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Special : डूंगरपुर के दिव्यांग बना रहे हर्बल गुलाल, केमिकल रंगों के खतरे से मिलेगी निजात - डूंगरपुर के दिव्यांग बना रहे हर्बल गुलाल

हौसलों में दम हो तो आसमान भी कदमों तले होता है और मन में निःस्वार्थ सेवा का भाव हो तो ईश्वर भी उन्नति के सभी रास्ते खोल देता है. कुछ ऐसा ही जज्बा दिखा रहे हैं डूंगरपुर जिले के (Herbal Gulal Made from Gungarpur Divyang) दिव्यांग कौशल विकास केंद्र से जुड़कर 70 स्वयं सहायता समूहों के दिव्यांग जन. देखिए ये रिपोर्ट...

Disabled Skill Development Center Dungarpur
डूंगरपुर के दिव्यांग बना रहे हर्बल गुलाल
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Published : Mar 10, 2022, 7:42 PM IST

डूंगरपुर. राजस्थान में डूंगरपुर जिले के दिव्यांग कौशल केंद्र के दिव्यांग जन (Disabled Skill Development Center Dungarpur) प्रदेश में अपनी अलग पहचान बना रहे हैं. वेस्ट फूलों से हर्बल गुलाल बनाकर बाजार के खतरनाक रासायनिक गुलाल को टक्कर दे रहे हैं. वहीं, गुलाल को बेचकर खुद का आर्थिक स्तर बेहतर बनाने में जुटे हुए हैं.

नवाडेरा बस्ती में दिव्यांग कौशल विकास केंद्र दिव्यांगों के आर्थिक स्तर को बेहतर बनाने के लिए उन्हें प्रशिक्षित करने के बाद सिलाई, मीनाकारी, मसाला लघु उद्योग से जोड़ रहा है. इसी तरह अब बेकार हो रहे फूलों से हर्बल गुलाल बनाने में भी दिव्यांग जुट गए हैं. 70 स्वयं सहायता समूह इससे जुड़े हुए हैं जो जंगल से पलाश के फूलों का संग्रह करते हैं तो धार्मिक स्थलों पर चढ़ाए गए हजारों किलो फूलों को जमा कर (Herbal Making from West Flowers in Dungarpur) केंद्रों पर पहुंचाते हैं.

क्या कहते हैं केंद्र को लोग...

इसके बाद शुरू होता है वेस्ट फूलों से बेस्ट हर्बल गुलाल बनाने का सफर. केंद्र के प्रभारी अशोक गमेती ने बताया कि केंद्र पर लाकर फूलों को छाया में सुखाते हैं. इसके बाद सूखे फूलों को पानी में तब तक उबला जाता है जब तक कि पानी में फूलों का रंग नहीं आ जाए. इसके बाद फूलों के रंग वाले पानी में खाने में उपयोगी अरारोट का पाउडर गोल दिया जाता है. बाद में इसे ग्राइंडर में पीसकर बारीक पाउडर में बदल दिया जाता है. इससे 100-100 ग्राम के पैक में पैकिंग के रूप में बेचा जाता है.

पढ़ें : Special: मादक पदार्थों के लती हो रहे युवा, विभिन्न राज्यों से राजस्थान में पहुंचाई जा रही MD ड्रग्स की खेप

खुशबूदार बनाने मिलाते हैं गंध : दरअसल, पिछले कुछ सालों में बाजार में हर्बल गुलाल के नाम से कई ब्रांड उपलब्ध हैं, लेकिन उन्हें भी खुशबूदार बनाने के लिए केमिकल मिलाया जाता है. दिव्यांगों के इस हर्बल गुलाल में कोई मिलावट नहीं. इसे डूंगरपुर शहर के तहसील चौराहा पर बने बिक्री केंद्र पर 20 रुपए प्रति 100 ग्राम की दर से बेचा जाता है, जो बाजार में पहले से बिक रहे हर्बल गुलाल के 40 से 60 रुपए तक सस्ता है. साथ ही पूरी तरह सुरक्षित भी है.

Disabled Skill Development Center Dungarpur
दिव्यांग कौशल विकास केंद्र डूंगरपुर

आपको बता दें कि सामान्य गुलाल में कांच सहित जानलेवा रसायन मिले होते हैं, जो एलर्जी सहित गंभीर बीमारियों की वजह बनते हैं. बहरहाल, अब दिव्यांगों को एक साथ 70 से 100 किलो के ऑर्डर भी इस बार होली पर मिल रहे हैं. जिससे उनके हौसले उड़ानभर रहे और बेहतर आमदनी से (Holi of the Disabled in Rajasthan) होली भी खुशनुमा होगी.

पढे़ं : Special : गहलोत सरकार ने बदला 'अटल फॉर्मूला'...जानिए क्या है ओल्ड और न्यू पेंशन में अंतर

हर्बल गुलाल से मिली आमदनी से दिव्यांगों को मिलेगी आर्थिक मदद : बहरहाल दिव्यांगों के हौसले बुलंदी पर है. हर्बल गुलाल बेचकर उनकी आमदनी बेहतर हो रही है और समाज को जानलेवा केमिकल बेस्ड गुलाल का (Dangers of Chemical Dyes) विकल्प भी दिया है. लेकिन आमजन को भी जरूरत है कि बाजार के गुलाल की जगह दिव्यांगों के बनाए हर्बल गुलाल को खरीदे. इससे इन दिव्यांगों को सम्बल मिलेगा तो वहीं उनकी स्वरोजगार के प्रति किए जा रहे प्रयासों को बल मिलेगा.

डूंगरपुर. राजस्थान में डूंगरपुर जिले के दिव्यांग कौशल केंद्र के दिव्यांग जन (Disabled Skill Development Center Dungarpur) प्रदेश में अपनी अलग पहचान बना रहे हैं. वेस्ट फूलों से हर्बल गुलाल बनाकर बाजार के खतरनाक रासायनिक गुलाल को टक्कर दे रहे हैं. वहीं, गुलाल को बेचकर खुद का आर्थिक स्तर बेहतर बनाने में जुटे हुए हैं.

नवाडेरा बस्ती में दिव्यांग कौशल विकास केंद्र दिव्यांगों के आर्थिक स्तर को बेहतर बनाने के लिए उन्हें प्रशिक्षित करने के बाद सिलाई, मीनाकारी, मसाला लघु उद्योग से जोड़ रहा है. इसी तरह अब बेकार हो रहे फूलों से हर्बल गुलाल बनाने में भी दिव्यांग जुट गए हैं. 70 स्वयं सहायता समूह इससे जुड़े हुए हैं जो जंगल से पलाश के फूलों का संग्रह करते हैं तो धार्मिक स्थलों पर चढ़ाए गए हजारों किलो फूलों को जमा कर (Herbal Making from West Flowers in Dungarpur) केंद्रों पर पहुंचाते हैं.

क्या कहते हैं केंद्र को लोग...

इसके बाद शुरू होता है वेस्ट फूलों से बेस्ट हर्बल गुलाल बनाने का सफर. केंद्र के प्रभारी अशोक गमेती ने बताया कि केंद्र पर लाकर फूलों को छाया में सुखाते हैं. इसके बाद सूखे फूलों को पानी में तब तक उबला जाता है जब तक कि पानी में फूलों का रंग नहीं आ जाए. इसके बाद फूलों के रंग वाले पानी में खाने में उपयोगी अरारोट का पाउडर गोल दिया जाता है. बाद में इसे ग्राइंडर में पीसकर बारीक पाउडर में बदल दिया जाता है. इससे 100-100 ग्राम के पैक में पैकिंग के रूप में बेचा जाता है.

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खुशबूदार बनाने मिलाते हैं गंध : दरअसल, पिछले कुछ सालों में बाजार में हर्बल गुलाल के नाम से कई ब्रांड उपलब्ध हैं, लेकिन उन्हें भी खुशबूदार बनाने के लिए केमिकल मिलाया जाता है. दिव्यांगों के इस हर्बल गुलाल में कोई मिलावट नहीं. इसे डूंगरपुर शहर के तहसील चौराहा पर बने बिक्री केंद्र पर 20 रुपए प्रति 100 ग्राम की दर से बेचा जाता है, जो बाजार में पहले से बिक रहे हर्बल गुलाल के 40 से 60 रुपए तक सस्ता है. साथ ही पूरी तरह सुरक्षित भी है.

Disabled Skill Development Center Dungarpur
दिव्यांग कौशल विकास केंद्र डूंगरपुर

आपको बता दें कि सामान्य गुलाल में कांच सहित जानलेवा रसायन मिले होते हैं, जो एलर्जी सहित गंभीर बीमारियों की वजह बनते हैं. बहरहाल, अब दिव्यांगों को एक साथ 70 से 100 किलो के ऑर्डर भी इस बार होली पर मिल रहे हैं. जिससे उनके हौसले उड़ानभर रहे और बेहतर आमदनी से (Holi of the Disabled in Rajasthan) होली भी खुशनुमा होगी.

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हर्बल गुलाल से मिली आमदनी से दिव्यांगों को मिलेगी आर्थिक मदद : बहरहाल दिव्यांगों के हौसले बुलंदी पर है. हर्बल गुलाल बेचकर उनकी आमदनी बेहतर हो रही है और समाज को जानलेवा केमिकल बेस्ड गुलाल का (Dangers of Chemical Dyes) विकल्प भी दिया है. लेकिन आमजन को भी जरूरत है कि बाजार के गुलाल की जगह दिव्यांगों के बनाए हर्बल गुलाल को खरीदे. इससे इन दिव्यांगों को सम्बल मिलेगा तो वहीं उनकी स्वरोजगार के प्रति किए जा रहे प्रयासों को बल मिलेगा.

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