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खास रिपोर्ट: हमारे मिट्टी के दीयों की रोशनी और कुंभकारों के रोजगार को छीन ले गया चीन

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Published : Oct 18, 2019, 3:07 PM IST

रोशनी के महापर्व दीपावली पर जैसे-जैसे चाइनीज सामान की हमारे बाजारों में खरीद बढ़ रही है, वैसे-वैसे कुंभकारों का रोजगार प्रभावित होता जा रहा है. अब मिट्टी के दीपक कम ही बिकते हैं. क्योंकि लोग अब मिट्टी के दीपक की बजाए चाइनीज लाइटिंग से डेकोरेशन और झालरे लगाना ज्यादा पसंद करने लगे है. देखिए हमारी ये स्पेशल रिपोर्ट.

Chinese goods news, ठप कुम्हारों का रोजगार, मिट्टी के दीयों का कारोबार, दिवाली न्यूज

हनुमानगढ़: अब न मिट्टी के खिलौनों की मांग है ना भोज और दावतों में मिट्टी के कुल्हड़ का प्रचलन. दीपावली पर मिट्टी के दीये बस नाम मात्र को जलते है. वर्तमान में कुंभकारों की रोजी-रोटी का सहारा नहीं रहा. उनका चाक, चाइनीज बाजार ने कुंभकारों के रोजगार पर पहरा लगा दिया है. कुंभकार अपना रोजगार छोड़ने को मजबूर है. वे सरकार से मांग कर रहे हैं कि मिट्टी के दीपक की तरफ लोगों के रुझान के लिए कार्य करें. चाइनीज सामानों पर रोक लगाएं वरना वो दिन दूर नहीं जब मिट्टी से जुड़ी कोई भी वस्तु नजर नहीं आएगी.

खतरे में मिट्टी के दीयों का कारोबार

जैसे-जैसे आज के दौर में चाइनीज सामान ने बाजारों में रौनक बढ़ाई है. वैसे-वैसे कुंभकारों का रोजगार छिनता जा रहा है. पहले दीपावली के दो ढाई माह पहले कुंभ कारों के चेहरे पर एक अलग सी रौनक होती थी. उन्हें उम्मीद होती थी कि वह मिट्टी के दीपक बेचकर इस दिवाली को खुशियों से मनाएंगे. लेकिन अब मिट्टी के दीपक नहीं बिकते हैं. उतनी मात्रा में उतनी संख्या में मिट्टी के दीपक भी नहीं बनाए जाते क्योंकि लोग अब मिट्टी के दीपक नहीं खरीदते हैं. वे खरीदते हैं तो चाइनीज लड़ियां और दूसरे सामान.

पढ़ें: जयपुर: दिवाली में मिट्टी के दीयों का प्रयोग करने को लेकर 'दीवाली खुशियों वाली' अभियान की शुरुआत

हनुमानगढ़ के कुंभ कारों का कहना है कि धीरे-धीरे उनका रोजगार समाप्त हो रहा है. 70 फीसदी कुंभकार यह रोजगार छोड़ चुके हैं. क्योंकि उनके सामने रोजी-रोटी के लाले पड़ चुके हैं. वे सरकार से मांग करते हैं कि मिट्टी के दीपक की तरफ लोगों का रुझान बढ़े. इसके लिए कुछ योजना चलाई जाए. सामाजिक संस्थाएं कुछ ऐसे कार्यक्रम आयोजित करें जिनमें चायनीज सामानों के बहिष्कार का संदेश हो.

पढ़ें: बाड़मेर में दीपावली की तैयारियां शुरू, मिट्टी के दीपक बनाने में जुटे कारीगर

इस कला के माहिर अब बुजुर्ग ही बस चाक और आंवा से जुडे़ है. युवा वर्ग ने रोजी-रोटी के अन्य विकल्प अपना लिया है. ऐसे में यह कला अब विलुप्त होने की कगार पर आ पहुंची है. कभी हर कुम्हार परिवार सिर्फ इस व्यवसाय में लिप्त था. लेकिन समय बदला, जमाना बदला और अब स्थिति यह है कि यह व्यवसाय विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुका है. अगर इसी तरह चाइनीज सामान हमारे बाजारों में आता रहा तो मिट्टी के दीपक एक इतिहास बन जाएंगे.

हनुमानगढ़: अब न मिट्टी के खिलौनों की मांग है ना भोज और दावतों में मिट्टी के कुल्हड़ का प्रचलन. दीपावली पर मिट्टी के दीये बस नाम मात्र को जलते है. वर्तमान में कुंभकारों की रोजी-रोटी का सहारा नहीं रहा. उनका चाक, चाइनीज बाजार ने कुंभकारों के रोजगार पर पहरा लगा दिया है. कुंभकार अपना रोजगार छोड़ने को मजबूर है. वे सरकार से मांग कर रहे हैं कि मिट्टी के दीपक की तरफ लोगों के रुझान के लिए कार्य करें. चाइनीज सामानों पर रोक लगाएं वरना वो दिन दूर नहीं जब मिट्टी से जुड़ी कोई भी वस्तु नजर नहीं आएगी.

खतरे में मिट्टी के दीयों का कारोबार

जैसे-जैसे आज के दौर में चाइनीज सामान ने बाजारों में रौनक बढ़ाई है. वैसे-वैसे कुंभकारों का रोजगार छिनता जा रहा है. पहले दीपावली के दो ढाई माह पहले कुंभ कारों के चेहरे पर एक अलग सी रौनक होती थी. उन्हें उम्मीद होती थी कि वह मिट्टी के दीपक बेचकर इस दिवाली को खुशियों से मनाएंगे. लेकिन अब मिट्टी के दीपक नहीं बिकते हैं. उतनी मात्रा में उतनी संख्या में मिट्टी के दीपक भी नहीं बनाए जाते क्योंकि लोग अब मिट्टी के दीपक नहीं खरीदते हैं. वे खरीदते हैं तो चाइनीज लड़ियां और दूसरे सामान.

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हनुमानगढ़ के कुंभ कारों का कहना है कि धीरे-धीरे उनका रोजगार समाप्त हो रहा है. 70 फीसदी कुंभकार यह रोजगार छोड़ चुके हैं. क्योंकि उनके सामने रोजी-रोटी के लाले पड़ चुके हैं. वे सरकार से मांग करते हैं कि मिट्टी के दीपक की तरफ लोगों का रुझान बढ़े. इसके लिए कुछ योजना चलाई जाए. सामाजिक संस्थाएं कुछ ऐसे कार्यक्रम आयोजित करें जिनमें चायनीज सामानों के बहिष्कार का संदेश हो.

पढ़ें: बाड़मेर में दीपावली की तैयारियां शुरू, मिट्टी के दीपक बनाने में जुटे कारीगर

इस कला के माहिर अब बुजुर्ग ही बस चाक और आंवा से जुडे़ है. युवा वर्ग ने रोजी-रोटी के अन्य विकल्प अपना लिया है. ऐसे में यह कला अब विलुप्त होने की कगार पर आ पहुंची है. कभी हर कुम्हार परिवार सिर्फ इस व्यवसाय में लिप्त था. लेकिन समय बदला, जमाना बदला और अब स्थिति यह है कि यह व्यवसाय विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुका है. अगर इसी तरह चाइनीज सामान हमारे बाजारों में आता रहा तो मिट्टी के दीपक एक इतिहास बन जाएंगे.

Intro:अब न मिट्टी के खिलौनों की मांग है ना भोज एवं दावतों में मिट्टी के कुल्हड़ का प्रचलन। दीपावली पर मिट्टी के दीये बस नाम मात्र को जलते है। वर्तमान में कुंभकारों की रोजी रोटी का सहारा नहीं रहा उनका चाक, चाइनीज बाजार ने कुंभकारो के रोजगार पर पहरा लगा दिया है कुंभकार अपना रोजगार छोड़ते जा रहे हैं वे सरकार से भी मांग कर रहे हैं कि मिट्टी के दीपक की तरफ लोगों के रुझान के लिए कार्य करें


Body:जैसे-जैसे आज के दौर में चाइनीज सामान ने बाजारों में रौनक बढ़ाई है वैसे-वैसे कुंभकारों का रोजगार छिनता जा रहा है जी हां पहले दीपावली के दो ढाई माह पहले कुंभ कारों के चेहरे पर एक अलग सी रौनक होती थी उन्हें उम्मीद होती थी कि वह मिट्टी के दीपक बेचकर इस दिवाली को खुशियों से मनाएंगे लेकिन अब मिट्टी के दीपक नहीं बिकते हैं उतनी मात्रा में उतनी संख्या में मिट्टी के दीपक भी नहीं बनाए जाते क्योंकि लोग अब मिट्टी के दीपक नहीं खरीदते हैं वह खरीदते हैं तो चाइनीस लड़ियां और दूसरे सामान हनुमानगढ़ के कुंभ कारों का कहना है कि धीरे-धीरे उनका रोजगार समाप्त हो रहा है 100 में से 70% कुंभकार यह रोजगार छोड़ चुके हैं क्योंकि उनके सामने रोजी-रोटी के लाले पड़ चुके हैं वे सरकार से मांग करते हैं कि मिट्टी के दीपक की तरफ लोगों का रुझान बढ़े इसके लिए कुछ योजना चलाई कुछ ऐसे कार्यक्रम पर रोक लगाई जाए उसका बहिष्कार किया जाए उसके बाद भी उनका रोजगार थोड़ा बहुत चल सकता है

बाईट नानकराम,कुम्भकार
बाईट हरीश कुमार,कुम्भकार


Conclusion:इस कला के माहिर अब बुजुर्ग ही बस चाक और आंवा से जुडे़ है। युवा वर्ग ने रोजी-रोटी के अन्य विकल्प अपना लिया है। ऐसे में यह कला अब विलुप्त होने की कगार पर आ पहुंची है। कभी हर कुम्हार परिवार के लिए उसका क्षेत्र या गांव के अन्य वर्ग के परिवारों की संख्या काफी थी इन परिवारों को मिट्टी से बने बर्तनों की जरूरत उनसे जुड़ा कुम्हार परिवार ही करता था। अब यह कला विलुप्त होती जा रही है अगर इसी तरह चाइनीस सामान हमारे बाजारों में आता रहा तो मिट्टी के दीपक एक इतिहास बन जाएंगे


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