हनुमानगढ़. 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस (World Day Against Child Labour) मनाया जा रहा है. इसका उद्देश्य बच्चों को बाल श्रम से मुक्ति दिलाकर शिक्षा की ओर अग्रसर करना है. लेकिन हनुमानगढ़ में बचपन मुरझा रहा है. जिन मासूम हाथों में किताब-कापियां होनी चाहिए, वो हाथ भारी-भरकम रेहड़ियां खींच रहे हैं, लोगों की जूठन साफ कर रहे हैं. जिले में ये तस्वीर आम हो गई है.
भारतीय कानून के अनुसार 14 साल से कम उम्र से श्रम करवाना कानून अपराध है लेकिन देश में बाल श्रमिकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. कोरोना काल में स्थिति और गंभीर हो गई है. मां-बाप के काम छूटे तो बच्चे भी पेट पालने के लिए बाल श्रम के दलदल में फंस गए हैं. एक आंकडे़ के अनुसार बाल मजदूरों की संख्या बढ़कर 16 करोड़ हो गई है.
ईटीवी भारत ने हनुमानगढ़ में ग्राउंड पर देखा तो मुख्य मार्गों पर सब्जी, नींबू-पानी की रेहड़ियां पर बच्चे काम करते मिल गए. हनुमानगढ़ में प्रशासन की नाक के तले बच्चे चाय की दुकान और कचरा जैसे बीनने के कामों में लगे हैं. ऐसा नहीं है कि ये बच्चे हमेशा से ही रेहड़ियां लगाते थे. ये भी आम बच्चों की तरह स्कूल जाते थे लेकिन वैश्विक महामारी कोरोना ने इनकी जिंदगी की तकदीर और तस्वीर ही बदल दी है. किसी के पिता की नौकरी छूट गई तो कोई दो जून की रोटी के जुगाड़ में बाल श्रम करने को मजबूर हैं.
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मजबूरी में बाल श्रम में फंसे
ऐसे ही नींबू पानी बेचने वाला पांचवी क्लास के बच्चे से ईटीवी भारत ने बात की. बच्चे की बातों ने उसकी मजबूरी बयां कर दी. उससे कहा कि पापा का काम बंद हो गया है. क्या करूं पेट तो भरना ही है. संगरिया मार्ग पर ही 7वीं कक्षा में पढ़ने वाला एक बच्चा सब्जी की रेहड़ी पर 300 रुपये दिहाड़ी करता मिला. उसने बताया कि पिता की नौकरी छूटने के बाद उसे मजबूरी में मजदूरी करनी पड़ रही है. ऐसे ही कई बच्चों की कहानी है, जो झोकझोर देती है. बच्चे भीख मांगने और कचरा बीनने जैसे काम में लगे हैं.
प्रशासन का दावा बच्चों को बाल श्रम से करवाया जा रहा मुक्त
इस मामले में ईटीवी भारत ने हनुमानगढ़ के बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष जितेंद गोयल से बात की. जितेंद्र गोयल कहते हैं कि वे समय-समय पर बाल मजदूरी करते बच्चों को मुक्त करवाने का कार्य करते रहते हैं और बच्चों से मजदूरी करवाने वालों पर कार्रवाई भी की जाती है. साथ ही बाल श्रम से मुक्त करवाए गए बच्चों और उनके परिवारों को अपने स्तर पर जनसहयोग से राशन और अन्य जरुरत की सामग्री उपलब्ध करवाई जा रही है.
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हाल ही में बाल श्रम से मुक्त करवाये गए बच्चों के लिए बाल अधिकारिता विभाग के अधीन 'गोरा धाय ग्रुप फोस्टर केयर योजना' (सामूहिक पालन-पोषण योजना) लाई गई है. जिस पर काम अभी शुरू किया जा रहा है.
क्या कहते हैं शहर के सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता
हनुमानगढ़ में प्रशासन के साथ-साथ इन बच्चों के लिए कई समाजिक संगठन भी कार्य कर रहे हैं. ऐसे ही एक पाश समाजिक संस्था से जुड़ी शायना अरोरा कहती हैं कि बच्चों के लिए शिक्षा सबसे जरूरी है. बिना शिक्षा के हम विकासशील देश की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. हालांकि वे अपने स्तर पर बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के प्रयास करती रहती हैलेकिन इनकी तादाद इतनी है कि काफी दिक्कतें आती है. सही मायने में इनकी जिंदगी को ढर्रे पर लाने के लिए सरकार ही उचित कड़ी है. साथ ही इनका कहना है कि अगर हम नए भारत का निर्माण करना है तो बाल मजदूरी को जड़ से उखाड़ फेंकना होगा. भाजपा नेता पवन श्रीवास्तव का भी यही कहना है कि कागजी योजनाओं से परे राज्य सरकार और प्रशासन को ऐसे बच्चों के लिए धरातल पर सकरात्मक कदम उठाने चाहिए.
प्रशासन के दावे कुछ और हैं और जमीनी हकीकत कुछ और. सख्त कानून और जागरूकता के बावजूद बाल श्रम जैसा अभिशाप खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. सबसे बड़ी विडंबना ये है कि बाल श्रम करते इन बच्चों को देखकर आमजन भी विरोध नहीं जताते. इस समस्या को लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया तो देश के भविष्य की मुस्कान बचपन में ही खो जाएगी.