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पद्मश्री सम्मान से नवाजे जाएंगे संघ प्रचारक मूलचंद लोढ़ा, जानें योगदान - पद्मश्री सम्मान से नवाजे जाएंगे संघ प्रचारक

32 सालों तक बतौर संघ प्रचारक आदिवासियों के विकास को समर्पित मूलचंद लोढ़ा को अब पद्मश्री सम्मान से (RSS Pracharak Moolchand Lodha) नवाजा जाएगा. जिसकी जानकारी उन्हें गृह मंत्रालय के सचिव ने फोन कर दी.

Padma Shri to RSS Pracharak
Padma Shri to RSS Pracharak
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Published : Jan 28, 2023, 5:53 PM IST

संघ प्रचारक मूलचंद लोढ़ा

डूंगरपुर. आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य व शिक्षा को समर्पित आरएसएस प्रचारक मूलचंद लोढ़ा को उनके सेवा कार्यों के लिए अब पद्मश्री सम्मान से नवाजा जाएगा. संघ प्रचारक से पद्मश्री सम्मान के अपने इस सफर में उन्होंने सेवा से जुड़े अनेकों ऐसे कार्य किए, जिससे आदिवासी व मूलवासी नित्य लाभान्वित होते रहे. कइयों को आंखों की रोशनी मिली तो सुदूर आदिवासी ग्रामीण इलाकों में बच्चों के बीच शिक्षा का अलख जगा उन्हें मुख्यधारा में लाने की कोशिश की. हालांकि उन्हें अपने इस सफर के दौरान खासा विरोध व परेशानियों का सामना भी करना पड़ा, लेकिन वो कभी घबराए नहीं, बल्कि धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे.

मूलचंद लोढ़ा ने कहा कि वो सबसे पहले संघ के एक स्वयंसेवक है. इसलिए वो अपने कार्यों को ही अधिक महत्व देते हैं और जहां तक बात पद्मश्री सम्मान का है तो उन्हें 26 जनवरी की सुबह 9 बजे केंद्रीय गृह मंत्रालय के सचिव ने फोन करके इसकी जानकारी दी थी. उन्होंने कहा कि आप आदिवासी इलाके में सेवा कार्य कर रहे हैं. इसलिए आपको पद्मश्री सम्मान दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इसके बाद उनके पास हजारों फोन आए और सभी उन्हें बधाई देते रहे.

मूलचंद लोढ़ा ने बताया कि साल 1968 में वे आदिवासी इलाके में बतौर प्रचारक काम करते आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि 1982 तक डूंगरपुर में प्रचारक रहते हुए सेवा कार्यों में लगे रहे. इसके बाद पाली और फिर प्रदेश के अन्य इलाकों में भी उन्हें काम करने का मौका मिला. उन्होंने बताया कि 23 सालों में 350 से ज्यादा आई कैंप लगाए. जिसमें 17 हजार से ज्यादा लोगों के आंखों के ऑपरेशन कराए जा सके.

इसे भी पढ़ें - Padma Award To Dungarpur Man: समाज सेवी मूलचंद लोढ़ा को मिलेगा पद्मश्री, जानें RSS के पूर्व प्रचारक को क्यों चुना गया ?

पांच बच्चों से शुरू हुआ छात्रावास: मूलचंद लोढ़ा बताते हैं कि सबसे पहले मझोला गांव में उन्होंने पांच बच्चों को लेकर छात्रावास की शुरुआत की. उन बच्चों को वहां पढ़ाने के साथ ही उनके खाने पीने की भी व्यवस्था किया करते थे. इसके बाद उन्होंने सेवा कार्यों के लिए सरकार व प्रशासन से जमीन मांगी. मझोला में 300 बीघा जमीन बिलानाम थे, लेकिन लोग उस पर कब्जा करके बैठे थे. लोगों को लगा कि ये लोग जमीन हड़प लेंगे. इस वजह से विरोध किया और फिर पाल मांडव, माथुगामड़ा जैसे गांवों में उन्होंने जमीन देखी. आखिर में वागदारी में 12 बीघा जमीन मिली और फिर यही से सेवा कार्य शुरू किया.

महुए के पेड़ के नीचे पढ़ते थे बच्चे: लोढ़ा ने बताया कि वागदरी में जो जमीन मिली वो भी दो सरपंचों के बीच की लड़ाई का हिस्सा थी. ऐसे में पहाड़ों के बीच एक महुए के पेड़ के नीचे बैठकर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. इसके बाद तत्कालीन राज्यपाल अंशुमान सिंह, मंत्री गुलाबचंद कटारिया, तत्कालीन कलेक्टर अखिल अरोड़ा ने सहयोग किया. सामुदायिक हॉल बनवाए, जहां आज इसी जमीन पर अस्पताल, स्कूल, छात्रावास, मंदिर, भोजनशाला समेत कई अन्य भवन बने हुए हैं.

अस्पताल बनाने को मांगे थे दो कमरे: मूलचंद लोढ़ा बताते हैं कि उनके सेवा कार्यों में उन्हें कई लोगों का साथ मिला. सबसे पहले मारवाड़ के समाजसेवी विमल कुमार चौरड़िया के साथ का किस्सा सुनाते हुए कहा कि उनसे उन्होंने आदिवासी इलाके में आंखों का अस्पताल खोलने की बात कही. इसके लिए दो कमरे मांगे, लेकिन उन्होंने अस्पताल के लिए 2 कमरों की जगह पूरी इमारत ही खड़ी करा दी.

इमरजेंसी में पीएम मोदी संग किया काम: लोढ़ा ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी प्रचारक थे. मोदी अहमदाबाद महानगर के प्रचारक थे. इमरजेंसी में चिंगारी पत्रिका निकलती थी, जिसे अहमदाबाद में प्रिंट करवाने के बाद छुपते छुपाते यहा लाकर बांटा जाता था. साथ जुड़े डॉ. दलजीत यादव ने बताया कि अक्षरधाम हमले के दौरान भी मूलचंद वहां दर्शन करने गए थे. उस समय मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. हमले के बाद वे अक्षरधाम आए तो भीड़ के बीच मूलचंद को देखकर उनके पास गए और उनसे हालचाल जाने.

कनाडा, मुंबई, अहमदाबाद के कई डॉक्टरों ने की मदद: जागरण जनसेवा मंडल वागदरी के प्रकल्प प्रभारी हरीश परमार ने बताया कि उनके इस सेवा कार्यों में केवल डूंगरपुर ही नहीं, बल्कि देश-दुनिया से कई डॉक्टर व समाजसेवी जुड़े हैं. डॉ. दलजीत यादव ने बताया कि जिस समय अस्पताल में उपकरणों की कमी थी, उस समय 2006 में कनाडा के डॉ. सुरेश खंडेलवाल ने 13 लाख की मशीन दी थी. जबकि उनका इस पूरे इलाके से कोई लेना देना नहीं था. इसके अलावा जोधपुर के प्रसिद्ध डॉ. महेंद्र बोराणा, इंदौर के डॉ. सुहास बांडे, अहमदाबाद के डॉ. अंकित शाह, मुंबई के डॉ. श्याम अग्रवाल का भी सहयोग मिलता रहा.

संघ प्रचारक मूलचंद लोढ़ा

डूंगरपुर. आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य व शिक्षा को समर्पित आरएसएस प्रचारक मूलचंद लोढ़ा को उनके सेवा कार्यों के लिए अब पद्मश्री सम्मान से नवाजा जाएगा. संघ प्रचारक से पद्मश्री सम्मान के अपने इस सफर में उन्होंने सेवा से जुड़े अनेकों ऐसे कार्य किए, जिससे आदिवासी व मूलवासी नित्य लाभान्वित होते रहे. कइयों को आंखों की रोशनी मिली तो सुदूर आदिवासी ग्रामीण इलाकों में बच्चों के बीच शिक्षा का अलख जगा उन्हें मुख्यधारा में लाने की कोशिश की. हालांकि उन्हें अपने इस सफर के दौरान खासा विरोध व परेशानियों का सामना भी करना पड़ा, लेकिन वो कभी घबराए नहीं, बल्कि धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे.

मूलचंद लोढ़ा ने कहा कि वो सबसे पहले संघ के एक स्वयंसेवक है. इसलिए वो अपने कार्यों को ही अधिक महत्व देते हैं और जहां तक बात पद्मश्री सम्मान का है तो उन्हें 26 जनवरी की सुबह 9 बजे केंद्रीय गृह मंत्रालय के सचिव ने फोन करके इसकी जानकारी दी थी. उन्होंने कहा कि आप आदिवासी इलाके में सेवा कार्य कर रहे हैं. इसलिए आपको पद्मश्री सम्मान दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इसके बाद उनके पास हजारों फोन आए और सभी उन्हें बधाई देते रहे.

मूलचंद लोढ़ा ने बताया कि साल 1968 में वे आदिवासी इलाके में बतौर प्रचारक काम करते आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि 1982 तक डूंगरपुर में प्रचारक रहते हुए सेवा कार्यों में लगे रहे. इसके बाद पाली और फिर प्रदेश के अन्य इलाकों में भी उन्हें काम करने का मौका मिला. उन्होंने बताया कि 23 सालों में 350 से ज्यादा आई कैंप लगाए. जिसमें 17 हजार से ज्यादा लोगों के आंखों के ऑपरेशन कराए जा सके.

इसे भी पढ़ें - Padma Award To Dungarpur Man: समाज सेवी मूलचंद लोढ़ा को मिलेगा पद्मश्री, जानें RSS के पूर्व प्रचारक को क्यों चुना गया ?

पांच बच्चों से शुरू हुआ छात्रावास: मूलचंद लोढ़ा बताते हैं कि सबसे पहले मझोला गांव में उन्होंने पांच बच्चों को लेकर छात्रावास की शुरुआत की. उन बच्चों को वहां पढ़ाने के साथ ही उनके खाने पीने की भी व्यवस्था किया करते थे. इसके बाद उन्होंने सेवा कार्यों के लिए सरकार व प्रशासन से जमीन मांगी. मझोला में 300 बीघा जमीन बिलानाम थे, लेकिन लोग उस पर कब्जा करके बैठे थे. लोगों को लगा कि ये लोग जमीन हड़प लेंगे. इस वजह से विरोध किया और फिर पाल मांडव, माथुगामड़ा जैसे गांवों में उन्होंने जमीन देखी. आखिर में वागदारी में 12 बीघा जमीन मिली और फिर यही से सेवा कार्य शुरू किया.

महुए के पेड़ के नीचे पढ़ते थे बच्चे: लोढ़ा ने बताया कि वागदरी में जो जमीन मिली वो भी दो सरपंचों के बीच की लड़ाई का हिस्सा थी. ऐसे में पहाड़ों के बीच एक महुए के पेड़ के नीचे बैठकर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. इसके बाद तत्कालीन राज्यपाल अंशुमान सिंह, मंत्री गुलाबचंद कटारिया, तत्कालीन कलेक्टर अखिल अरोड़ा ने सहयोग किया. सामुदायिक हॉल बनवाए, जहां आज इसी जमीन पर अस्पताल, स्कूल, छात्रावास, मंदिर, भोजनशाला समेत कई अन्य भवन बने हुए हैं.

अस्पताल बनाने को मांगे थे दो कमरे: मूलचंद लोढ़ा बताते हैं कि उनके सेवा कार्यों में उन्हें कई लोगों का साथ मिला. सबसे पहले मारवाड़ के समाजसेवी विमल कुमार चौरड़िया के साथ का किस्सा सुनाते हुए कहा कि उनसे उन्होंने आदिवासी इलाके में आंखों का अस्पताल खोलने की बात कही. इसके लिए दो कमरे मांगे, लेकिन उन्होंने अस्पताल के लिए 2 कमरों की जगह पूरी इमारत ही खड़ी करा दी.

इमरजेंसी में पीएम मोदी संग किया काम: लोढ़ा ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी प्रचारक थे. मोदी अहमदाबाद महानगर के प्रचारक थे. इमरजेंसी में चिंगारी पत्रिका निकलती थी, जिसे अहमदाबाद में प्रिंट करवाने के बाद छुपते छुपाते यहा लाकर बांटा जाता था. साथ जुड़े डॉ. दलजीत यादव ने बताया कि अक्षरधाम हमले के दौरान भी मूलचंद वहां दर्शन करने गए थे. उस समय मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. हमले के बाद वे अक्षरधाम आए तो भीड़ के बीच मूलचंद को देखकर उनके पास गए और उनसे हालचाल जाने.

कनाडा, मुंबई, अहमदाबाद के कई डॉक्टरों ने की मदद: जागरण जनसेवा मंडल वागदरी के प्रकल्प प्रभारी हरीश परमार ने बताया कि उनके इस सेवा कार्यों में केवल डूंगरपुर ही नहीं, बल्कि देश-दुनिया से कई डॉक्टर व समाजसेवी जुड़े हैं. डॉ. दलजीत यादव ने बताया कि जिस समय अस्पताल में उपकरणों की कमी थी, उस समय 2006 में कनाडा के डॉ. सुरेश खंडेलवाल ने 13 लाख की मशीन दी थी. जबकि उनका इस पूरे इलाके से कोई लेना देना नहीं था. इसके अलावा जोधपुर के प्रसिद्ध डॉ. महेंद्र बोराणा, इंदौर के डॉ. सुहास बांडे, अहमदाबाद के डॉ. अंकित शाह, मुंबई के डॉ. श्याम अग्रवाल का भी सहयोग मिलता रहा.

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