जयपुर. जिले की स्थाई लोक अदालत ने जूते-चप्पल की दुकान में ज्वलनशील पदार्थ रखे होने और इस दौरान हुई आगजनी के लिए बीमा कंपनी को जिम्मेदार मानने से इनकार कर दिया है. इसके साथ ही अदालत ने इस संबंध में 36 लाख रुपए की क्लेम याचिका को खारिज कर दिया है. लोक अदालत के अध्यक्ष अनूप कुमार सक्सेना और सदस्य दीपक चाचान व सुनीता रांका ने यह आदेश स्मार्ट शू शॉपी की संचालक अर्चना जौहरी की ओर से दायर क्लेम याचिका को खारिज करते हुए दिए.
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि फोरेंसिक जांच और सर्वेयर की रिपोर्ट में दुकान में ज्वलनशील पदार्थ हाइड्रोकार्बन रखा हुआ पाया गया है. नए जूते-चप्पल विक्रय की दुकान में यह ज्वलनशील पदार्थ रखने का कोई ठोस कारण भी सामने नहीं आया है. इसके अलावा शॉट सर्किट होने का भी कोई साक्ष्य नहीं है. ऐसे में क्लेम याचिका को स्वीकार नहीं किया जा सकता. परिवाद में कहा गया कि उसकी 22 गोदाम के पास जूते-चप्पल बेचने की दुकान है. परिवादी ने दी न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी से दुकान की बीमा पॉलिसी ली थी. वहीं 31 जनवरी, 2021 को परिवादी का पति और बेटा दुकान बंद कर घर आ रहे थे.
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इसी दौरान पड़ोसी दुकानदार ने फोन कर दुकान में आग लगने की सूचना दी. इस पर परिवादी के पति की ओर से फायर बिग्रेड और पुलिस को सूचना दी गई. फायर बिग्रेड की तीन गाड़ियों ने बडी मुश्किल से आग पर काबू पाया, लेकिन आग के चलते दुकान में रखा करीब 22.50 लाख रुपए का सामान जल गया. परिवादी ने जब बीमा कंपनी में क्लेम के लिए आवेदन किया, तो कंपनी ने यह कहते हुए क्लेम देने से इनकार कर दिया कि दुकान में शॉट सर्किट होने का कोई साक्ष्य नहीं मिला है.
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परिवाद में गुहार की गई की आगजनी में हुए नुकसान, परिवादी का व्यवसाय बाधित होने और मानसिक संताप सहित परिवाद व्यय के तौर पर उसे कुल 36 लाख रुपए दिलाए जाएं. वहीं बीमा कंपनी की ओर से कहा गया कि फोरेंसिक रिपोर्ट में जूतों के बीच ज्वलनशील पदार्थ हाइड्रोकार्बन मिला है और परिवादी ने भी इसे स्वीकार किया है. ऐसे में बिना कारण ऐसे ज्वलनशील पदार्थ को जूते-चप्पलों के बीच रखना परिवादी की खुद की लापरवाही है. इसके अलावा परिवादी ने कई गलत तथ्य भी क्लेम याचिका में पेश किए हैं. ऐसे में बीमा कंपनी क्लेम देने के लिए जिम्मेदार नहीं है. दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने क्लेम याचिका को खारिज कर दिया है.