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जोहार पर जंग...कटारा बोले- यह राजस्थान की बोली नहीं, जनजाति वर्ग को गुमराह कर रही BTP - जोहार शब्द के लेकर विवाद

भारतीय ट्राइबल पार्टी के अस्तित्व में आने के साथ ही वागड़ अंचल में जोहार शब्द का प्रचलन तेजी से बढ़ा है. गाहे-बगाहे भाजपा से लेकर कांग्रेस तक इस शब्द के इस्तेमाल के विरोध में बोलते दिखाई दे रहे हैं. इसी बीच भाजपा के प्रदेश महामंत्री सुशील कटारा ने जोहार शब्द को लेकर बीटीपी पर षड्यंत्र करने का आरोप लगाते हुए यहां के जनजाति वर्ग को गुमराह करने की बात कही.

राजस्थान हिंदी खबर,  rajasthan latest news,  सुशील कटारा का बयान
सुशील कटारा का बयान
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Published : Aug 30, 2020, 1:40 PM IST

डूंगरपुर. जनजाति क्षेत्र डूंगरपुर में पिछले कुछ दिनों से 'जोहार' शब्द को लेकर घमासान मचा हुआ है. भाजपा और कांग्रेस लगातार इस शब्द को लेकर बीटीपी पर हमला बोल रहा है तो वहीं बीटीपी बचाव करते हुए इसे अभिवादन का शब्द बता रही है. इसी बीच भाजपा के प्रदेश महामंत्री सुशील कटारा ने जोहार शब्द को लेकर बीटीपी पर षड्यंत्र करने का आरोप लगाते हुए यहां के जनजाति वर्ग को गुमराह करने की बात कही है.

सुशील कटारा का बयान

भाजपा के प्रदेश महामंत्री सुशील कटारा ने बीटीपी पर निशाना साधते हुए कहा कि अभिवादन पर किसी को कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन जोहार शब्द के नाम पर षड्यंत्र रचा जा रहा है. लोगों को धर्म परिवर्तन करने के लिए गुमराह किया जा रहा है. इसे भाजपा कभी बर्दाश्त नहीं करेगी.

जोहर शब्द राजस्थान में अभिवादन नहीं...

कटारा ने कहा कि यहां जनजाति क्षेत्र में आदिवासी समाज बरसों से जय गुरु महाराज, जय सीताराम और राम-राम से अभिवादन करता आया है और यही बात हमने हमारे पुरखों, बाप-दादाओं से सीखी है. आज कुछ लोग जय जोहार को थोपने का काम कर रहे हैं.

सुशील कटारा का बयान (2)

छत्तीसगढ़ में बोला जाता है 'जय जोहार'...

उन्होंने कहा कि 'जय जोहार' छत्तीसगढ़ और झारखंड में संथाली समाज के लोग अभिवादन के रूप में बोलते होंगे, लेकिन जोहार हमारे यहां की बोली या अभिवादन का शब्द नहीं है. सुशील कटारा ने कहा 'जोहार, जौहर, जुआर और जवार पटारा यह चार शब्द हैं, जिसका अलग-अलग जगहों पर इस्तेमाल होता है.

ग्रंथों और किताब में नहीं है वर्णन...

आदिवासी समाज में किसी की मौत पर पगड़ी दस्तूर के दिन चावलों से प्रकृति का अभिवादन करते है, उसे जुआर कहा जाता है. दिवाली के दूसरे दिन जनजाति परिवार के लोग गले मिलते है, उस समय जवार पटारा कहा जाता है. राजा-महाराजाओं के शासनकाल में महिलाएं अपने आत्मसम्मान को बचाने के लिए जौहर करती थीं. जिसका वर्णन कई ग्रंथों, किताबों में भी मिलता है, लेकिन जोहार शब्द का अस्तित्व संविधान, ग्रंथों और किताबों में नहीं है.

यह भी पढ़ें : जोहार शब्द अभिवादन का शब्द है, इसका विरोध उचित नहीं: सांसद कनकमल कटारा

सुशील कटारा ने कहा कि कुछ लोग जोहार शब्द को रामचरित मानस और रामायण से जुड़ा हुआ बताते हैं. अगर वे रामायण को मानते हैं तो राम और शबरी भी थे और उन्हें भी मानना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि जहां कहीं भी षड्यंत्रपूर्वक धर्म परिवर्तन होगा, वहां धर्म की रक्षा के लिए भाजपा हमेशा खड़ी रहेगी. कटारा ने कहा कि भाजपा ने हमेशा जनजाति क्षेत्र और जनजाति समाज के विकास के लिए काम किया है. चाहे पंचायतीराज में 100 प्रतिशत आरक्षण देने की बात हो या जनजाति आयोग का गठन, पदोन्नति में आरक्षण सहित कई काम भाजपा की देन है.

डूंगरपुर. जनजाति क्षेत्र डूंगरपुर में पिछले कुछ दिनों से 'जोहार' शब्द को लेकर घमासान मचा हुआ है. भाजपा और कांग्रेस लगातार इस शब्द को लेकर बीटीपी पर हमला बोल रहा है तो वहीं बीटीपी बचाव करते हुए इसे अभिवादन का शब्द बता रही है. इसी बीच भाजपा के प्रदेश महामंत्री सुशील कटारा ने जोहार शब्द को लेकर बीटीपी पर षड्यंत्र करने का आरोप लगाते हुए यहां के जनजाति वर्ग को गुमराह करने की बात कही है.

सुशील कटारा का बयान

भाजपा के प्रदेश महामंत्री सुशील कटारा ने बीटीपी पर निशाना साधते हुए कहा कि अभिवादन पर किसी को कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन जोहार शब्द के नाम पर षड्यंत्र रचा जा रहा है. लोगों को धर्म परिवर्तन करने के लिए गुमराह किया जा रहा है. इसे भाजपा कभी बर्दाश्त नहीं करेगी.

जोहर शब्द राजस्थान में अभिवादन नहीं...

कटारा ने कहा कि यहां जनजाति क्षेत्र में आदिवासी समाज बरसों से जय गुरु महाराज, जय सीताराम और राम-राम से अभिवादन करता आया है और यही बात हमने हमारे पुरखों, बाप-दादाओं से सीखी है. आज कुछ लोग जय जोहार को थोपने का काम कर रहे हैं.

सुशील कटारा का बयान (2)

छत्तीसगढ़ में बोला जाता है 'जय जोहार'...

उन्होंने कहा कि 'जय जोहार' छत्तीसगढ़ और झारखंड में संथाली समाज के लोग अभिवादन के रूप में बोलते होंगे, लेकिन जोहार हमारे यहां की बोली या अभिवादन का शब्द नहीं है. सुशील कटारा ने कहा 'जोहार, जौहर, जुआर और जवार पटारा यह चार शब्द हैं, जिसका अलग-अलग जगहों पर इस्तेमाल होता है.

ग्रंथों और किताब में नहीं है वर्णन...

आदिवासी समाज में किसी की मौत पर पगड़ी दस्तूर के दिन चावलों से प्रकृति का अभिवादन करते है, उसे जुआर कहा जाता है. दिवाली के दूसरे दिन जनजाति परिवार के लोग गले मिलते है, उस समय जवार पटारा कहा जाता है. राजा-महाराजाओं के शासनकाल में महिलाएं अपने आत्मसम्मान को बचाने के लिए जौहर करती थीं. जिसका वर्णन कई ग्रंथों, किताबों में भी मिलता है, लेकिन जोहार शब्द का अस्तित्व संविधान, ग्रंथों और किताबों में नहीं है.

यह भी पढ़ें : जोहार शब्द अभिवादन का शब्द है, इसका विरोध उचित नहीं: सांसद कनकमल कटारा

सुशील कटारा ने कहा कि कुछ लोग जोहार शब्द को रामचरित मानस और रामायण से जुड़ा हुआ बताते हैं. अगर वे रामायण को मानते हैं तो राम और शबरी भी थे और उन्हें भी मानना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि जहां कहीं भी षड्यंत्रपूर्वक धर्म परिवर्तन होगा, वहां धर्म की रक्षा के लिए भाजपा हमेशा खड़ी रहेगी. कटारा ने कहा कि भाजपा ने हमेशा जनजाति क्षेत्र और जनजाति समाज के विकास के लिए काम किया है. चाहे पंचायतीराज में 100 प्रतिशत आरक्षण देने की बात हो या जनजाति आयोग का गठन, पदोन्नति में आरक्षण सहित कई काम भाजपा की देन है.

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