जयपुर. संभागीय आयुक्त दिनेश कुमार यादव ने कोविड 19 संक्रमित रोगियों का इलाज कर रहे चिकित्सालयों में नियुक्त नोडल अधिकारियों को अस्पताल में भर्ती मरीजों के लिए ऑक्सीजन समेत अन्य सेवाओं पर ‘राउण्ड द क्लॉक’ नजर बनाए रखने के निर्देश दिए हैं.
संभागीय आयुक्त ने जिला कलक्ट्रेट सभागार में नोडल अधिकरियों की बैठक लेते हुए ये निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि सभी नोडल अधिकारी उनके दायित्व वाले अस्पतालों में स्वयं एवं अपने स्टाफ के जरिए ‘राउण्ड द क्लॉक’ उपस्थिति बनाए रखें. किसी भी प्रकार की आकस्मिक स्थिति की सूचना मिलते ही स्वयं मौके पर पहुंचकर तथ्यों की पड़ताल करें. स्थिति के वैरिफिकेशन के बाद ही उच्चाधिकारियों से इसे शेयर कर समस्या का समाधान करें. ऑक्सीजन की उपलब्धता के लिए भी संबंधित अधिकारियों से सीधे सम्पर्क कर स्थिति का समाधान कराएं. उन्होंने कहा कि जन जागरूकता पखवाडे़ की पालना के लिए भी इंसीडेंट कमाण्डर्स की ओर से प्रवर्तन एवं अन्य प्रकार से सख्ती बरती जानी आवश्यक है. यदि किसी नोडल अधिकारी या अन्य अधिकारी को भी कहीं इसका उल्लंघन नजर आए तो पुलिस एवं इंसीडेंट कमाण्डर्स को तुरन्त सूचित करें. यादव ने नोडल ऑफीसर्स के ग्रुप पर आवश्यक जानकारी अपडेट करने के निर्देश दिए. जिससे स्थिति की जानकारी सभी को मिल सके.
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वहीं जेडीसी गौरव गोयल ने कहा कि अब शहर में कोरोना संक्रमण की स्थिति को देखते हुए अस्पतालों में बेड विद ऑक्सीजन, बेड विद वेंटीलेटर बढ़ाए जाने के प्रयास किए जाएं. इसके लिए साधन रहित अस्पताल जिन्हें पहले की परिस्थितियों में कोविड केयर अस्पताल बना दिया गया था, उन्हें कोविड केयर सेंटर बनाया जाएगा. जहां बड़ी संख्या में बेड, ऑक्सीजन एवं चिकित्सकीय संसाधन उपलब्ध कराए जा सकते हैं. उन्होंने सभी नोडल अधिकारियों को कोविड केयर अस्पताल में स्वागत कक्ष या हैल्पलाइन कक्ष पर चिकित्सा सेवाओं की निर्धारित दर चस्पा करने के निर्देश दिए. जिससे किसी से ज्यादा राशि नहीं वसूल की जा सके. साथ ही इस सम्बन्ध में मरीजों के अटेण्डेंट से पूछताछ करें और सीसीटीवी की भी सहायता ली जा सकती है. उन्होंने कहा कि यह भी कोशिश की जाए कि केवल चिकित्सकीय स्थिति के अनुसार आवश्यक मरीजों को ही अस्पताल में भर्ती किया जाए. अन्य को घर पर ही इलाज के लिए प्रेरित किया जाए. इसमें टेली मेडिसिन या फोन पर चिकित्सक से कन्सल्टेशन की व्यवस्था के प्रयास किए जाएं. हर चिकित्सालय में एक आंतरिक कमेटी भी होनी चाहिए जो मरीज की स्थिति के अनुसार भर्ती किए जाने या नहीं किए जाने के सम्बन्ध में निर्णय ले. जिससे वास्तव में क्रिटिकल मरीजों को त्वरित और बेहतर इलाज मिल सके.