ETV Bharat / state

धौलपुर के गुरुद्वारों में आस्था पूर्वक मनाया गया गुरु नानक देव का प्रकाश पर्व

धौलपुर में बुधवार को गुरूद्वारों में सिख धर्म के प्रथम गुरु गुरुनानक देव का प्रकाश पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. जहां गुरुद्वारे में अखंड साहिब पाठ, शब्द कीर्तन, अरदास और भंडारे का आयोजन किया गया.

Guru Gobind Singh tenth Guru of Sikhism, सिख धर्म के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह
धूमधाम से मनाया गया गुरु नानक देव का प्रकाश पर्व
author img

By

Published : Jan 20, 2021, 5:16 PM IST

धौलपुर. जिले के गुरूद्वारों में सिख धर्म के प्रथम गुरु गुरुनानक देव का प्रकाश पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. जयंती के उपलक्ष्य में अखंड साहिब पाठ, शब्द कीर्तन, अरदास और भंडारे का आयोजन कर गुरु का भोग लगा कर सैकड़ो श्रद्धालुओं ने प्रसादी ग्रहण की. आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों के सिख समुदाय के लोग रुंद गुरुदारे पर पहुंचे, जहां पर उन्होंने कीर्तन में भाग लेकर प्रसादी पाई.

धूमधाम से मनाया गया गुरु नानक देव का प्रकाश पर्व

इस मौके पर गुरुनानक देव के जीवन के बारे में श्रद्धालुओं को बताया गया. गुरू नानक सिखों के प्रथम गुरु हैं और इन्हें गुरु नानक, गुरु नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं और गुरुनानक जी धरती पर सामाजिक बुराइयों को दूर करने आये और प्रेम का संदेश देने आए थे.

पढ़ें- मंदिर के पुजारी को पूजा-पाठ से रोकने पर सांसद दीया कुमारी समेत 17 को अवमानना नोटिस

संत ज्ञानी सिंह ने बताया गुरु गोविंद सिंह का जीवन त्याग और बलिदान का रहा है. उन्होंने कहा कि ना बात कहूं अब की, ना बात कहूं तब की, ना होते अगर गुरु गोविंद सिंह जी, तो सुन्नत होती सबकी, गुरु गोविंद सिंह के प्रताप सिंह सिख धर्म को बड़ा आयाम मिला है. उनके जन्म दिवस के उपलक्ष्य पर खालसा सजाकर विशाल भंडारे का आयोजन किया है.

गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने प्राणों की आहुति देकर सिख और हिंदुओं के रक्षा की थी. गुरु गोविंद सिंह के प्रकाश पर्व पर सिख धर्म के अनुयायियों में भारी आस्था देखी गई. गुरुद्वारा में लंगर में पकवान बनाकर भंडारे खिलाए गए. प्रकाश पर्व पर गुरुद्वारों के सजावट कराई गई. गुरु गोविंद सिंह के विग्रह को नई पोशाक पहनाकर अरदास लगाई गई. गुरुद्वारों में सुबह से ही महिला-पुरुषों की लंबी कतारें देखी गई

बता दें कि गुरु नानक का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गांव में कार्तिक पूर्णिमा को एक खत्रीकुल में हुआ था. तलवंडी पाकिस्तान में पंजाब गुरु नानक प्रान्त का एक शहर है, इनके पिता का नाम मेहता कालूचंद खत्री और माता का नाम तृप्ता देवी था. तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया. इनकी बहन का नाम नानकी था. बचपन से इनमें प्रखर बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लगे थे.

लड़कपन से ही ये संसारिक विषयों से उदासीन रहा करते थे. पढ़ने लिखने में इनका मन नहीं लगा. करीब आठ साल की उम्र में स्कूल छूट गया, क्योंकि भगवत्प्राप्ति के संबंध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक ने हार मान ली और वे इन्हें ससम्मान घर छोड़ने आ गए. तत्पश्चात् सारा समय वे आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत करने लगे. बचपन के समय में कई चमत्कारिक घटनाएं घटी, जिन्हें देखकर गांव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व मानने लगे. बचपन के समय से ही इनमें श्रद्धा रखने वालों में इनकी बहन नानकी और गांव के शासक राय बुलार प्रमुख थे.

पढ़ें- सूरत हादसाः दुर्गम रास्तों ने रोका बस का रास्ता तो ट्रैक्टरों से पहुंचे शव, 15 लोगों की एक साथ जली चिता

गुरु नानक विवाह बालपन में सोलह वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिले के अंतर्गत लाखौकी नामक स्थान के रहने वाले मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ था. 32 वर्ष की अवस्था में इनके प्रथम पुत्र श्रीचंद का जन्म हुआ. चार वर्ष पश्चात् दूसरे पुत्र लखमीदास का जन्म हुआ. दोनों लड़कों के जन्म के उपरांत 1507 में नानक अपने परिवार का भार अपने ससुर पर छोड़कर मरदाना, लहना, बाला और रामदास इन चार साथियों को लेकर तीर्थयात्रा के लिए निकल पडे़. उन पुत्रों में से श्रीचंद आगे चलकर उदासी संप्रदाय के प्रवर्तक हुए. पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब के पृष्ठ संख्या 721 में उल्लेख है कि भगवान कबीर साहिब जी गुरु नानक देव जी के गुरु थे.

धौलपुर. जिले के गुरूद्वारों में सिख धर्म के प्रथम गुरु गुरुनानक देव का प्रकाश पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. जयंती के उपलक्ष्य में अखंड साहिब पाठ, शब्द कीर्तन, अरदास और भंडारे का आयोजन कर गुरु का भोग लगा कर सैकड़ो श्रद्धालुओं ने प्रसादी ग्रहण की. आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों के सिख समुदाय के लोग रुंद गुरुदारे पर पहुंचे, जहां पर उन्होंने कीर्तन में भाग लेकर प्रसादी पाई.

धूमधाम से मनाया गया गुरु नानक देव का प्रकाश पर्व

इस मौके पर गुरुनानक देव के जीवन के बारे में श्रद्धालुओं को बताया गया. गुरू नानक सिखों के प्रथम गुरु हैं और इन्हें गुरु नानक, गुरु नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं और गुरुनानक जी धरती पर सामाजिक बुराइयों को दूर करने आये और प्रेम का संदेश देने आए थे.

पढ़ें- मंदिर के पुजारी को पूजा-पाठ से रोकने पर सांसद दीया कुमारी समेत 17 को अवमानना नोटिस

संत ज्ञानी सिंह ने बताया गुरु गोविंद सिंह का जीवन त्याग और बलिदान का रहा है. उन्होंने कहा कि ना बात कहूं अब की, ना बात कहूं तब की, ना होते अगर गुरु गोविंद सिंह जी, तो सुन्नत होती सबकी, गुरु गोविंद सिंह के प्रताप सिंह सिख धर्म को बड़ा आयाम मिला है. उनके जन्म दिवस के उपलक्ष्य पर खालसा सजाकर विशाल भंडारे का आयोजन किया है.

गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने प्राणों की आहुति देकर सिख और हिंदुओं के रक्षा की थी. गुरु गोविंद सिंह के प्रकाश पर्व पर सिख धर्म के अनुयायियों में भारी आस्था देखी गई. गुरुद्वारा में लंगर में पकवान बनाकर भंडारे खिलाए गए. प्रकाश पर्व पर गुरुद्वारों के सजावट कराई गई. गुरु गोविंद सिंह के विग्रह को नई पोशाक पहनाकर अरदास लगाई गई. गुरुद्वारों में सुबह से ही महिला-पुरुषों की लंबी कतारें देखी गई

बता दें कि गुरु नानक का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गांव में कार्तिक पूर्णिमा को एक खत्रीकुल में हुआ था. तलवंडी पाकिस्तान में पंजाब गुरु नानक प्रान्त का एक शहर है, इनके पिता का नाम मेहता कालूचंद खत्री और माता का नाम तृप्ता देवी था. तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया. इनकी बहन का नाम नानकी था. बचपन से इनमें प्रखर बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लगे थे.

लड़कपन से ही ये संसारिक विषयों से उदासीन रहा करते थे. पढ़ने लिखने में इनका मन नहीं लगा. करीब आठ साल की उम्र में स्कूल छूट गया, क्योंकि भगवत्प्राप्ति के संबंध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक ने हार मान ली और वे इन्हें ससम्मान घर छोड़ने आ गए. तत्पश्चात् सारा समय वे आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत करने लगे. बचपन के समय में कई चमत्कारिक घटनाएं घटी, जिन्हें देखकर गांव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व मानने लगे. बचपन के समय से ही इनमें श्रद्धा रखने वालों में इनकी बहन नानकी और गांव के शासक राय बुलार प्रमुख थे.

पढ़ें- सूरत हादसाः दुर्गम रास्तों ने रोका बस का रास्ता तो ट्रैक्टरों से पहुंचे शव, 15 लोगों की एक साथ जली चिता

गुरु नानक विवाह बालपन में सोलह वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिले के अंतर्गत लाखौकी नामक स्थान के रहने वाले मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ था. 32 वर्ष की अवस्था में इनके प्रथम पुत्र श्रीचंद का जन्म हुआ. चार वर्ष पश्चात् दूसरे पुत्र लखमीदास का जन्म हुआ. दोनों लड़कों के जन्म के उपरांत 1507 में नानक अपने परिवार का भार अपने ससुर पर छोड़कर मरदाना, लहना, बाला और रामदास इन चार साथियों को लेकर तीर्थयात्रा के लिए निकल पडे़. उन पुत्रों में से श्रीचंद आगे चलकर उदासी संप्रदाय के प्रवर्तक हुए. पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब के पृष्ठ संख्या 721 में उल्लेख है कि भगवान कबीर साहिब जी गुरु नानक देव जी के गुरु थे.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.