धौलपुर. नीति आयोग की ओर से प्रायोजित जैविक खेती कार्यशाला का शुभारंभ कृषि विज्ञान केंद्र धौलपुर में जिला कलेक्टर राकेश कुमार जायसवाल के मुख्य आतिथ्य में हुआ. किसानों को संबोधित करते हुए जिला कलेक्टर ने जैविक खेती के माध्यम से होने वाली फसलों को बढ़ावा देने के लाभ और उत्पादन के संबंध में जानकारी देते हुए कहा कि जैविक खेती को बढ़ावा देकर ही भविष्य में रोगों के बढ़ने की आशंकाओं को कम किया जा सकता है. गेहूं और आलू सहित अन्य की जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाए.
नीति आयोग की ओर से आशान्वित जिला कार्यक्रम के अंतर्गत आलू, गेंहू की जैविक खेती के लिए कार्यशाला में थीम अप लिफ्टिंग फार्मर थू्र ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर पर आधारित 6 दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. नीति आयोग से 159 लाख रुपए जैविक खेती के लिए स्वीकृत किए गए.
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उन्होंने बताया कि 25 गांवों के 325 किसानों का चयन कर करके 250 काश्तकारों का गेंहू 75 काश्तकार आलू की जैविक खेती के लिए चयनित किए गए. कार्यशाला में 50-50 की संख्या बेच बनाकर कार्यशालाओं का आयोजन किया गया. जिले में शुरुआती तौर पर कुल भूमि 130 हेक्टेयर भूमि पर जैविक कृषि की जानी है जिसमें 100 हेक्टेयर गेंहू और 30 हेक्टेयर आलू, स्वस्थ जीवन के लिए जैविक कृषि क्रियाएं अपनाने पर जोर देने की बात कही.
सघन कृषि एवं अधिक लाभ कमाने के लिए खेती में अत्याधिक रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशी रसायनो, खरपतवारनाशियों, वृद्धि कारकों (हार्मोन्स) का उपयोग करने से मृदा और मानव स्वास्थ्य में गिरावट आ गई है. पर्यावरण का निरन्तर हास हो रहा है. रासायनिक खेती और मशीनीकरण से खेती की लागत बढ़ रही है, कृषक को अपनी मेहनत का लाभ नहीं मिल पा रहा है. इसलिए स्वस्थ जीवन के लिए जैविक कृषि क्रियाएं अपनाना ही एक मात्रा विकल्प है.
जैविक खेती उत्पादन का वह तरीका है जिसमें जैविक अवशेषों का अधिकतम उपयोग किया जाये और रासायनिक कृषि आदानों के बढ़ावे को रोका जा सके ताकि मृदा की उत्पादकता और उर्वरता टिकाऊपन की दृष्टि से बनी रहे. उन्होंने जैविक खेती की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि कृषि उत्पादन में टिकाऊपन के लिए, मृदा स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए, पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए, मानव स्वास्थ्य की रक्षा के लिए, उत्पादन की लागत को कम करने के लिए, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाए.
जिला कलेक्टर ने खेती को विकसित करने के लिए पुस्तिका का विमोचन किया गया. किसान प्रतिनिधि के रूप में किसान मातादीन शर्मा को सम्मानित कर जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित किया. उप निदेशक कृषि बीड़ी शर्मा ने संबोधित करते हुए कहा कि परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) के अन्तर्गत जैविक खेती को बढावा देने के लिए ये कलस्टर आधारित कार्यक्रम है जिसमें 20 हैक्टेयर (50 एकड़ ) क्षेत्रा का एक कलस्टर में जैविक खेती का कार्यक्रम लिया जाता है.
परम्परागत कृषि विकास योजना के अन्तर्गत कलस्टर एप्रोच और पीजीएस सर्टिफिकेशन के माध्यम से जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जाता है. इसके द्वारा पर्यावरण संरक्षित कृषि को बढ़ावा देकर पैदावार में वृदि के लिए रासयनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम की जा सकती है. परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) के तहत कम्पोनेन्ट गतिविधिवार कृषकों को देय सहायता अनुदान, जैविक खेती में रसायनों का प्रवेश रोकने के लिए डोली बनाकर गड्डे/खाई खोदकर या हेज लगाकर बफरिंग क्षेत्रा का निर्माण किया जाए.
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कृषक प्रथम वर्ष में स्वयं द्वारा उत्पादित बीज, केवीएसएस, जीएसएस, केवीके, एटीसी, कृषि अनुसंधान केन्द्र आदि से बीज प्राप्त कर उपयोग में ले सकेगा. वर्मीकम्पोस्ट इकाई का निर्माण कृषक को पक्के ईट की दीवार निर्माण, गड्डा खुदाई, 2 किलोग्राम केचुआ, भराई, छायादार व पानी की व्यवस्था तथा मजदूरी लागत आदि हेतु सहायता देय है.
परम्परागत जैविक आदान उत्पादन की इकाई की स्थापना के लिए प्रावधान (प्रति कृषक) प्रत्येक कृषक को परम्परागत जैविक आदान उत्पादन-पंचगव्य, बीजामृत, जीवामृत आदि इकाई स्थापित करने और उसके उपयोग करने के लिए आवश्यक उपकरण यथा जग, ड्रम, बाल्टी, फिल्टर, स्प्रेयर, पानी का झारा, केचुआ दातली और अन्य सामग्री क्रय करने के लिए सहायता देय है.
कार्यक्रम में संयुक्त निदेशक कृषि देशराज सिंह, डीन कृषि महाविद्यालय जेपी यादव, कृषि विज्ञान केंद्र प्रभारी नवाब सिंह, परियोजना निदेशक आत्मा सोमदत्त शर्मा, कृषि वैज्ञानिक राममूरत मीणा, प्रयोगशाला सहायक रवि कुमार मीणा, बाबूलाल सहित अन्य अधिकारी कर्मचारी उपस्थित रहे.