जयपुर. राष्ट्रपति के पद पर द्रौपदी मुर्मू की ताजपोशी हो या फिर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया की वागड़ में निकाली गई पदयात्रा, भाजपा वो सभी कोशिशें कर रही है जिससे आदिवासी वोटबैंक पार्टी से जुड़ सके. लेकिन बीजेपी को इसमें सफलता नहीं मिल पा रही है. छात्र संघ चुनाव (Rajasthan Student Union election) में वागड़ के 18 कॉलेजों में बीटीपी का समर्थन देने वाले छात्र संगठन 'भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा' (Bhil Pradesh Vidyarthi Morcha) की जीत आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी साबित होगी.
दरअसल, हाल ही में हुए छात्र संघ चुनाव में वागड़ क्षेत्र में भील विद्यार्थी मोर्चा यानी बीपीवीएम प्रत्याशियों ने 18 कॉलेजों में जबरदस्त जीत दर्ज की है. यह कॉलेज जनजाति क्षेत्र यानी डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ और उदयपुर के हैं. राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो इस जीत के काफी सियासी मायने नजर आते हैं जो आने वाले विधानसभा चुनाव (Rajasthan Vidhansabha Election) की दृष्टि से न केवल सत्तारूढ़ कांग्रेस बल्कि विपक्षी दल भाजपा के लिए भी बेहद खतरनाक साबित होंगे. यह बात इसलिए कही जा सकती है क्योंकि भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा साल 2016 में ही बना है. जिसके बाद साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में इस मोर्चे के कन्वीनर रहे राजकुमार रोत विधायक बन गए. भारतीय ट्राइबल पार्टी को इस मोर्चे का पूरा समर्थन मिलता है या फिर कहें कि बीटीपी का छात्र संगठन इस मोर्चे को माना जा सकता है.
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मुर्मू की ताजपोशी और पूनिया की पदयात्रा रही बेअसर- भाजपा का पूरा फोकस अनुसूचित जाति और जनजाति के वोटरों पर है. यही कारण है की हाल ही में राष्ट्रपति चुनाव के लिए भी बीजेपी ने आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को इस पद तक पहुंचाया और इसका सियासी फायदा लेने के लिए पूरे देश भर में अलग-अलग आयोजन भी करवाएं. खुद मुर्मू जयपुर भी आई और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने मुर्मू की ताजपोशी से ठीक पहले और दौरान वागड़ क्षेत्र में पदयात्रा भी निकाली. मकसद साफ था कि आदिवासी मतदाताओं को भारतीय जनता पार्टी के साथ जोड़ा जाए, लेकिन बीजेपी का यह प्रयोग कृपया मौजूदा छात्रसंघ चुनाव परिणाम देखने के बाद तो पूरी तरह असफल साबित हो रहे हैं.
मामला वागड़ की 16 विधानसभा सीटों से जुड़ा है- प्रदेश में 200 विधानसभा सीटों में से वागड़ क्षेत्र में सीधे तौर पर 16 विधानसभा सीटें आती है. जहां पर आदिवासियों का प्रभाव है. इनमें बांसवाड़ा से गढ़ी, बागीदोरा, बांसवाड़ा, कुशालगढ़,घाटोल, डूंगरपुर की आसपुर, चौरासी, सागवाड़ा और डूंगरपुर विधानसभा सीट शामिल है. वहीं, प्रतापगढ़ की धरियावद और प्रतापगढ़ विधानसभा सीटें शामिल है. इसी तरह उदयपुर जिले के गोगुंदा, खैरवाड़ा, सलूंबर, जाडौल और उदयपुर ग्रामीण सीट शामिल है.
पिछले चुनाव में बीजेपी ने 2 सीटें जीतकर सबको चौंकाया था- इस क्षेत्र में पिछले विधानसभा चुनाव (Rajasthan Vidhansabha Election) के दौरान भारतीय ट्राइबल पार्टी यानी बीटीपी के बैनर पर उम्मीदवार उतारे गए थे. डूंगरपुर की 4 में से 2 सीटों पर बीटीपी को जीत भी मिली. वहीं, एक सीट पर मामूली अंतर से हार हुई थी. विधानसभा सीटें प्रदेश में सरकार को बनाने या खेल बिगाड़ने में काफी मायने रखती है. यही कारण है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों का फोकस इन सीटों पर लंबे समय से है. यही कारण है कि पिछले दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी की बांसवाड़ा में बड़ी सभा की गई थी. इसी तरह बीजेपी के भी कई बड़े नेताओं ने इन इलाकों में पिछले दिनों दौरे किए थे.
कांग्रेस की स्थिति भी खराब- भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा के प्रत्याशियों ने जिन क्षेत्रों के कॉलेजों में अपनी जीत का डंका (BPVM in Rajasthan Student Union election) बजाया है, वहां कांग्रेस के भी कई दिग्गज नेताओं का गृह जिला है. इसमें यूथ कांग्रेस अध्यक्ष गणेश घोघरा का निर्वाचन क्षेत्र डूंगरपुर जहां के पांच कॉलेजों में भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा ने जीत दर्ज की है. इसी तरह मंत्री अर्जुन बामणिया के क्षेत्र बांसवाड़ा में जिला मुख्यालय के कॉलेज में भी यह मोर्चा जीता है. वहीं कांग्रेस के दिग्गज नेता और कैबिनेट मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय के विधानसभा क्षेत्र बागीदौरा के कॉलेज में भी बीपीएम प्रत्याशी का बेहतर प्रदर्शन रहा और वो केवल 8 वोटों से ही हारी.
भाजपा को डर लेकिन नेता नहीं करते स्वीकार- इस बारे में भाजपा नेताओं के मन में डर जरूर है लेकिन उसे स्वीकार करने से भाजपा बचती है. पार्टी के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौड़ और घनश्याम तिवाड़ी अब भी यही कहते हैं कि प्रदेश में तीसरे मोर्चा के फ्रंट की कोई स्थिति नहीं बनती. राजेंद्र राठौड़ के अनुसार बीटीपी से जुड़े छात्र संगठन का आदिवासी क्षेत्रों में छात्र संघ चुनाव में बेहतर प्रदर्शन इस बात का आकलन नहीं कर सकती कि उस पार्टी की जड़े राजस्थान में गहरी हो रही है. राठौड़ ने कहा जातीयता के आधार पर राजस्थान में कोई दल आगे नहीं बढ़ता है तो हम उसे कामयाब नहीं होने देंगे. राठौड़ ने कहा कि पूर्व में जिस प्रकार का प्रदर्शन वागड़ में भाजपा का रहा था उससे और बेहतर आगामी विधानसभा चुनाव में रहेगा.
वहीं, भाजपा सांसद घनश्याम तिवाड़ी कहते हैं कि राजस्थान का इतिहास रहा है कि यहां तीसरे दल और फ्रंट की कोई गुंजाइश नहीं रही और आने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहेगा. तिवाड़ी ने कहा कि जो भी दल यहां तीसरे मोर्चे का विकल्प का दावा कर रहे हैं उनका न तो प्रदेश स्तरीय और न देश के अलग-अलग राज्यों में संगठनात्मक ढांचा है. ऐसी स्थिति में केवल छोटे-मोटे धरना प्रदर्शन और चुनाव जीतने से कोई मजबूत नहीं माना जाता.