जयपुर. वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध के रियल हीरो भैरों सिंह आज हमारे बीच नहीं हैं. लंबी बीमारी के बाद आज जोधपुर के एम्स अस्पताल में उनका निधन हो गया. राजकीय सम्मान के साथ उनके पैतृक गांव में उनका अंतिम संस्कार किया गया. जांबांज सिपाही को अंतिम विदाई देने के लिए भी बड़ी संख्या में गांव के लोग उमड़े. फौज से रिटायर होने के बाद जोधपुर के शेरगढ़ स्थित एक गांव में यह योद्धा परिवार के साथ जीवन यापन कर रहे थे. भैरों सिंह की वीरता के (Bhairon Singh Indo Pak war story) किस्से बच्चे-बच्चे की जबान पर आज भी चढ़े हैं. परिवारी जन बताते हैं कि भैरों सिंह के स्वस्थ रहने पर अक्सर लोग बैठकी के दौरान उनसे भारत पाक युद्ध के बारे में पूछते थे. 1971 के युद्ध में भारत के पराक्रम और पाक पर मिली जीत को हर साल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.
लोंगेवाला पोस्ट पर चट्टान की तरह डटे रहकर भैरों सिंह ने पाकिस्तानी सेना के कितने ही सैनिकों को वहीं ढेर कर दिया था. साथ ही कई टैंकों को ध्वस्त कर पाक सेना को खदेड़ दिया था. लोंगेवाला पोस्ट के सरताज भैरों सिंह ने 1971 के युद्ध की कहानी (Bhairon Singh on 1971 Indo Pak war) जब अपनी जुबानी सुनाई थी तब भी उनकी आंखों में देश के कुछ कर गुजरने की इच्छा और दुश्मन से दोबारा लोहा लेने का हौसला साफ दिख रहा था.
रात को ही लोंगेवाला पर हमले की मंशा थी पाक की
भारत की इस कमजोर सीमा पर हमले के साथ पाकिस्तानी सेना की मंशा थी कि रात को लोंगेवाला पोस्ट पर हमला किया जाए और सुबह का नाश्ता जैसलमेर में, दोपहर का भोजन जोधपुर में और रात का खाना दिल्ली में किया जाए. पाकिस्तानी सेना को अंदाजा नहीं था कि संख्या में भले ही इस सीमा पर सैनिक कम थे, लेकिन इनके हौसले किसी भी दुश्मन को पस्त करने के लिए भरपूर थे. इन्हीं हौसलों की बानगी थी कि टैंक और पैदल रेजिमेंट के साथ पूरे संसाधनों सहित लोंगेवाला सीमा पर पहुंची पाक सेना को उल्टे पांव लौटना पड़ा और उनके जोधपुर और दिल्ली के सपने, सपने ही रह गए.
5 और 6 दिसंबर 1971 को हुआ था युद्ध
लोंगेवाला युद्ध के नायक भैरो सिंह ने उस युद्ध के बारे में चर्चा करते हुए बताया था कि थार रेगिस्तान में लोंगेवाला की लड़ाई 5 और 6 दिसंबर 1971 को लड़ी गई थी. इस लड़ाई के दौरान 23वीं पंजाब रेजीमेंट के 120 भारतीय सिपाहियों की एक टोली ने पाकिस्तानी सेना के 3000 फौजियों के समूह को धूल चटा दी थी. भारतीय वायु सेना ने इस लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी.लड़ाई का मुख्य फोकस सीमा का पूर्वी हिस्सा था1971 की भारत-पाकिस्तान लड़ाई का मुख्य फोकस सीमा का पूर्वी हिस्सा था. पश्चिमी हिस्से की निगरानी सिर्फ इसलिए की जा रही थी ताकि पाकिस्तानी सेना इस इलाके पर कब्जा करके भारत सरकार को पूर्वी सीमा पर समझौते के लिए मजबूर ना कर दें. पाकिस्तान के ब्रिगेडियर तारिक मीर ने अपनी योजना पर विश्वास प्रकट करते हुए कहा था कि इंशाअल्लाह हम नाश्ता लोंगेवाला में करेंगे, दोपहर का खाना रामगढ़ में खाएंगे और रात का खाना जैसलमेर में होगा. यानी उनकी नजर में सारा खेल एक ही दिन में खत्म हो जाना था.
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14 बीएसएफ में तैनात थे भैरों सिंह
नायक भैरो सिंह की माने तो वह उस समय 14 बीएसएफ में तैनात थे और लोंगेवाला पोस्ट पर भारतीय सेना के साथ गाइड के लिए उन्हें अटैच किया गया था. 3 दिसंबर को मेजर चांदपुरी ने लेफ्टिनेंट धरमवीर के नेतृत्व में जवानों की टोली को बाउंड्री पिलर 638 की हिफाजत के लिए गश्त लगाने भेज दिया. ये पिलर भारत-पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर लगा हुआ था. इसी गश्त ने पाकिस्तानी सेना की मौजूदगी को सबसे पहले पहचाना था. 5 दिसंबर की सुबह लेफ्टिनेंट धरमवीर को गश्त के दौरान सीमा पर घरघराहट की आवाजें सुनाई दीं. जल्द ही इस बात की पुष्टि हो गई कि पाकिस्तानी सेना अपने टैंकों के साथ लोंगेवाला पोस्ट की तरफ बढ़ रही है.
न ज्यादा हथियार थे, न सैनिक
इसके बाद मेजर चांदपुरी ने बटालियन के मुख्यालय से संपर्क कर हथियार और फौजियों की टोली को भेजने का निवेदन किया. इस समय तक लोंगेवाला पोस्ट पर ज्यादा हथियार नहीं थे. भारतीय सिपाहियों ने हिम्मत नहीं हारी. भैरो सिंह ने बताया था कि मुख्यालय से निर्देश मिला कि वह चाहें तो अपनी पोस्ट छोड़कर पीछे हट जाएं, लेकिन कोई भारतीय वीर इसके लिए तैयार नहीं हुआ. भारतीय वीरों ने जिंदा रहने तक पाकिस्तानी सेना को आगे नहीं बढ़ने देने का मन बना लिया था. लोंगेवाला पोस्ट पर पहुंचने के बाद पाकिस्तानी टैंकों ने फायरिंग शुरू कर दी और सीमा सुरक्षा बल के 5 ऊंटों को मार गिराया. इस दौरान भारतीय फौजियों ने पाकिस्तान के दो टैंकों को उड़ाने में कामयाबी हासिल कर ली. संख्या और हथियारों में पीछे होने के बावजूद भारतीय सिपाहियों ने हिम्मत नहीं हारी.
125 जवानों ने पूरी पाक सेना को धूल चटा दी थी
युद्ध का किस्सा सुनाते हुए भैरों सिंह की आंखें नम हो गईं थी. नायक भैरो सिंह ने बताया कि इस दौरान उन्होंने एमएमजी संभाली और रात के अंधेरे में 20 से 25 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा था. इसी लड़ाई के चलते उन्हें सेना मेडल से सम्मानित भी किया गया था.
युद्ध में तनोट माता का चमत्कार
भैरो सिंह ने युद्ध का किस्सा सुनाते समय तनोट माता के चमत्कार का भी जिक्र किया था. उन्होंने बताया था कि उस लड़ाई में तनोट माता का चमत्कार ही था कि भारतीय 123 जवानों ने पाकिस्तान की पूरी ब्रिगेड और टेंक रेजिमेंट से डटकर मुकाबला कर उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया था. साथ ही ये चमत्कार ही था कि पाकिस्तानी सैनिकों की ओर से फेंके गए बम फटे ही नहीं थे.
लोंगेवाला युद्ध पर 'बॉर्डर' फिल्म
जेपी दत्ता के निर्देशन पर लोंगेवाला युद्ध पर बॉर्डर फिल्म बनाई गई थी. इस फिल्म में नायक भैरो सिंह का किरदार सुनील शेट्टी ने अदा किया था. लेकिन भैरो सिंह का कहना था कि फिल्म में उन्हें शहीद दिखाया गया था, जबकि वे वास्तव में जीवित थे. बैटल ऑफ लोंगेवाला के रीयल हीरो भैरो सिंह का भले ही अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी योगदान और वीरता के किस्से सभी के लिए मिसाल बनकर रहेंगे.