जयपुर. एक मनुष्य की पहली गुरु उसकी मां होती है. आज गुरु पूर्णिमा के मौके पर ऐसी ही एक मां से रूबरू होंगे, जिन्होंने अपने बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए संघर्ष की नई इबारत लिखी. कोलकाता से जयपुर तक का सफर तय करने वाली शिवानी मंडल जो बीते 20 साल से जयपुर के कई घरों में भोजन बनाने का काम करती आ रही हैं. लेकिन बच्चों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने में कभी अपनी आर्थिक विपन्नता को आड़े नहीं आने दिया. यही वजह है कि उनसे प्रेरणा लेकर आज उनका एक बच्चा कंप्यूटर इंजीनियरिंग में है तो दूसरी मेडिकल लाइन में नर्सिंग की पढ़ाई कर रही है.
समाज में इज्जत के साथ जीने, परिवार को संबल और बच्चों को सक्षम बनाने और जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने परिवार के साथ कोलकाता से जयपुर आई शिवानी मंडल ने जीवन यापन के लिए तमाम संघर्ष किए. पढ़ी-लिखी नहीं होने की वजह से दूसरों के घरों में खाना बनाने को अपना प्रोफेशन बनाया. अपनी कहानी बयां करते हुए शिवानी ने बताया कि वो मूल रूप से कोलकाता की रहने वाली है. करीब 20 साल पहले परिवार के साथ जयपुर आई थी. पति को कोई काम नहीं मिला तो मजदूरी की. खुद भी अशिक्षित थी इसलिए गुजर- बसर करने के लिए दूसरों के घरों में जाकर भोजन बनाना शुरू किया. इसके साथ ही शिवानी के आत्मनिर्भर बनने का सफर शुरू हुआ. शिवानी ने बताया कि वो खुद पढ़-लिख नहीं सकी. लेकिन तय कर लिया था कि उनके बच्चे सोमा और संदीप ये सब नहीं करेंगे. इसलिए उन्हें पढ़ाई के प्रति प्रेरित किया. दोनों को नजदीक के ही अच्छे स्कूलों में दाखिला दिलवाया. इसके साथ ही जवाहर नगर कच्ची बस्ती में अपना आशियाना सजाया.
वहीं शिवानी की बेटी सोमा मंडल ने बताया कि वो कभी गलत रास्ते पर ना भटके इसलिए पांचवीं कक्षा से ही घर के नजदीक एक क्लिनिक में उन्हें भेजना शुरू कर दिया था. इसलिए उसका मेडिकल लाइन में जाने का मन भी बन गया. उसकी मां ने भी सोमा को इसी लाइन में आगे बढ़ने की सलाह दी है. आज वो नर्सिंग की पढ़ाई कर रही है. जबकि उसका भाई संदीप एक अच्छे कॉलेज से कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है. उन्होंने अपनी मां को ही अपना गुरु और अपनी प्रेरणा बताया.
पढ़ें जीवन में गुरु की महत्ता को दर्शाने वाली गुरु पूर्णिमा है आज, इस दिन गुरु पूजन का है विशेष महत्व
ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान शिवानी और सोमा दोनों भावुक हो गई. ऐसे में शिवानी मंडल जिन घरों में भोजन बनाती है, उन्हीं में से एक बबीता मदान से बातचीत की. उन्होंने बताया कि पहले शिवानी के सास उनके घर में भोजन बनाती थी. उन्हीं की जगह शिवानी ने ली है. उस वक्त उनके दोनों बच्चे छोटे-छोटे थे. लेकिन उनको आगे बढ़ाने के लिए शिवानी में तभी से एक ललक थी. वो हमेशा उनके भविष्य की चिंता करते हुए कहां से एजुकेशन ली जाए, किस क्षेत्र में आगे बढ़ाया जाए, इस संबंध में पूछती रहती थी. इसी का नतीजा है कि आज दोनों बच्चे अपने पैरों पर खड़े होने की दिशा में अग्रसर हैं.
आखिर में शिवानी ने बताया कि कोई काम छोटा नहीं होता है. आज भी वो लोगों के घरों में जाकर भोजन बनाने का काम करती है. जिससे घर चलाने जितनी आमदनी हो जाती है. घर के सभी सदस्य मिलकर कमाते हुए बूंद बूंद से घड़ा भर रहे हैं. बहरहाल, आज के जमाने में जब लोग विपरीत परिस्थितियों में हार मान कर बैठ जाते हैं उस दौर में शिवानी मंडल के सफर की कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं है.