डूंगरपुर. स्वच्छता और सुंदरता में सिरमौर डूंगरपुर निकाय का इतिहास 124 साल पुराना है. जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था. तब 1897 में डूंगरपुर निकाय की स्थापना हुई. इसके बाद डूंगरपुर ने कई उतार-चढ़ाव देखे. शहर ने कई रंग-रूप बदले. 51 बार जिले की बागड़ोर अलग-अलग हाथों में गई. जिन्होंने शहर को अपने ढंग से सजाने और संवारने के काम किया. देखिये यह खास रिपोर्ट...
5 साल में डूंगरपुर की ख्याति देशभर में हुई है. चाहे स्वच्छता की बात हो या फिर जल संरक्षण की. एक बार फिर डूंगरपुर की बागडोर निर्वाचित हाथों में जाएगी और डूंगरपुर की इसी विरासत को सहेजने की जिम्मेदारी भी होगी.
भाजपा 30 साल से डूंगरपुर में जीत का परचम लहराती आई है. वह इस गढ़ को बचाकर रखना चाहेगी. वहीं कांग्रेस खोई हुई सत्ता को फिर से हासिल करने के लिए साख की लड़ाई लड़ेगी. डूंगरपुर निकाय में राजनीतिक रस्साकशी के साथ हम प्रस्तुत कर रहे हैं डूंगरपुर के प्रशासन के ऐतिहासिक तथ्य.
स्वच्छता में अव्वल है डूंगरपुर जिला
डूंगरपुर आज स्वच्छता में प्रदेश में अव्वल जिला है. प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और कई मंत्री से लेकर अधिकारी तारीफों के पुल बांध चुके हैं. जल संरक्षण, सौंदर्यीकरण में कई बेहतरीन कार्य हुए हैं. जिससे शहर को नई पहचान मिली. देश को आजाद हुए 74 साल हुए हैं. लेकिन डूंगरपुर निकाय का यह इतिहास 124 साल पुराना है.
विक्रम संवत श्रावण शुक्ल एकादशी 8 अगस्त 1897 को डूंगरपुर नगर पालिका की स्थापना हुई. इस बीच डूंगरपुर निकाय में 51 प्रशासक और अध्यक्ष रहे. जिन्होंने डूंगरपुर शहर के विकास को नए आयाम दिए.
30 साल से निकाय की बागडोर भाजपा के हाथ में
इसमें से 38 बार डूंगरपुर निकाय की कमान प्रशासक के हाथों में रही और 13 बार जनता की ओर से चुने गए निर्वाचित चेयरमैन ने बागड़ोर संभाली. 1990 से लेकर अब तक पिछले 30 साल से डूंगरपुर निकाय की सत्ता भाजपा के हाथों में है.
इस दौरान 7 चैयरमैन बने. जिन्होंने शहर के विकास में नई इबारत लिखी. 1986 से पहले 4 बार कांग्रेस के पास भी डूंगरपुर निकाय की सत्ता रही है. इस बार भाजपा और कांग्रेस के साथ ही निर्दलीय भी मैदान में हैं. लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है.
भाजपा फिर बोर्ड बनाने के लिए आश्वस्त, कांग्रेस में वजूद की लड़ाई
भाजपा लगातार 30 साल से डूंगरपुर नगर परिषद में जीत हासिल कर रही है. इस बार फिर से भाजपा जीत को लेकर आश्वस्त नजर आ रही है. भाजपा जिलाध्यक्ष प्रभु पंड्या ने कहा कि भाजपा लगातार इस बार भी डूंगरपुर नगर परिषद में बोर्ड बनाएगी और सभापति भाजपा का बैठेगा. वहीं कांग्रेस शहरी निकाय में वजूद की लड़ाई लड़ रही है.
कांग्रेस पिछले तीन दशक से यहां सत्ता के लिए तरस रही है. इसके पीछे वैसे तो कई कारण हैं लेकिन सबसे बड़ा कारण शहरी क्षेत्र में कांग्रेस की कमजोर पकड़. इस बार कांग्रेस की कमान यूथ कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गणेश घोघरा के हाथों में है. जो निकाय चुनाव में टीम के साथ शहरी मतदाताओं को कांग्रेस सरकार की योजनाओं के माध्यम से आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं.
मजिस्ट्रेट, दीवान, प्रधानाध्यापक, एसपी, इंजीनियर और स्वतंत्रता सेनानी रहे शहर प्रशासक
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निर्दलीय बिगाड़ेंगे गणित
भाजपा और कांग्रेस से कई बागी उम्मीदवार भी इस बार निर्दलीय के रूप में मैदान में हैं. इसके अलावा बीटीपी समर्थित कुछ उम्मीदवारों ने भी निर्दलीय के रूप में निकाय चुनाव में नामांकन पेश किया है. लेकिन शहरी क्षेत्र में बीटीपी का खास असर नहीं होने के कारण इतना फर्क नहीं पड़ेगा. एसटी वर्ग के वोट इस कारण जरूर बंट सकते हैं. वहीं मुस्लिम बाहुल्य वार्डों में भी बीटीपी की पकड़ होने से कई मतदाता खिसक सकते हैं. ऐसे में दोनों ही पार्टियों के समीकरणों पर असर पड़ सकता है.
1897 से कब कौन रहा प्रशासक और चेयरमैन- नाम, निर्वाचित/प्रशासक, अवधि
नए सभापति और बोर्ड पर होगी खास जिम्मेदारी
डूंगरपुर शहर में पिछले कुछ साल में विकास के कई काम हुए हैं. शहर स्वच्छता के क्षेत्र में प्रदेश में पहले पायदान पर रहा, तो स्वच्छता में सिटीजन फीडबैक में देशभर में पहले स्थान पर काबिज़ भी हुआ. शहर के सौंदर्यीकरण के साथ ही पर्यटन के क्षेत्र में भी बेहतरीन कार्य हुए. वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से शहरी भूजल स्तर में वृद्धि हुई जिससे पानी की किल्लत दूर हुई.
अब नए सभापति और बोर्ड के पास शहर के विकास को नई रफ्तार देने के साथ ही इन कार्यों को सहेजने की सबसे बड़ी चुनौती रहेगी.