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अनलॉक के बाद भी हनुमानगढ़ में फूल व्यवसाय बदहाल, कारोबारियों का बुरा हाल - फूल व्यवसाय पर कोरोना का प्रभाव

लॉकडाउन में धार्मिक स्थल, मंदिरों के वार्षिकोत्सव, शादी समारोह, राजनैतिक कार्यक्रम और अन्य आयोजन बंद होने के कारण हनुमानगढ़ में फूल व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित रहा. लॉकडाउन खुलने के बाद भी इनकी स्थिति में सुधार नहीं हो पाया है. आम दिनों में जहां शहर में एक से डेढ़ क्विंटल तक फूलों की खपत होती थी. वहीं महामारी के बाद अब यह एक चौथाई भी नहीं रह गई है.

Hanumangarh news, bad affect on flower business, corona virus case
लॉकडाउन के बाद भी हनुमानगढ़ में फूल व्यवसाय बदहाल
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Published : Nov 26, 2020, 7:52 PM IST

हनुमानगढ़. हमारे भारत देश और संस्कृति में कोई भी अनुष्ठान बिना फूलों के सम्पन्न नहीं होता है. आयोजन खुशी का हो या गमी का फूलों का प्रयोग किसी न किसी रूप में अवशय ही होता है, लेकिन कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण और लॉकडाउन के चलते जहां देश-दुनिया और इंसानों से लेकर निराश्रित मूक पशु-पक्षियों तक को अपनी चपेट में लिया है. वहीं फूलों के कारोबार को जबरदस्त झटका लगा. इस बीमारी से इस कारोबार से जुड़े हर व्यक्ति की कमर तोड़ कर रख दी है. वहीं फुटकर विक्रेताओं के सामने घर चलाने की चुनौती है. किसानों और फूलों के थोक कारोबारियों को लाखों-करोड़ों का नुकसान हुआ है.

लॉकडाउन के बाद भी हनुमानगढ़ में फूल व्यवसाय बदहाल

लॉकडाउन में धार्मिक स्थल, मंदिरों के वार्षिकोत्सव, शादी समारोह, राजनैतिक कार्यक्रम और अन्य आयोजन बंद होने के कारण फूल विक्रताओं के चहेरे मुरझाए थे, वो लॉकडाउन खुलने के बाद भी खिलखिला नहीं पाए हैं. आम दिनों में जहां शहर में एक से डेढ़ क्विंटल तक फूलों की खपत होती थी. वहीं कोरोना सक्रमण के पश्चात अब चौथाई भी नहीं रह गई है. सरकार द्वारा आज भी कोरोना से बचाव के लिए, शादी, धार्मिक अनुष्ठानों और अन्य आयोजनों पर भीड़ जमा नहीं हो रहा है. इसके लिए कड़े नियम और जुर्माने का पहरा लगा रखा है. लोगबाग कोरोना से बचने के लिए स्वयं भी मंदिरों में नहीं जा रहे हैं. धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठान भी नहीं हो रहा है. इसका असर इन फूल विक्रेताओं और फूलों से जुड़े दूसरे लोगों की जिंदगी पर सीधे तौर पर पड़ा है.

यह भी पढ़ें- शर्मनाकः जब शराब के नशे में धुत सिपाही ने पैंट में कर दिया पेशाब...वायरल हो रहा वीडियो

हनुमानगढ़ जक्शन के मुख्य चौक भगतसिंह चौक पर पिछले 30 सालों से फूलमाला का काम कर रही बिमला देवी और करणी जोशी का कहना है कि पहले जैसा काम अब नहीं रहा है. दिन भर में हाथ खर्च बड़ी मुश्किल से निकलता है. ऐसे हालात में परिवार पालना भी दूभर हो रहा है. फूलों का कारोबार एक असंगठित काम है. फूलों के कारोबार से बहुत से लोग जुड़े होते हैं और इस वजह से ना सिर्फ फूल खेतिहर किसान बल्कि फूलों के आढ़ती, विवाह-शादी पार्टिंयों में फूलों की सजावट करने वाले, फूल और मालाएं और बुके-गुलदस्ता बेचने वाले, धार्मिक स्थल पर फूल-माला बेचने वाले, रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन पर गुलाब बेचने वाले, घर-घर,दुकान दुकान जाकर मालाएं बेचने वाले भी इस महामारी का शिकार होकर, अपना काम खो चुके हैं.

हलांकि 25 नवंबर से साहवे खुले हैं, लेकिन इक्का-दुक्का लोग ही कार और घरों की सजावट के लिए आ रहे हैं. साथ ही फूल कारोबारियों का कहना है कि जो फूल पहले सस्ते दामों में मिल रहे थे, अब महंगे हो गए हैं. खपत भी कम हो गई है. मजबूरन उन्हें अब महंगे दामों में बेचना पड़ रहा है, जिसके चलते खपत भी कम हो गई है. 30 रुपए की गुलाब कली अब 50 रुपए और इसी तरह खुले गुलाब के फूल 150 रुपए किलो, गुलाब के फूल की छोटी माला 50 रुपए, शादी में प्रयोग होने वाली जयमाला 1100 रुपए की दो, गेंदे की खुले फूल 100 रुपए किलो, रजनीगंधा के फूल दिल्ली से मंगवाते हैं.

फूल खेतों में ही मुरझाने लगे हैं और उनकी महक बाजारों में पहुंचने की बजाय खेतों तक ही सीमित होकर रह गई, जिससे खेतिहर किसान प्रभावित हुए हैं. वहीं दुकान-दुकान, घर-घर जाकर फूल माला बेचकर घरों और दुकानों को महकाने वाले और शादियों और अन्य समारोहों में सजावट का कार्य करने वाले, स्वयं मुरझा रहे हैं. लॉकडाउन में घर बैठे जमापूंजी खत्म हुई, कभी टैंपों पर फूल बेचने वाले, अब मोपेड़ पर 5-7 किलो फूल लाकर बेचने लगे हैं, ताकि घर खर्च चल सके.

यह भी पढ़ें- कोरोना वैक्सीनेशन की तैयारियों में जुटी राजस्थान सरकार, इन्हें लगाया जाएगा सबसे पहले टीका

सुबह-शाम फूल माला बेचने वाले बताते है कि पहले जहां 250-300 रुपए कमाते थे. अब मात्र 100-150 रुपए ही मिल पाते हैं, लेकिन क्या करे कोरोना काल के चलते बाजार बिल्कुल मंदा है. पुशतैनी काम धंधा छोड़कर, अन्य कार्य करे तो भी क्या करें. वहीं पिछले 6 वर्ष से सजावट का कार्य करने वाले मुकेश कुमार बताते हैं कि आए दिन कोरोना की बदलती गाइडलाइंस, सख्त नियम और कोरोना से लोगबाग डरे हुए हैं. इसके तहत बड़े कार्यक्रम नहीं हो रहे हैं, जिसके चलते इस कोरोना वैश्विक महामारी के चलते 50 प्रतिशत काम ही रह गया है.

हनुमानगढ़. हमारे भारत देश और संस्कृति में कोई भी अनुष्ठान बिना फूलों के सम्पन्न नहीं होता है. आयोजन खुशी का हो या गमी का फूलों का प्रयोग किसी न किसी रूप में अवशय ही होता है, लेकिन कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण और लॉकडाउन के चलते जहां देश-दुनिया और इंसानों से लेकर निराश्रित मूक पशु-पक्षियों तक को अपनी चपेट में लिया है. वहीं फूलों के कारोबार को जबरदस्त झटका लगा. इस बीमारी से इस कारोबार से जुड़े हर व्यक्ति की कमर तोड़ कर रख दी है. वहीं फुटकर विक्रेताओं के सामने घर चलाने की चुनौती है. किसानों और फूलों के थोक कारोबारियों को लाखों-करोड़ों का नुकसान हुआ है.

लॉकडाउन के बाद भी हनुमानगढ़ में फूल व्यवसाय बदहाल

लॉकडाउन में धार्मिक स्थल, मंदिरों के वार्षिकोत्सव, शादी समारोह, राजनैतिक कार्यक्रम और अन्य आयोजन बंद होने के कारण फूल विक्रताओं के चहेरे मुरझाए थे, वो लॉकडाउन खुलने के बाद भी खिलखिला नहीं पाए हैं. आम दिनों में जहां शहर में एक से डेढ़ क्विंटल तक फूलों की खपत होती थी. वहीं कोरोना सक्रमण के पश्चात अब चौथाई भी नहीं रह गई है. सरकार द्वारा आज भी कोरोना से बचाव के लिए, शादी, धार्मिक अनुष्ठानों और अन्य आयोजनों पर भीड़ जमा नहीं हो रहा है. इसके लिए कड़े नियम और जुर्माने का पहरा लगा रखा है. लोगबाग कोरोना से बचने के लिए स्वयं भी मंदिरों में नहीं जा रहे हैं. धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठान भी नहीं हो रहा है. इसका असर इन फूल विक्रेताओं और फूलों से जुड़े दूसरे लोगों की जिंदगी पर सीधे तौर पर पड़ा है.

यह भी पढ़ें- शर्मनाकः जब शराब के नशे में धुत सिपाही ने पैंट में कर दिया पेशाब...वायरल हो रहा वीडियो

हनुमानगढ़ जक्शन के मुख्य चौक भगतसिंह चौक पर पिछले 30 सालों से फूलमाला का काम कर रही बिमला देवी और करणी जोशी का कहना है कि पहले जैसा काम अब नहीं रहा है. दिन भर में हाथ खर्च बड़ी मुश्किल से निकलता है. ऐसे हालात में परिवार पालना भी दूभर हो रहा है. फूलों का कारोबार एक असंगठित काम है. फूलों के कारोबार से बहुत से लोग जुड़े होते हैं और इस वजह से ना सिर्फ फूल खेतिहर किसान बल्कि फूलों के आढ़ती, विवाह-शादी पार्टिंयों में फूलों की सजावट करने वाले, फूल और मालाएं और बुके-गुलदस्ता बेचने वाले, धार्मिक स्थल पर फूल-माला बेचने वाले, रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन पर गुलाब बेचने वाले, घर-घर,दुकान दुकान जाकर मालाएं बेचने वाले भी इस महामारी का शिकार होकर, अपना काम खो चुके हैं.

हलांकि 25 नवंबर से साहवे खुले हैं, लेकिन इक्का-दुक्का लोग ही कार और घरों की सजावट के लिए आ रहे हैं. साथ ही फूल कारोबारियों का कहना है कि जो फूल पहले सस्ते दामों में मिल रहे थे, अब महंगे हो गए हैं. खपत भी कम हो गई है. मजबूरन उन्हें अब महंगे दामों में बेचना पड़ रहा है, जिसके चलते खपत भी कम हो गई है. 30 रुपए की गुलाब कली अब 50 रुपए और इसी तरह खुले गुलाब के फूल 150 रुपए किलो, गुलाब के फूल की छोटी माला 50 रुपए, शादी में प्रयोग होने वाली जयमाला 1100 रुपए की दो, गेंदे की खुले फूल 100 रुपए किलो, रजनीगंधा के फूल दिल्ली से मंगवाते हैं.

फूल खेतों में ही मुरझाने लगे हैं और उनकी महक बाजारों में पहुंचने की बजाय खेतों तक ही सीमित होकर रह गई, जिससे खेतिहर किसान प्रभावित हुए हैं. वहीं दुकान-दुकान, घर-घर जाकर फूल माला बेचकर घरों और दुकानों को महकाने वाले और शादियों और अन्य समारोहों में सजावट का कार्य करने वाले, स्वयं मुरझा रहे हैं. लॉकडाउन में घर बैठे जमापूंजी खत्म हुई, कभी टैंपों पर फूल बेचने वाले, अब मोपेड़ पर 5-7 किलो फूल लाकर बेचने लगे हैं, ताकि घर खर्च चल सके.

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सुबह-शाम फूल माला बेचने वाले बताते है कि पहले जहां 250-300 रुपए कमाते थे. अब मात्र 100-150 रुपए ही मिल पाते हैं, लेकिन क्या करे कोरोना काल के चलते बाजार बिल्कुल मंदा है. पुशतैनी काम धंधा छोड़कर, अन्य कार्य करे तो भी क्या करें. वहीं पिछले 6 वर्ष से सजावट का कार्य करने वाले मुकेश कुमार बताते हैं कि आए दिन कोरोना की बदलती गाइडलाइंस, सख्त नियम और कोरोना से लोगबाग डरे हुए हैं. इसके तहत बड़े कार्यक्रम नहीं हो रहे हैं, जिसके चलते इस कोरोना वैश्विक महामारी के चलते 50 प्रतिशत काम ही रह गया है.

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