जयपुर. भारतीय नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा राजस्थान के इतिहास में विशेष महत्व रखता है. यूं तो राजस्थान का स्थापना दिवस 30 मार्च को मनाया जाता है, लेकिन असल में ज्योतिष गणना के आधार पर राजस्थान की स्थापना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, रेवती नक्षत्र व इंद्र योग में हुई थी. यही वजह है कि राजस्थान के गठन से लेकर अब तक इसमें कई रियासतें तो जुड़ी, लेकिन कभी विभाजन या टूट की नौबत नहीं आई. जबकि कई बड़े राज्यों के टुकड़े होकर दो राज्य बन चुके हैं.
आजादी के समय राजस्थान में 19 बड़ी रियासत, 3 छोटी रियासत और एक केंद्र शासित प्रदेश अजमेर-मेरवाड़ा था. जिनका विलय सात चरणों में हुआ था. हालांकि, वृहत्तर राजस्थान संघ में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर जैसी बड़ी रियासतों का विलय हुआ था. तब राजस्थान स्थापना के दिवस को लेकर भी मंथन किया गया था. उस वक्त जयपुर के ज्योतिषियों में से एक पं. नारायणात्मज मदन मोहन शर्मा (जय विनोदी पंचांग) ने मुहूर्त निकाला. जिसमें नवरात्र का पहला दिन प्रतिपदा, उस दिन रेवती नक्षत्र में इंद्र योग था.
पं नारायणात्मज ने बताया कि इस दिन यदि नए राज्य का गठन करेंगे तो स्थायी होगा. इसके टुकड़े नहीं होंगे और हुआ भी ऐसा ही. आगे जाकर राजस्थान में कई रियासत मिली, कई स्थान जुड़े, लेकिन आज तक राजस्थान के कभी टुकड़े नहीं हुए. जबकि कई राज्य उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश टूट चुके हैं.
इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि राजस्थान का एकीकरण सात चरणों में पूरा हुआ था. हालांकि, 30 मार्च 1949 को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने राजस्थान का उद्घाटन किया. तब जयपुर महाराजा सवाई मानसिंह को राज प्रमुख बनाया गया. उनके अलावा उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह को महाराज प्रमुख, जोधपुर के हनुवंत सिंह और कोटा के भीम सिंह को वरिष्ठ राजप्रमुख बनाया गया था.
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हीरालाल शास्त्री को राज्य का प्रधानमंत्री बनाते हुए उनके नेतृत्व में मंत्रिमंडल बनाया गया (उस समय मुख्यमंत्री को राज्य प्रधानमंत्री कहा जाता था) था. बाद में कई छोटी-छोटी रियासतें इससे जुड़ती चली गई और पूर्ण एकीकरण एक नवंबर, 1956 को हुआ. उन्होंने बताया कि सबसे पहले मत्स्य संघ बन चुका था. जिसमें अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली रियासतों का विलय हुआ. इसके बाद कोटा, बूंदी, प्रतापगढ़, किशनगढ़, झालावाड़, टोंक, डूंगरपुर, बांसवाड़ा और शाहपुरा का विलय होकर राजस्थान संघ बना और फिर वृहत्तर राजस्थान संघ में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर जैसी बड़ी रियासतों का विलय हुआ था.
उन्होंने बताया कि जब रियासतों का विलय हुआ तो 26 जनवरी, 1950 को भारत सरकार की ओर से राजस्थान को राज्य की मान्यता दी गई और फिर राजधानी को लेकर भी प्रश्न उठे थे. जयपुर और अजमेर के बीच कंपटीशन था. जयपुर के महाराजा ने सभी बड़ी इमारतों को सरकार को दे दी थी. ऐसे में सरकार को अपने विभाग बनाने में यहां कोई परेशानी नहीं थी. आखिर में ज्योतिषीय महत्व, पानी और सुलभता को ध्यान में रखते हुए जयपुर को राजधानी बनाया गया. बाद में बड़े शहरों को अलग-अलग विभाग बांटे गए. जिसमें जयपुर को सचिवालय, बीकानेर को शिक्षा विभाग, जोधपुर को न्याय विभाग, कोटा को वन विभाग, भरतपुर को कृषि विभाग, उदयपुर को खनिज और देवस्थान विभाग दिया गया.
राजस्थान का गठन और स्थापना ज्योतिष के आधार पर हुई थी. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर ही नवरात्रि स्थापना होती है. नव संवत्सर की शुरुआत होती है. इसी दिन राजस्थान दिवस मनाए जाने की मांग भी उठती आई है. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत इसके पीछे तर्क देते हैं कि जब रियासत का गठन देसी अंदाज में हुआ है तो फिर अंग्रेजी तारीख को क्यों मानी जाती है. वहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्रीय प्रचार प्रमुख महेंद्र सिंघल ने भी मांग उठाते हुए कहा कि भारतीय नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा राजस्थान के इतिहास से विशेष महत्व रखता है. प्रदेश की सरकारों से भी ये मांग रही है कि राजस्थान स्थापना दिवस 30 मार्च को न करके भारतीय नववर्ष के दिन किया जाए. ताकि ये सरकारी उत्सव न होकर समाज का उत्सव बने.