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स्पेशल स्टोरी : पूरे संसार का पालन करने वाले 'भगवान' की इस तीर्थ में देखभाल करने वाला कोई नहीं

धौलपुर में अगर कोई घूमने आए और आपसे पूछे कि यहां का सबसे प्रसिद्ध स्थल क्या है. बेशक आपका जवाब होगा धार्मिक स्थल मचकुंड. लेकिन आस्था और सुंदरता के लिए विश्व प्रसिद्ध मंचकुड की अब इस दुर्दशा को देखकर आपके मुख से यही शब्द निकलेगा कि हे! भगवान... इस ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुंड की देखभाल करने वाला कोई है भी कि नहीं, जिम्मेदार आखिर कहां बैठे हैं.

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Published : Nov 29, 2019, 10:45 AM IST

धौलपुर. जन-जन की आस्था का केंद्र और तीर्थों का भांजा कहा जाने वाला यह ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुण्ड मौजूदा वक्त में सरकार और देवस्थान विभाग की अनदेखी का शिकार हो चुका है. यहां अब भगवान की परिवरिश और संरक्षण के लिए विभाग की ओर से महज 100 रूपए मासिक दिए जा रहे है. जिससे संरक्षण तो दूर भगवान का भोग भी नहीं आ पाता है. ऐसे में ये लोगों की आस्था के साथ मजाक नहीं तो क्या है.

ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुंड परवरिश और संरक्षण के लिए मोहताज

हालाल यह है कि श्रद्धालु पर्यटकों की गाड़ी जैसे ही मचकुंड मंदिर के बाहर रुकती है, तो उनका स्वागत आवारा पशु करते हैं. वहीं थोड़ा और आगे बढ़ते ही गोबर और गंदगी देख सैलानी दूर दराज से आने वाले श्रद्धालु रुमाल से नाक बंद कर लेते हैं. यही वजह है कि यहां पर फैली चारों तरफ गंदगी देखकर श्रद्धालुओं की भावनाओं को ठेस पहुंच रही है.

यह भी पढे़ं- मंदिर की चार दिवारी तोड़ने के मामले में मेघवाल समाज का उपखंड कार्यालय पर विरोध-प्रदर्शन

जहां नहाने थे धुलते हैं पाप, वहां लोग अब छीटें मारकर चला रहे काम...

किसी समय लोग मानते थे कि इस कुंड में नहाने से सभी पाप धुल जाते हैं. आज उसी कुंड में नहाने से श्रध्दालु कतराने लगे हैं. कई तो आने के बाद पानी में पसरी गंदगी को हाथों से हटाकर छींटें मारकर अपना आना सिद्ध करते नजर आते हैं.

पुजारी ने बताया कि मंदिर की स्थापना 1899 में धौलपुर तत्कालीन रियासत के महाराज कन्हैया लाल ने कराई गई थी. भगवान् लाड़ली जगमोहन के भोगराज एवं संरक्षण के लिए नगला भगत गांव की जागीर को लगाया गया था. जिससे मंदिर का संचालन चलता था, लेकिन 1954 में तत्कालीन राजस्थान सरकार ने जागीर एक्ट खत्म कर नगला भगत गांव की जागीर को कब्जे में ले लिया.

यह भी पढ़ें- सीएम पद की शपथ के बाद सिद्धि विनायक मंदिर पहुंचे उद्धव, सपरिवार माथा टेका

महंगाई के इस दौर में भगवान के लिए मात्र 100 रुपए...

सरकार ने भगवान् लाड़ली जगमोहन को नाबालिग मानते हुए मुआवजा न देकर साल1963 से 703 रूपए 50 पैसे भगवान की परिवरिश के लिए शुरू कर दिए. पुजारी ने कहा तत्कालीन समय में अमुक राशि से भगवान की परिवरिश संचालित होती थी, लेकिन वर्ष 1963 के बाद बर्ष 2013 में तत्कालीन कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार ने ठाकुर जी की भोगराज की राशि को बढ़ाकर 100 रूपये मासिक कर दिया. तब से अभी तक ठाकुर जी के संरक्षण के लिए देवस्थान विभाग द्वारा 12 सौ रूपए वार्षिक दिए जा रहे है. इससे महंगाई के दौर में मंदिर संचालन में काफी कठिनाइयां आ रही है.

मात्र 100 रुपए मासिक से भगवान का खर्च उठा पाना किसी मजाक से कम नहीं है. ऐसे में कुंड की साफ- सफाई होने का तो सवाल ही नहीं उठता है. आस्था का यह मंदिर अब सिर्फ चंद रुपयों का मोहताज हो चुका है. ऐसे में पुरातत्व का यह नमूना अपनी पहचान खोता जा रहा है. जो निंदनीय है.

धौलपुर. जन-जन की आस्था का केंद्र और तीर्थों का भांजा कहा जाने वाला यह ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुण्ड मौजूदा वक्त में सरकार और देवस्थान विभाग की अनदेखी का शिकार हो चुका है. यहां अब भगवान की परिवरिश और संरक्षण के लिए विभाग की ओर से महज 100 रूपए मासिक दिए जा रहे है. जिससे संरक्षण तो दूर भगवान का भोग भी नहीं आ पाता है. ऐसे में ये लोगों की आस्था के साथ मजाक नहीं तो क्या है.

ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुंड परवरिश और संरक्षण के लिए मोहताज

हालाल यह है कि श्रद्धालु पर्यटकों की गाड़ी जैसे ही मचकुंड मंदिर के बाहर रुकती है, तो उनका स्वागत आवारा पशु करते हैं. वहीं थोड़ा और आगे बढ़ते ही गोबर और गंदगी देख सैलानी दूर दराज से आने वाले श्रद्धालु रुमाल से नाक बंद कर लेते हैं. यही वजह है कि यहां पर फैली चारों तरफ गंदगी देखकर श्रद्धालुओं की भावनाओं को ठेस पहुंच रही है.

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जहां नहाने थे धुलते हैं पाप, वहां लोग अब छीटें मारकर चला रहे काम...

किसी समय लोग मानते थे कि इस कुंड में नहाने से सभी पाप धुल जाते हैं. आज उसी कुंड में नहाने से श्रध्दालु कतराने लगे हैं. कई तो आने के बाद पानी में पसरी गंदगी को हाथों से हटाकर छींटें मारकर अपना आना सिद्ध करते नजर आते हैं.

पुजारी ने बताया कि मंदिर की स्थापना 1899 में धौलपुर तत्कालीन रियासत के महाराज कन्हैया लाल ने कराई गई थी. भगवान् लाड़ली जगमोहन के भोगराज एवं संरक्षण के लिए नगला भगत गांव की जागीर को लगाया गया था. जिससे मंदिर का संचालन चलता था, लेकिन 1954 में तत्कालीन राजस्थान सरकार ने जागीर एक्ट खत्म कर नगला भगत गांव की जागीर को कब्जे में ले लिया.

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महंगाई के इस दौर में भगवान के लिए मात्र 100 रुपए...

सरकार ने भगवान् लाड़ली जगमोहन को नाबालिग मानते हुए मुआवजा न देकर साल1963 से 703 रूपए 50 पैसे भगवान की परिवरिश के लिए शुरू कर दिए. पुजारी ने कहा तत्कालीन समय में अमुक राशि से भगवान की परिवरिश संचालित होती थी, लेकिन वर्ष 1963 के बाद बर्ष 2013 में तत्कालीन कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार ने ठाकुर जी की भोगराज की राशि को बढ़ाकर 100 रूपये मासिक कर दिया. तब से अभी तक ठाकुर जी के संरक्षण के लिए देवस्थान विभाग द्वारा 12 सौ रूपए वार्षिक दिए जा रहे है. इससे महंगाई के दौर में मंदिर संचालन में काफी कठिनाइयां आ रही है.

मात्र 100 रुपए मासिक से भगवान का खर्च उठा पाना किसी मजाक से कम नहीं है. ऐसे में कुंड की साफ- सफाई होने का तो सवाल ही नहीं उठता है. आस्था का यह मंदिर अब सिर्फ चंद रुपयों का मोहताज हो चुका है. ऐसे में पुरातत्व का यह नमूना अपनी पहचान खोता जा रहा है. जो निंदनीय है.

Intro:आस्थावादी लोग बेशक भगवान् को संसार का पालनकर्ता माने,लेकिन धौलपुर जिला मुख्यालय स्थिति सभी तीर्थों का भांजा कहे जाने वाला तीर्थराज मचकुण्ड भगवान् लाड़ली जगमोहन भोग प्रसादी पोषक एवं संरक्षण के लिए मोहताज है।देवस्थान विभाग द्वारा भगवान् की परिवरिश के लिए सालाना महज 12 सौ रूपये दिए जा रहे है।जिससे भगवान् की पूजा अर्चन भोग प्रसादी आदि का संचालन किया जा रहा है। जिससे भक्त और श्रद्धालुओं की आस्था को ठेस पहुंच रही है। 





Body:जानकारी के मुताबिक धौलपुर शहर का ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुण्ड मौजूदा वक्त में सरकार और देवस्थान विभाग की अनदेखी का शिकार है। भगवान् की परिवरिश और संरक्षण के लिए संबंधित विभाग द्वारा महज 100 रूपये मासिक दिए जा रहे है। जो वर्तमान के महगाई के दौर में नाकाफी साबित होते है। मंदिर महंत कृष्णदास के मुताबिक तीर्थराज मचकुण्ड लाड़ली जगमोहन मंदिर राजकीय सुपुर्दगी श्रेणी में इंद्राज है। लेकिन देवस्थान विभाग की उदासीनता से श्रद्धालुओं आस्था पर ठेस लग रही है। पुजारी ने बताया कि मंदिर की स्थापना संबत 1899 में धौलपुर तत्कालीन रियासत के महाराज कन्हैया लाल द्वारा कराई गई थी। भगवान् लाड़ली जगमोहन के भोगराज एवं संरक्षण के लिए नगला भगत गांव की जागीर को लगाया गया था। जिससे मंदिर का संचालन चलता था। लेकिन 1954 में तत्कालीन राजस्थान सरकार ने जागीर एक्ट खत्म कर नगला भगत गाँव की जागीर को कब्जे में ले लिया। सरकार ने भगवान् लाड़ली जगमोहन को नावालिग मानते हुए मुआवजा न देकर बर्ष 1963 से 703 रूपये 50 पैसे भगवान् की परिवरिश के लिये शुरू कर दिए। पुजारी ने कहा तत्कालीन समय में अमुक राशि से भगवान् की परिवरिश संचालित होती थी। लेकिन बर्ष 1963 के बाद बर्ष 2013 में तत्कालीन कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार ने ठाकुर जी की भोगराज की राशि को बढ़ाकर 100 रूपये मासिक कर दिया। तब से अभी तक ठाकुर जी के संरक्षण के लिए देवस्थान विभाग द्वारा 12 सौ रूपये बार्षिक दिए जा रहे है। इससे महगाई के दौर में मंदिर संचालन में काफी कठिनाइयां आ रही है। बर्ष 2013 के बाद भाजपा की बसुंधरा सरकार सत्ता में रही।वर्तमान में  कांग्रेस की गहलोत सरकार है। लेकिन भगवान् लाड़ली जगमोहन की तरफ ध्यान किसी का नहीं है। पुजारी ने बताया मौजूदा वक्त में मंदिर की देखभाल के साथ भगवान् की पोषक,भोग प्रसादी,शृंगार,आभूषण आदि पर लगभग 25 से 30 हजार तक का मासिक खर्च होता है।

गौरतलब है कि पौराणिक मान्यता के मुताबिक धौलपुर का तीर्थराज मचकुण्ड सभी तीर्थों का भांजा माना जाता है। भगवान् श्री कृष्ण ने द्वापुर युग में कालियवन नामक राक्षस का भागकर वध किया था। उसी समय से भगवान् श्री कृष्ण का नाम रणछोड़ पड़ गया। भगवान् के वरदान से तीर्थराज मचकण्ड सभी तीर्थों का पूज्य हो गया। शादी के बाद नव दम्पत्ति की कलंगी मचकुण्ड के सरोवर में विसर्जित की जाती है। जिससे जीवन में सुख सम्बृद्धि बनी रही है। पुराजी ने बताया कि वर्तमान समय में मंदिर देवस्थान विभाग और सरकार की घोर उपेक्षा का शिकार है। लाखों भक्त और श्रद्धालुओं की आस्था मंदिर से जुडी है। लिहाजा सनातन धर्म के पुजारी लोगों की आस्था को ठेस पहुंच रही है। 

तीर्थराज मचकुण्ड की भव्य ईमारत हो रही जर्जर 

देवस्थान विभाग और सरकार की अनदेखी से ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुण्ड की इमारत जर्जर हो जीर्ण हो रही है। मंदिर की छतरियां,कंगूरे,गुम्मद और दीवार जबाब देने लगी है। खासकर दीवारों से पत्थर टूटकर गिर रहे है। इमारत का रख रखाब और संरक्षण नहीं होने से बेशकीमती धरोहर अपने मूल अस्तित्वको खो रही है। जिसकी जबाबदेई सीधी पर्यटन विभाग,पुरातत्व विभाग एवं देवस्थान विभाग की बनती है। गौरतलब है कि पर्यटन विभाग ही पुरातत्व विभाग को इमारत के संरक्षण के लिए फंड स्वीकृत कराता है। देवस्थान विभाग भगवान् के संरक्षण भोगराज,पोषक शृंगार आदि की जिम्मेदारी का निर्वहन करता है। लेकिन मौजूदा समय में तीनों विभाग अपनी जिम्मेदारी से दूर है। जिससे श्रद्धालुओं में आक्रोश व्याप्त है। 





Conclusion:मंदिर पुजारी को भी पूजा के एवज में कोई नहीं नहीं दिया जा रहा है। जिसे मंदिर पर आने वाले श्रद्धालु वहन करते है। भगवान् लाड़ली जगमोहन मंदिर पर जन्माष्टमी,राम नवमी,गंगा दशहरा,पूर्णिमा आदि बिशेष पर्व पर खर्च और अधिक बढ़ जाता है। जिससे मंदिर संचालन में काफी संघर्ष करना पड़ रहा है। 
1,Byte:- देव प्रकाश,श्रद्धालु
2,Byte:- गिरीश शर्मा,श्रद्धालु
3,Byte:- राजेश कुमार,श्रद्धालु
4,Byte:- स्वामी कृष्ण दास,मंदिर महंत
Report:-
Neeraj Sharma
Dholpur
मान्यवर स्पेशल स्टोरी सादर प्रेषित है.
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