हनुमानगढ़. जिले में किसान पिछले 40 दिनों से लगातार धरने पर बैठे हैं. किसानों की मांग है कि पंजाब के अमृतसर से लेकर गुजरात के जामनगर तक बनने वाले एक्सप्रेसवे 754 के लिए जो जमीन अधिग्रहण की जा रही है उसके लिए उन्हें उचित मुआवजा नहीं दिया जाए.किसानों का कहना मांग है कि बाजार मूल्य से 4 गुना अधिक की कीमत का मुआवजा उन्हें दिया जाना चाहिए, लेकिन सरकार उनकी जमीन का जो मूल्य दे रही है वो उनके मुंह में जीरे के समान है और यहि कारण है कि किसान हरगिज अपनी जमीन देने को तैयार नहीं है.
पढ़ें- जयपुर : वर्षों पुरानी कोशिश लाई रंग, प्रदेश में पहली बार आया दरियाई घोड़ा
इसी सिलसिले में किसानों ने महापंचायत बुलाई और इस महापंचायत में सभी विधायकों का समर्थन भी मांगा क्योंकि उन्होंने उनका मानना है कि यह कोई राजनीति का मसला नहीं है बल्कि यह किसानों के हित का मामला है जिसमें सब को आगे आना चाहिए. लेकिन दुख की बात ये है कि इस महापंचायत में मात्र दो विधायक ही पहुंचे. एक तो संगरिया से भाजपा विधायक गुरदीप और दूसरे कम्युनिस्ट पार्टी के शहपिनी वार्ड से विधायक बलवान पूनिया. दोनों विधायकों ने इस महापंचायत को समर्थन दिया और कहा कि वे किसानों के साथ हैं. बलवान पूनिया ने कहा कि वे इस मसले को विधानसभा में पहले भी उठा चुके हैं और दोबारा उठाएंगे और जब तक किसानों के हित की बात सरकार नहीं करेगी तब तक आंदोलन में साथ रहेंगे.
खास बात ये कि जब इस महापंचायत में किसानों ने केंद्र सरकार पर किसानों के खिलाफ आरोप लगाए तो अपनी सरकार के खिलाफ भाजपा विधायक गुरदीप शहपिनी नहीं सुन सके और वे किसानों से उलझ गए. इस नाराजगी के बारे में जब भाजपा विधायक गुरदीप शहपिनी से पूछा गया तो उन्होंने कहा वह नाराज नहीं हुए थे बल्कि वह बता रहे थे कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का जो भाषण है वह आज भी यूट्यूब पर मिल जाएगा, केंद्र सरकार कभी भी किसानों के खिलाफ नहीं है और वह इस मांग को लेकर खुद सरकार से बात करेंगे.
पढ़ें- दो पक्षों के बीच हुए विवाद के बाद नियंत्रण में हालात, इंटरनेट सेवाएं बंद
अगर राज्य सरकार केंद्र सरकार को किसानों के मुआवजे के लिए लिखती है तो वे उनके समर्थन में है.हालांकि इस महापंचायत के अंदर भी किसान अभी आंदोलन के मूड में ही दिख रहे हैं क्योंकि जो निर्णय पूर्व में ले गए थे वह निर्णय यथावत है क्योंकि किसानों की मांगे जो है वह आभी तक नहीं मानी गई है और हर बार की तरह आश्वासन दिए जा रहे हैं. अब देखना होगा की कब तक इन किसानों की मांगे मानी जाती हैं और कब इनका धरना समाप्त होता है.