेंस और टेक्सटबुक मौजूद हैं. इसके अलावा काफी पुरानी साहित्य की किताबें भी यहां है, जो रेयर बुक्स में आती हैं. साइंस में नई किताबों पर जोर दिया जाता है, इसी तरह से इतिहास और साहित्य में पुरानी किताबों का महत्व है और इसी महत्व को समझते हुए महारानी कॉलेज की लाइब्रेरी इन किताबों को संजोए हुए आधुनिक युग के साथ बढ़ रही है.