जयपुर. उपराष्ट्रपति स्वर्गीय भैरों सिंह शेखावत के पुण्यतिथि के अवसर पर आज हम आपको उनके राजनीतिक जीवन से जुड़ी कई बातो को जानने के लिए ईटीवी भारत ने वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक श्याम सुंदर शर्मा से बातचीत की. उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभवों के बारे में बताते हुए कहा कि शेखावत राजस्थान ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में भी काफी लोकप्रिय थे. शेखावत को याद करते हुए श्याम सुंदर शर्मा कहते हैं कि वे बेदाग छवि वाले नेता थे. उन्होंने खुद पर लगे आरोपों का भी डटकर सामना किया था. वे कहते हैं कि शेखावत की राजनीतिक सूझबूझ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा में आने वाले हर संकट में वाजपेयी समाधान की राह शेखावत के जरिए तलाशा करते थे. गठबंधन के लिए अक्सर विपक्षी दलों के नेताओं से शेखावत की मुलाकात किया करते थे.
वाजपेयी ने लिया शेखावत का नाम : भैरों सिंह शेखावत को पहली बार मुख्यमंत्री चुने जाने के किस्से को याद करते हुए श्याम सुंदर शर्मा बताते हैं कि जयपुर के एक निजी होटल में बैठक हो रही थी और अटल बिहारी वाजपेयी ऑब्जर्वर के रूप में आए हुए थे. इस दौरान संभावित नामों में शेखावत का जिक्र भी नहीं था. परंतु बैठक के दौरान वाजपेयी ने जब ये कहा कि मैं भी अपने मन की बात साझा करना चाहता हूं और जानना चाहता हूं कि क्या भैरों सिंह शेखावत को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है. उसके बाद हरिशंकर भाभड़ा ने वाजपेयी का समर्थन करते हुए कहा कि शेखावत के नाम पर भी विचार होना चाहिए. गौर है कि तब शेखावत विधानसभा सदस्य नहीं थे और विजय राजे सिंधिया की सिफारिश पर उन्हें मध्य प्रदेश से राज्यसभा में भेजा गया था.
बड़े भाई की जगह शेखावत : जयपुर में जनसंघ का प्रचार देख रहे लालकृष्ण आडवाणी 1952 के चुनाव से पहले बिशन सिंह शेखावत को चुनाव लड़ाने के मानस से मिलने पहुंचे थे. परंतु बिशन सिंह शेखावत ने कहा कि उनके स्थान पर उनके छोटे भाई को टिकट दे दी जाए. इस तरह से शेखावत आडवाणी के संपर्क में आए. श्याम सुंदर शर्मा बताते हैं कि नेता प्रतिपक्ष रहते हुए भैरों सिंह शेखावत ने पार्टी के अंदर लीडरशिप तैयार करने का प्रयास किया. वे सदन में डिबेट और मुद्दे रखने के लिए नेताओं को तैयार करते थे. सरकार पर आए संकट का जिक्र करते हुए श्यामसुंदर शर्मा बताते हैं कि भले ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सबके राजनीतिक संकट में खुद की भूमिका का जिक्र करते हो, पर केंद्र में मंत्री रहे भुवनेश चतुर्वेदी और परसराम मदेरणा ने ही तब राजनीतिक शुचिता को निभाया था. शर्मा बताते हैं कि आज जैसा दूषित वातावरण उस दौर में नहीं था, यहां तक कि शेखावत के जेल जाने पर हरिदेव जोशी ने उनके लिए सारे प्रबंध किए थे.