डूंगरपुर. अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज और भारतीय टीम के कोच रह चुके जयंतीलाल ननोमा अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका एक सपना आज भी हमारे बीच जिंदा है. वे हमेशा ही डूंगरपुर के साथ ही जनजाति क्षेत्र के प्रतिभावान तीरंदाजों को बेहतर तीरंदाजी सिखाने के लिए एक तीरंदाजी एकेडमी खोलने के लिए प्रयास करते रहे. इसके लिए उन्होंने सरकार से लेकर खेल परिषद तक जोर लगाया, लेकिन अब उनके सपनों को साकार करने के लिए डूंगरपुर में एक तीरंदाजी एकेडमी खोलने की मांग उनके शिष्यों द्वारा की जा रही है.
बात करें जयंतीलाल के सफर की तो, वह बचपन से तीरंदाजी में सटीक निशाने से सभी को चौंकाया करते थे. जिसके बाद वह आगे चलकर राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी खेले और भारत के लिए विदेश की धरती पर कई मेडल भी जीते. इसके बाद वह भारतीय तीरंदाजी टीम के 3 बार कोच भी रहे और नए तीरंदाजों का मार्गदर्शन भी उन्होंने किया. बता दें कि उनके शिष्य आज भी उन्हीं के नक्शे कदम पर चलते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम ऊंचा कर रहे हैं. जिसमें रजत चौहान और सर्वेश पारीक का नाम प्रमुख है.
तीरंदाजी एकेडमी का सपना
2012 में डूंगरपुर में वह तीरंदाजी कोच बनकर आये थे, तब उन्होंने डूंगरपुर सहित जनजाति क्षेत्र में तीरंदाजी सीख रहे खिलाड़ियों के लिए बेहतरीन तीरंदाजी एकेडमी खुलवाने का सपना देखा था. डूंगरपुर में कोच रहते उन्होंने कई छात्र-छात्राओं को तीरंदाजी के गुर सिखाए. जिससे उन्होंने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मैडल भी जीते. इसके बाद उनकी ओर से जिला खेल अधिकारी के मार्फत डूंगरपुर में तीरंदाजी एकेडमी खोलने का प्रस्ताव बनाकर सरकार और खेल परिषद को भेजा गया, ताकि जनजाति क्षेत्र में तीरंदाजी का प्रशिक्षण ले रहे खिलाड़ियों को एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का मैदान उपलब्ध हो सके.
डूंगरपुर खेल अधिकारी के रूप में भी किया काम
बता दें कि उन्होंने एक साल डूंगरपुर खेल अधिकारी के रूप में भी काम किया. इस दौरान भी वे डूंगरपुर में तीरंदाजी एकेडमी की पुरजोर पैरवी करते रहे. वे हमेशा ही तीरंदाजी और उनके खिलाड़ियों के बारे में ही सोचते रहते थे, ताकि वे भारत का नाम रोशन कर सकें. इसके लिए वे सरकारी स्तर पर भी उपकरण दिलाने के प्रयास में जुटे थे. उनके इस प्रयासों से कुछ हद तक सफलता भी मिली, लेकिन तीरंदाजी एकेडमी का सपना आज भी अधूरा है. गत मार्च महीने में ईटीवी भारत के दौरान इंटरव्यू में भी जयंतीलाल ने डूंगरपुर में अंतरराष्ट्रीय स्तर की तीरंदाजी एकेडमी खोलने की बात कही थी.
जयंतीलाल ने अपने प्रयासों से तैयार करवाया तीरंदाजी कोर्ट
डूंगरपुर में तीरंदाजी एकेडमी के लिए प्रयासरत जयंतीलाल को भले ही सफलता नहीं मिली हो, लेकिन उन्होंने स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में विकास के कई काम करवाये. जिनमें सबसे खास है तीरंदाजी कोर्ट का काम. जिसमें उन्होंने तीरंदाजों की हर एक बात का ख्याल रखा, लेकिन इस कोर्ट में अब भी कुछ काम अधूरे हैं. जिसे पूरा करने की जरूरत है.
कई राज्यों के तीरंदाज लेने आते थे ट्रेनिंग
अंतरराष्ट्रीय स्तर के तीरंदाज जयंतीलाल का निशाना इतना अचूक था कि हर कोई उनकी तीरंदाजी का कायल था. यही कारण है कि राजस्थान ही नहीं देश के विभिन्न राज्यों के कई तीरंदाज उनके पास तीरंदाजी सीखने के लिए आते थे. इसमें पंजाब, हरियाणा, गुवाहाटी, असम सहित कई राज्योंं के तीरंदाज डूंगरपुर में रहकर ही उनसे तीरंदाजी सीखते थे.
तीरंदाजी एकेडमी जयंती सर के नाम पर खोलने पर ही सच्ची श्रद्धांजलि
अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज जयंतीलाल के सपने को पूरा कर डूंगरपुर में तीरंदाजी एकेडमी खोलकर सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है. इसे लेकर उनके शिष्य अपने गुरु के सपनों को साकार करने की मांग कर रहे हैं. तीरंदाजों ने कहना है कि उनके गुरु आज भी उनके बीच जिंदा हैं. जिस तरह एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य की मूर्ति रखकर धनुष चलाना सीखा था. उसी तरह से वे भी तीरंदाजी सीखेंगे. उनके शिष्यों की मांग है कि सरकार को डूंगरपुर में जल्द से जल्द तीरंदाजी एकेडमी खोलनी चाहिए. ताकि जयंती सर का सपना पूरा हो सके. साथ ही उनकी मांग है कि तीरंदाजी एकेडमी का नाम जयंती सर के नाम पर ही होना चाहिए.