जयपुर. नाहरगढ़ वन्य अभयारण्य इको सेंसटिव जोन (ESZ) और बफर जोन में पहले से निर्मित भवनों का पट्टा दिया जा सकेगा. इस संबंध में यूडीएच विभाग ने जयपुर विकास प्राधिकरण और दोनों निगमों को मार्गदर्शन दिया है. विभाग ने स्पष्ट किया है कि 'सर्वोच्च न्यायालय के आदेश में नए निर्माण पर प्रतिबंध है, लेकिन पहले से ही निर्मित भवन के लिए पट्टे देने पर कोई प्रतिबंध स्पष्ट रूप से अंकित नहीं किया हुआ है.' ऐसे में पुराने निर्मित मकानों का पट्टा दिया जाए.
इसके साथ ही इको सेंसटिव जोन और बफर जोन में धारा 90-ए के मामलों को छोड़ते हुए खाली भूखण्डों के पट्टे दिये जाने से पहले आवेदक से निर्माण स्वीकृति नहीं मांगे जाने का शपथ पत्र लेकर पट्टा देने के निर्देश दिए गए हैं. राजस्थान सरकार के महत्वाकांक्षी प्रशासन शहरों के संग अभियान के बीच इको सेंसेटिव जोन में बसे लोगों को पट्टे देने का रास्ता साफ हो गया है. यहां सालों से बसे लोगों को पट्टे दिए जा सकेंगे. हालांकि क्षेत्र में नए स्थाई निर्माण पर अभी भी रोक (New construction not allowed in ESZ) रहेगी. जबकि खाली भूखंड का पट्टा लेने से पहले भूखंड मालिक को एक शपथ पत्र देना होगा कि वो यहां कोई नया निर्माण नहीं करेगा. इस संबंध में जेडीए और निगम प्रशासन को यूडीएच विभाग ने मार्गदर्शन भी दे दिया है.
पढ़ें: इको सेंसेटिव जोन में बसे पुराने आशियानों को मिल सकेंगे पट्टे, नए स्थाई निर्माण पर रहेगी रोक
दरअसल, देशभर के सेंचुरीज के इको सेंसिटिव जोन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी किया (SC order regarding lease deeds in ESZ) था. इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी भी नेशनल पार्क या सेंचुरी का इको सेंसिटिव जोन कम से कम एक किलोमीटर की परिधि में होने चाहिए. जयपुर के जेडीए और हेरिटेज निगम क्षेत्र में आने वाले नाहरगढ़ अभ्यारण्य का इको सेंसिटिव जोन सेंचुरी की बाउंड्री से जीरो से 13 किलोमीटर तक है. ऐसे में नाहरगढ़ सेंचुरी के इको सेंसिटिव जोन को लेकर वन विभाग से मार्गदर्शन मांगा गया था. इस पर वन विभाग ने इको सेंसिटिव जोन का निर्धारण करने के लिए 8 मार्च, 2019 को जारी अधिसूचना के हवाले से स्थिति स्पष्ट की है.
पढ़ें: हेरिटेज निगम के 39 वार्ड नाहरगढ़ इको सेंसेटिव जोन में, यहां नहीं दिए जा सकेंगे जमीनों के पट्टे
वन विभाग के अनुसार जोन में आवासीय भू रूपांतरण जिला कलक्टर की अध्यक्षता में गठित मॉनिटरिंग कमेटी की सिफारिश पर किया जा सकता है. वहीं सेंचुरी से 1 किलोमीटर की दूरी तक या इको सेंसिटिव जोन की सीमा तक उस दायरे में नया निर्माण नहीं किया जा सकता है. लेकिन स्थानीय लोग आवासीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आवासीय निर्माण कर सकते हैं.
वहीं इको सेंसिटिव जोन के इलाकों में बसे लोगों को पट्टे देने के संबंध में वन विभाग ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार इको सेंसिटिव जोन में कोई भी नया स्थाई निर्माण नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन पहले से ही निर्मित भवन के लिए पट्टे देने पर कोई प्रतिबंध स्पष्ट रूप से अंकित नहीं किया हुआ है. ऐसे में वन विभाग से मिले मार्गदर्शन के बाद अब इको सेंसेटिव एरिया में पट्टे देने को लेकर यूडीएच विभाग ने जेडीए और निगम प्रशासन को मार्गदर्शन दिया है.
हेरिटेज निगम क्षेत्र में ये वार्ड हो रहे थे पूरी तरह प्रभावित :
- हवामहल आमेर जोन : 1, 5, 6, 7, 8, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18, 19, 20, 23, 24
- किशनपोल जोन : 55, 56, 57, 58, 59
ये वार्ड हो रहे थे आंशिक प्रभावित :
- हवामहल आमेर जोन : 2, 3, 4, 9, 21, 22, 25, 27
- सिविल लाइन जोन : 31, 32, 33, 34, 35
- किशनपोल जोन : 68, 69, 70
इको सेंसेटिव जोन के दायरे में जेडीए रीजन के 13 गांव :
- कूकस, हरवाड़, ढंड, गुणावता, लबाना, अनी, अचरोल, जैतपुरा खींची, छपरेरी, सिंघवाना, चौखलियावास, बगवाड़ा और दौलतपुरा शामिल है.