जयपुर. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 10 फरवरी को अपने इस कार्यकाल का अंतिम बजट पेश किया. सीएम ने अपने बजट के जरिए हर वर्ग को खुश करने की भी कोशिश की, बावजूद इसके प्रदेश के कर्मचारी गहलोत सरकार से नाराज हैं. उनका आरोप है कि सरकार ने अपने अंतिम बजट में भी कर्मचारियों की अनदेखी की है. ऐसे में अब वो राज्य सरकार के खिलाफ आंदोलन को मजबूर हैं. इसी कड़ी में बुधवार को प्रदेश के 8 लाख कर्मचारियों ने अपने हाथों पर काली पट्टी बांधकर नाराजगी जाहिर की. साथ ही अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी महासंघ एकीकृत की ओर से आगामी दो मार्च को प्रदेशव्यापी आंदोलन की घोषणा की गई और कहा गया कि इस दिन प्रदेशभर के कर्मचारी राजधानी जयपुर स्थित शहीद स्मारक पर एकत्रित होकर अपना विरोध व्यक्त करेंगे.
कर्मचारियों ने दिखाया था सत्ता से बाहर का रास्ता - बजट में मनमाफिक घोषणा नहीं होने से नाराज प्रदेश के कर्मचारियों ने राज्य की गहलोत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने का ऐलान कर दिया है. कर्मचारियों का यह ऐलान सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि इसी साल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है. वहीं, चुनाव से पहले कर्मचारियों की इस तरह से नाराजगी सरकार को आगे भारी पड़ सकती है. साथ ही ध्यान देने वाली बात यह है कि ये वो ही कर्मचारी हैं, जिन्होंने साल 2008 के चुनाव में सरकार को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था. हालांकि, इस बात को सीएम गहलोत ने भी कई बार स्वीकार किया है कि कर्मचारियों से संवाद नहीं होने की वजह से उनको सरकार गंवानी पड़ी थी.
2 मार्च को राज्यव्यापी आंदोलन - अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी महासंघ एकीकृत के अध्यक्ष गजेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि सरकार ने उस कर्मचारी वर्ग को इस बजट से निराश किया है, जो सरकार की बजट घोषणा को धरातल पर उतारने का काम करता है. सरकार ने बजट पूर्व कर्मचारियों से उनकी मांगों के लिए सुझाव लिए थे, लेकिन उन मांगों को पूरा नहीं किया गया. अब कर्मचारियों के सामने आंदोलन करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है. उन्होंने कहा कि इसी नाराजगी के बीच बुधवार को राज्य में सभी कर्मचारियों ने हाथों पर काली पट्टी बांधकर काम किया और अपना विरोध जताया है. इसके बाद अब दो मार्च को राज्यव्यापी आंदोलन होगा. इस दिन प्रदेशभर से कर्मचारी राजधानी जयपुर स्थित शहीद स्मारक पर एकत्रित होकर आगे के आंदोलन की रूप रेखा तय करेंगे.
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कर्मचारियों ने बढ़ाई सीएम गहलोत की चिंता - बता दें कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने पहले शासनकल में कर्मचारियों के लिए खासा सख्त रहे थे. सरकार की ओर से कर्मचारियों के लिए बनाई गई नीतियों के विरोध में बड़े आंदोलन भी हुए. आंदोलन के बीच सरकार और कर्मचारियों के बीच इस कदर नाराजगी की खाई बढ़ गई थी कि जब चुनाव हुए उस वक्त कर्मचारियों ने खुले रूप से सरकार का विरोध किया था. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कई बार अपने भाषणों में इस बात को दोहराया भी है कि पहले शासन में कर्मचारियों से संवाद नहीं करने की वजह से उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी थी. प्रदेश में अब तक की सबसे बड़ी कर्मचारियों की हड़ताल भी अशोक गहलोत के पहले शासनकाल हुई थी.
ये है कर्मचारी संगठनों की प्रमुख मांगे
- वेतन विसंगतियों को दूर करने के लिए गठित सामंत कमेटी और खेमराज कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक हो.
- चयनित वेतनमान एसीपी का लाभ 9,18 व 27 वर्ष के स्थान पर 8, 16, 24 व 32 वर्ष पर पदोन्नति पद के समान हो.
- ग्रेड पे 2400 व 2800 के लिए बनाए गए पे लेवल को समाप्त कर केंद्र के अनुरूप पे मैट्रिक्स क्रमशः 25500 से 81100 एवं 29200 से 92300 निर्धारित की जाए.
- मंत्रालयिक कर्मचारियों को सचिवालय कर्मचारियों के समान पदोन्नति लाभ दिया जाए.
- कांग्रेस के घोषणापत्र के अनुरूप संविदाकर्मियों एवं सभी अस्थायी कर्मचारियों को नियमित किया जाए.
- कर्मचारियों के लिए स्पष्ट एवं पारदर्शी स्थानांतरण नीति बनाई जाए.
- ग्रामीण भत्ता 10% स्वीकृत किया जाए.
- दो से अधिक संतान होने के कारण पदोन्नति से 5 वर्ष व 3 वर्ष वंचित किए जा चुके राज्य कर्मचारियों को उनकी पदोन्नति उपरांत मूल वरिष्ठता प्रदान की जाए.
- अर्जित अवकाश की सीमा 300 दिवस से बढ़ाकर सेवानिवृत्ति तक जोड़ने की घोषणा की जाए.