धौलपुर. जन-जन की आस्था का केंद्र और तीर्थों का भांजा कहा जाने वाला यह ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुण्ड मौजूदा वक्त में सरकार और देवस्थान विभाग की अनदेखी का शिकार हो चुका है. यहां अब भगवान की परिवरिश और संरक्षण के लिए विभाग की ओर से महज 100 रूपए मासिक दिए जा रहे है. जिससे संरक्षण तो दूर भगवान का भोग भी नहीं आ पाता है. ऐसे में ये लोगों की आस्था के साथ मजाक नहीं तो क्या है.
हालाल यह है कि श्रद्धालु पर्यटकों की गाड़ी जैसे ही मचकुंड मंदिर के बाहर रुकती है, तो उनका स्वागत आवारा पशु करते हैं. वहीं थोड़ा और आगे बढ़ते ही गोबर और गंदगी देख सैलानी दूर दराज से आने वाले श्रद्धालु रुमाल से नाक बंद कर लेते हैं. यही वजह है कि यहां पर फैली चारों तरफ गंदगी देखकर श्रद्धालुओं की भावनाओं को ठेस पहुंच रही है.
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जहां नहाने थे धुलते हैं पाप, वहां लोग अब छीटें मारकर चला रहे काम...
किसी समय लोग मानते थे कि इस कुंड में नहाने से सभी पाप धुल जाते हैं. आज उसी कुंड में नहाने से श्रध्दालु कतराने लगे हैं. कई तो आने के बाद पानी में पसरी गंदगी को हाथों से हटाकर छींटें मारकर अपना आना सिद्ध करते नजर आते हैं.
पुजारी ने बताया कि मंदिर की स्थापना 1899 में धौलपुर तत्कालीन रियासत के महाराज कन्हैया लाल ने कराई गई थी. भगवान् लाड़ली जगमोहन के भोगराज एवं संरक्षण के लिए नगला भगत गांव की जागीर को लगाया गया था. जिससे मंदिर का संचालन चलता था, लेकिन 1954 में तत्कालीन राजस्थान सरकार ने जागीर एक्ट खत्म कर नगला भगत गांव की जागीर को कब्जे में ले लिया.
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महंगाई के इस दौर में भगवान के लिए मात्र 100 रुपए...
सरकार ने भगवान् लाड़ली जगमोहन को नाबालिग मानते हुए मुआवजा न देकर साल1963 से 703 रूपए 50 पैसे भगवान की परिवरिश के लिए शुरू कर दिए. पुजारी ने कहा तत्कालीन समय में अमुक राशि से भगवान की परिवरिश संचालित होती थी, लेकिन वर्ष 1963 के बाद बर्ष 2013 में तत्कालीन कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार ने ठाकुर जी की भोगराज की राशि को बढ़ाकर 100 रूपये मासिक कर दिया. तब से अभी तक ठाकुर जी के संरक्षण के लिए देवस्थान विभाग द्वारा 12 सौ रूपए वार्षिक दिए जा रहे है. इससे महंगाई के दौर में मंदिर संचालन में काफी कठिनाइयां आ रही है.
मात्र 100 रुपए मासिक से भगवान का खर्च उठा पाना किसी मजाक से कम नहीं है. ऐसे में कुंड की साफ- सफाई होने का तो सवाल ही नहीं उठता है. आस्था का यह मंदिर अब सिर्फ चंद रुपयों का मोहताज हो चुका है. ऐसे में पुरातत्व का यह नमूना अपनी पहचान खोता जा रहा है. जो निंदनीय है.