जयपुर. आयुर्वेद के 2000 साल के इतिहास से लेकर हकीम लुकमान के यूनानी नुस्खे या फिर हर दिल अज़ीज़ मिठाई, जलसे और जज्बात के शहर जयपुर में जवाहरात की शौहरत के बीच सोने-चांदी के वर्क को इस काम को भला कौन नहीं जानता है?. जयपुर शहर की चांदी की टकसाल(silver coating in Pannigaran area Jaipur) इलाके में पन्नीगरान मोहल्ले में होने वाले चांदी सोने के वर्क के काम को लोग गुणवत्ता के लिहाज से सालों से आजमाते आए हैं. जयपुर में बने सोने चांदी के इस वर्क की डिमांड (gold and silver coating work in Jaipur) पूरे भारत के साथ-साथ विदेशों में भी है. मंदिर की सजावट के साथ-साथ खाने की चीजों और आयुर्वेदिक देसी दवाइयों में इनका इस्तेमाल सालों से भरोसे को कायम रखे हुए हैं.
कारीगरों को करनी पड़ती है घंटों मेहनतः सोने चांदी के वर्क को तैयार करने के लिए कारीगर को घंटों मेहनत (artisans work hard for gold and silver coating) करनी पड़ती है, तब जाकर यह बाजार में पहुंचने के लिए तैयार हो पाता है. एक चांदी के वर्क को तैयार करने के लिए करीब 3 घंटे की कुटाई और उचित आकार देने में भी करीब 3 घंटे लगते हैं. इस प्रकार से 10 ग्राम चांदी से करीब 150 वर्क तैयार किए जा सकते हैं. चांदी के वर्क की अपेक्षा में सोने के वर्क में ज्यादा मेहनत करनी होती है. चांदी की अपेक्षा सोना महंगा और थोड़ा मजबूत होता है. इस लिहाज से उसकी कुटाई में और वक्त लगता है.
सोने के वर्क को तैयार करने के लिए करीब 6 घंटे कुटाई में लग जाते हैं. साथ ही करीब 3 घंटे उसे आकार देने की प्रक्रिया पूरी करने में लग जाते हैं. सोने और चांदी के वर्क में आकार देने का काम खास तौर पर महिलाओं को दिया जाता है. वहीं कुटाई का काम पुरुष करते हैं. इस तरह से 10 ग्राम सोने से तैयार होने वाले 150 वर्क में 8 से 9 घंटे का समय लगता है.
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इस तरह होता है वर्क का इस्तेमालः यह बात जगजाहिर है कि सोने और चांदी के वर्क को आमतौर पर मिठाइयों में काम लिया जाता है. लेकिन इनका इस्तेमाल कहीं ज्यादा औषधि निर्माण में भी होता है. चांदी की तासीर चूंकि ठंडी होती है इसलिए शरीर को ठंडक देने वाली दवाइयों में चांदी के वर्क को इस्तेमाल किया जाता है. उसी तरह से सोने की तासीर गर्म होती है. इस लिहाज से खास तौर पर प्रतिरक्षा वाली दवाइयों और सर्दियों के मौसम में सोने के वर्क को उपयोग में लाया जाता है. फिर चाहे बात च्यवनप्राश की हो या फिर सोने चांदी के वर्क से तैयार होने वाली भस्म की. हर जगह बेहतर सेहत के लिए इसका उपयोग किया जाता है.
हाथ से बने वर्क को लोग ज्यादा महत्व देते हैंः वर्क तैयार करने वाले कारीगरों की एसोसिएशन के अध्यक्ष बरकत अली बताते हैं कि अगर जोड़ों के दर्द या फिर शरीर में ज्यादा परेशानी है, तो सोने की भस्म कारगर साबित होती है. जिसे आमतौर पर खाने में मिलाकर शरीर में ग्रहण किया जाता है. उन्होंने बताया कि किसी दौर में उनके वर्क की कुटाई के तरीके को लेकर सवाल खड़े हुए थे. लेकिन FSSI मार्क ने भी जयपुर के सोने चांदी के वर्क को अपना सर्टिफिकेट दिया है, जो खुद-ब-खुद गुणवत्ता का एक बड़ा प्रमाण है. सभी तरह के गरम मसाले के तत्वों को बारीक कूटने के बाद पानी में उबाला जाता है. इसके बाद प्राप्त सत्व को ठंडा करके वर्क तैयार करने में उपयोग में लाते हैं. धातु के साथ गर्म मसाले की भाप को ठंडा करने से इस वर्क में औषधीय गुण बढ़ जाते हैं और यही वजह है कि इसे खाद्य सामग्री के रूप में इस्तेमाल करते हैं.
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वक्त के साथ कारीगरों के लिए बढ़ने लगी चुनौतियांः पन्नीगरान मोहल्ले में वर्क तैयार करने वाले कारीगरों की एसोसिएशन के अध्यक्ष बरकत अली के मुताबिक 5000 से ज्यादा लोग इस काम में जुटे हुए हैं. मशीनी दौर में चुनौती मिलने के बाद इन कारीगरों के सामने भी बड़ी चुनौती आई है. लिहाजा कुछ लोगों ने मजदूरी कम मिलने की वजह से ई-रिक्शा या फिर टेलरिंग का काम शुरू कर दिया. बरकत अली बताते हैं कि 12 से 15 घंटे काम करने के बावजूद 250 से 300 रुपए मजदूरी मिलती है जो आज के दौर में नाकाफी है. लिहाजा जरूरतों के लिहाज से लोग दूसरे कामों की ओर रुख कर रहे हैं और उनकी पुश्तैनी विरासत फिलहाल हाशिए पर जा रही है.
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बरकत अली ने मांग की है कि अगर सरकार कुटीर उद्योग की श्रेणी में से लाकर कारीगरों को लोन देकर प्रोत्साहित करे, तो इस हुनर के साथ-साथ देश की सेहत का परंपरागत तरीका बचा रह सकता है. जयपुर के इन कारीगरों की तरफ से तैयार किए गए वर्क को इन दिनों देश विदेश में भी पसंद किया जा रहा है. अब वक्त के साथ पढ़े-लिखे कारीगरों ने अपनी वेबसाइट बनाई है और विदेशों तक माल सप्लाई कर रहे हैं.