डूंगरपुर. आज शिक्षक दिवस है. शिक्षक दिवस पर शिक्षक के त्याग और शिक्षार्जन के कारण उनका सम्मान किया जाता है, लेकिन आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले में 75 साल पहले ही शिक्षा की क्रांति शुरू हो गई थी.
15 अगस्त 1947 से पहले पूरे भारत में आजादी की जंग चल रही थी. अंग्रेजों की गुलामी से देश को आजाद कराने के लिए भारत देश के वीर सपूतों ने अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए थे. उस दरम्यान राजस्थान के दक्षिणांचल में आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले में अंग्रेजों की गुलामी से आजादी के साथ-साथ शिक्षा की आजादी के लिए भी जंग चल रही थी. शिक्षा की आजादी के लिए अंग्रेजों और तत्कालीन रियासत से चली जंग में आदिवासी बाला काली बाई ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे.
आदिवासी इलाकों में शिक्षा की देवी के नाम से जानी जाने वाली काली बाई के जीवन और उनके बलिदान की कहानी अद्भुत और प्रेरक है. वीरबाला कालीबाई का जन्म वर्ष 1936 में डूंगरपुर जिले के रास्तापाल गांव में एक साधारण आदिवासी परिवार में हुआ था. उस समय डूंगरपुर रियासत के महारावल लक्ष्मणसिंह थे और अंग्रेजों का शासन था. इतिहास के मुताबिक अंग्रेज और तत्कालीन रियासत शिक्षा के विरोधी थे, लेकिन सेवा संघ ने शिक्षा का प्रचार प्रसार करते हुए डूंगरपुर के रास्तापाल में पाठशाला खोली जो अंग्रेजो को नागवार गुजरी.
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बलिदान की अनूठी दास्तान
19 जून 1947 को डूंगरपुर रियासत के सैनिक और अंग्रेज हथियार लेकर रास्पाताल गांव में पाठशाला को बंद कराने पंहुच गए. पाठशाला के शिक्षा देने वाले नाना भाई खांट थे और अध्यापक सेंगा भाई थे. दोनों ने पाठशाला बंद करने से मना कर दिया, जिस पर झगड़ा बढ़ गया और सेंगा भाई बंदूक की गोली लगने से मारे गये. इसके बाद अंग्रेज सैनिक नाना भाई को रस्सी से जीप के पीछे बांधकर घसीटने लगे. इस दौरान वहां खड़े किसी भी व्यक्ति की विरोध करने की हिम्मत नहीं हुई, लेकिन जीप जब कुछ दूरी पर पंहुची तो 11 वर्षीय शिष्या काली बाई भील ने अपने गुरु को बचाने के लिए घास काटने वाली दरांती से रस्सी काट दी. लोग हैरान थे कि अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत एक नन्ही सी बालिका में कैसे आई. उस समय सैनिकों ने उस नन्ही बालिका पर गोली चला दी, जिससे उसकी मौत हो गई.
आज स्कूल, कॉलेज, पार्क और पैनोरमा वीर बाला काली बाई के नाम
शिक्षा के लिए नानाभाई खांट, शिक्षक सेंगा भाई और काली बाई के बलिदान को सदियों तक याद रखा जाए, इसके लिए तत्कालीन सरकारों ने रास्तापाल गांव के सरकारी स्कूल का नाम काली बाई के नाम से कर दिया. वहीं जिला मुख्यालय पर काली बाई कन्या महाविद्यालय, तहसील के सामने काली बाई के नाम चौराहा और नाना भाई के नाम से पार्क बनाकर उनकी प्रतिमाएं स्थापित की गईं. इसके बाद गत वसुंधरा सरकार ने शहर से सटे मांडवा गांव में करोड़ों की लगत से काली बाई पैनोरमा का निर्माण कराया. इस पैनोरमा में काली बाई की जीवनी और उनके बलिदान से जुड़ी पूरी कहानी प्रदर्शनी में माध्यम से प्रदर्शित की गई है, जो आज की पीढ़ी को उनके बलिदान का पाठ पढ़ाती है.
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बलिदान से जगाई शिक्षा की ज्योत
काली बाई के बलिदान से आदिवासी अंचल डूंगरपुर में शिक्षा ऐसी ज्योत जली कि उसके उजाले में आज हजारों-लाखों आदिवासी युवा शिक्षा अर्जित कर अपना भविष्य बना रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक आज डूंगरपुर जिले में आदिवासी समाज से 10 हजार से ज्यादा शिक्षक, करीब 500 डॉक्टर, 50 से ज्यादा प्रशासनिक अधिकारी और हजारों की संख्या में अन्य विभागों में कर्मचारी कार्यरत हैं. यह कारवां लगातार बढ़ता जा रहा है.
सरकारें भी आदिवासी समाज मे शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए आदिवासी बालिकाओं को स्कूटी योजना, स्कॉलरशिप योजना चला रही हैं, जिसका फायदा भी यहां के आदिवासी विद्यार्थियों को मिल रहा है.