डूंगरपुर. पंचायतीराज के बाद नगर परिषद चुनावों में भी कांग्रेस की करारी हार हुई है. 1990 के बाद से डूंगरपुर नगर परिषद में कांग्रेस लगातार हार झेल रही है. इसकी मुख्य वजह कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी है. जिससे कांग्रेस उबर नहीं पा रही है. हालात यह रहे कि कांग्रेस को इस बार सभापति पद के लिए एसटी का उम्मीदवार तक नहीं मिला, जबकि उपसभापति के लिए किसी ने नामांकन ही नहीं भरा.
डूंगरपुर नगर परिषद के चुनाव इस बार कांग्रेस के लिए साख का सवाल थे लेकिन इस बार भी कांग्रेस फेल साबित हुई. निकाय चुनाव में जीत के लिए कांग्रेस की कमान युथ कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष और स्थानीय विधायक गणेश घोघरा के हाथों में थी. डूंगरपुर निकाय में वर्ष 1986 में आखरी बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे. इसके बाद वर्ष 1990 से लगातार भाजपा जीत दर्ज करती आ रही है. कांग्रेस के पास इस बार प्रदेश में में कांग्रेस की सरकार होने फायदा भी था, फिर भी कांग्रेस हार गई.
बता दें कि टिकिट वितरण से लेकर चुनाव प्रचार में कांग्रेस कहीं दिखाई नहीं दी. कांग्रेस ने प्रदेश सचिव विष्णु सरवटे को निकाय चुनाव का प्रभारी नियुक्त किया लेकिन वे भी एक मीटिंग के बाद गायब हो गए. कांग्रेस निकाय चुनावों में पूरी तरह से खामोश दिखी. यही कारण है कि निकाय चुनाव के परिणाम भी कांग्रेस के पक्ष में नहीं आए. 40 वार्ड में से कांग्रेस केवल 6 वार्ड ही जीत पाई. इतना ही नहीं कांग्रेस के परंपरागत वार्डों में भी कांग्रेस हार गई और कांग्रेस का वोट बैंक बीटीपी की ओर से खिसक गया.
40 प्रत्याशी में से कांग्रेस का एसटी का भी नहीं जीता, सभापति के दावेदार भी हारे
कांग्रेस की हालत इस बार ऐसी दिखी जो पिछले सालों में अब तक नहीं हुई. कांग्रेस को इस बार डूंगरपुर नगर परिषद में सभापति पद के लिए उम्मीदवार ही नहीं मिला. डूंगरपुर नगर परिषद में इस बार सभापति का पद एसटी के लिए रिजर्व था. कांग्रेस ने सभापति के लिए कालूराम आमलिया को एक तरह से प्रोजेक्ट कर रही थी लेकिन वे खुद चुनाव हार गए. इसके अलावा भी कांग्रेस के जितने एसटी उम्मीदवार थे, वे भी चुनाव हार गए तो कांग्रेस के पास सभापति का कोई दावेदार नहीं रहा. यही वजह है कि कांग्रेस के 6 पार्षद सभापति के लिए मतदान करने नहीं आए. वहीं उपसभापति का पद सामान्य वर्ग से होने के बावजूद कांग्रेस ने अपनी दावेदारी नहीं जताई. कांग्रेस के 6 पार्षदों में से 4 पार्षदों ने भाजपा से बागी मैदान में उतरे. जिन्होंने डायालाल पाटीदार को वोट किया लेकिन कांग्रेस की यह रणनीति भी सफल नहीं हो पाई.
कांग्रेस की हार के प्रमुख कारण
डूंगरपुर नगर परिषद चुनावों में कांग्रेस की करारी हार हुई है. इसकी मुख्य वजह है कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी. डूंगरपुर में कांग्रेस अलग-अलग गुटों में बंटी हुई है. पंचायतीराज चुनावों के बाद यूथ कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष व विधायक गणेश घोघरा और पूर्व सांसद ताराचंद भगोरा की गुटबाजी किसी से छुपी हुई नहीं है. यहीं कारण रहा है कि शहरी क्षेत्र में कांग्रेस कमजोर पर कमजोर हो गई और निकाय चुनावों में भी कांग्रेस की नैया डूब गई.
कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक पर बीटीपी की सेंध
ग्रामीण क्षेत्र के बाद अब डूंगरपुर शहरी क्षेत्र में भी कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक कांग्रेस से खिसककर भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) की ओर चला गया है. शहर के आदिवासी और मुस्लिम वार्ड, जहां अब तक कांग्रेस जीतकर आ रही थी, वहां इस बार बीटीपी ने जीत दर्ज की है. 40 वार्डों में से कांग्रेस को 6 वार्ड में जीत मिली थी. वहीं पहली बार मैदान में उतरी बीटीपी 5 सीटे जितने में कामयाब रही.
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1990 के बाद से कांग्रेस नहीं जीती
डूंगरपुर निकाय का इतिहास वैसे तो 1897 का है, लेकिन 1990 के बाद से कांग्रेस डूंगरपुर निकाय पर काबिज नहीं हो सकी है. 1990 से पहले भी केवल 4 बार कांग्रेस का कब्जा रहा है. वहीं वर्ष 1990 में भाजपा के शंकरसिंह सोलंकी चैयरमैन निर्वाचित हुए. इसके बाद से भाजपा लगातार जीत दर्ज कर रही है. इस बार भी कांग्रेस भाजपा के जीत के इस तिलस्म को नहीं तोड़ पाई है.