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दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योगः विदेशों में बिकने वाले कालीन और गलीचे अब झेल रहे बेरूखी - popular mat

सरकार की बेरुखी झेल रहा धौलपुर का हाथ करघा उद्योग दम तोड़ने की कगार पर पहुंच गया है. उद्योग संचालकों के लिए संसाधनों का अभाव होने पर ये उद्योग खत्म होता दिखाई पड़ रहा है. धौलपुर के गांव पाए का पुरा और सेवा का पुरा में बनने वाले कालीन एवं गलीचों की मांग देश सहित विदेशों तक है, लेकिन हालत इतनी खराब है कि कारखाने बंद होने के कगार पर पहुंच गए है. देखिए धौलपुर से स्पेशल रिपोर्ट...

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दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग
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Published : Dec 16, 2019, 11:35 PM IST

धौलपुर. जिले के गांव पाए का पुरा और सेवा का पुरा में संचालित हथकरघा उद्योग की कालीन एवं गलीचों की मांग देश सहित विदेशों में है. हद करघा उद्योग सरकार की बेरुखी से झोपड़ियों में संचालित है.

दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग

हथकरघा उद्योग की कालीन एवं गलीचे देश विदेश में अपनी छाप छोड़ रहे हैं. लेकिन उद्योग संचालकों के लिए संसाधनों का अभाव होने पर ये उद्योग दम तोड़ रहे है. कुछ वर्षों पूर्व शुरू हुए लघु उद्योग को ग्रामीणों ने निजी बल बूते पर पंख लगाए थे. प्रशासन और सरकार की उदासीनता से हथकरघा कारखाने बंद होने के कगार पर पहुंच रहे हैं. हथकरघा उधोग से निर्मित कालीन और गलीचों की मांग देश के जयपुर, लखनऊ, हैदराबाद सहित फ़्रांस, रूस, लंदन और ब्राजील में है.

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हथकरघा उद्योग को ग्रामीणों द्वारा निजी स्तर पर जगह का अभाव होने पर झोंपड़ियों में संचालित किया जा रहा है. पूंजी का अभाव होने के कारण इस बेशकीमती उद्योग को पंख नहीं लग पा रहे हैं. आलम यह है कि यह लघु कारखाने बंद होने के कगार पर पहुंच रहे हैं. हथकरघा उद्योग में बेशकीमती कालीन और गलीचे बनाए जाते है.

उद्योग संचालक बचन सिंह ने बताया कि हथकरघा उद्योग को गांव के अंदर झोंपड़ियों में संचालित किया जा रहा है. हथकरघा उद्योग में अधिकांश महिलाओं को रोजगार दिया जाता है. गांव की युवतियां और महिलाएं हाथों से मेहनत कर कालीन एवं गलीचे बनाती है.

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पूंजी का अभाव होने पर कच्चा माल बड़े व्यापारी उपलब्ध कराते हैं. ग्रामीण जयपुर, आगरा, हैदराबाद और लखनऊ से व्यापारियों से सम्पर्क बने हुए है, जो कच्चा माल देते हैं. कच्चे माल की कालीन एवं गलीचे झोंपड़ियों में संचालित हथकरघा उद्योग में बनाए जाते हैं.

संचालक ने बताया कि एक कालीन के निर्माण में तीन महिलाओं को हाथों से बारीक काम करने में करीब एक माह का समय लगता है, जिसकी मजदूरी महिलाओं को करीब 20 हजार रूपए दी जाती है. कालीन को तैयार कर बड़े शहरों के दुकानदारों को पहुंचाया जाता है, जिसकी लाखों में कमाई की जाती है.

यह भी पढ़ें- नो टू सिंगल यूज प्लास्टिक : कचरे के इस्तेमाल से सजावटी सामान बनाता है यह दंपती​​​​​​​

बचन सिंह ने बताया भारत देश के अलावा फ्रांस,रूस, जर्मनी, जापान, लंदन और ब्राजील में भारी मांग है. लेकिन पूंजी एवं संसाधनों के अभाव में लघु हथकरधा उधोग दम तोड़ रहा है.
ऐसे तैयार की जाती है कालीन...

हथकरघा उद्योग संचालक ने बताया कि कच्चा माल बड़े शहर के दुकानदारों से लिया जाता है. उसे लाकर ग्रामीण महिलाएं बारीक कारीगरी से नक़्शे के मुताबिक़ कालीन का निर्माण करती है. एक कालीन के निर्माण में तीन महिलाएं काम करती हैं, जो हाथों से ही डिजाइन बनाती हैं.

कालीन की डिजाइन को देखकर ही मार्केट में इसकी कीमत निर्धारित की जाती है. जितनी अच्छी डिजाइन होती है, उसके अनुसार ही उसकी कीमत अदा की जाती है. उद्योग संचालक ने बताया कि कालीन का निर्माण वे ही लोग करते हैं. लेकिन मुनाफा अधिक बड़े शहरों के दुकानदार कमा रहे हैं.

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पूंजी नहीं होने पर कच्चा माल उपलब्ध नहीं होता है, जिससे मजबूरी में दुकानदारों से माल लिया जाता है. जिसकी काफी कम कीमत हथकरघा उद्योग संचालकों को मिल रही है.
वहीं देखरेख की बात की जाए तो प्रशासन और सरकार इन उद्योगों पर ध्यान नहीं दे रही है. जिससे बेशकीमती कालीन तैयार करने वाले उद्योग पनप नहीं पा रही.

धौलपुर. जिले के गांव पाए का पुरा और सेवा का पुरा में संचालित हथकरघा उद्योग की कालीन एवं गलीचों की मांग देश सहित विदेशों में है. हद करघा उद्योग सरकार की बेरुखी से झोपड़ियों में संचालित है.

दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग

हथकरघा उद्योग की कालीन एवं गलीचे देश विदेश में अपनी छाप छोड़ रहे हैं. लेकिन उद्योग संचालकों के लिए संसाधनों का अभाव होने पर ये उद्योग दम तोड़ रहे है. कुछ वर्षों पूर्व शुरू हुए लघु उद्योग को ग्रामीणों ने निजी बल बूते पर पंख लगाए थे. प्रशासन और सरकार की उदासीनता से हथकरघा कारखाने बंद होने के कगार पर पहुंच रहे हैं. हथकरघा उधोग से निर्मित कालीन और गलीचों की मांग देश के जयपुर, लखनऊ, हैदराबाद सहित फ़्रांस, रूस, लंदन और ब्राजील में है.

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हथकरघा उद्योग को ग्रामीणों द्वारा निजी स्तर पर जगह का अभाव होने पर झोंपड़ियों में संचालित किया जा रहा है. पूंजी का अभाव होने के कारण इस बेशकीमती उद्योग को पंख नहीं लग पा रहे हैं. आलम यह है कि यह लघु कारखाने बंद होने के कगार पर पहुंच रहे हैं. हथकरघा उद्योग में बेशकीमती कालीन और गलीचे बनाए जाते है.

उद्योग संचालक बचन सिंह ने बताया कि हथकरघा उद्योग को गांव के अंदर झोंपड़ियों में संचालित किया जा रहा है. हथकरघा उद्योग में अधिकांश महिलाओं को रोजगार दिया जाता है. गांव की युवतियां और महिलाएं हाथों से मेहनत कर कालीन एवं गलीचे बनाती है.

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पूंजी का अभाव होने पर कच्चा माल बड़े व्यापारी उपलब्ध कराते हैं. ग्रामीण जयपुर, आगरा, हैदराबाद और लखनऊ से व्यापारियों से सम्पर्क बने हुए है, जो कच्चा माल देते हैं. कच्चे माल की कालीन एवं गलीचे झोंपड़ियों में संचालित हथकरघा उद्योग में बनाए जाते हैं.

संचालक ने बताया कि एक कालीन के निर्माण में तीन महिलाओं को हाथों से बारीक काम करने में करीब एक माह का समय लगता है, जिसकी मजदूरी महिलाओं को करीब 20 हजार रूपए दी जाती है. कालीन को तैयार कर बड़े शहरों के दुकानदारों को पहुंचाया जाता है, जिसकी लाखों में कमाई की जाती है.

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बचन सिंह ने बताया भारत देश के अलावा फ्रांस,रूस, जर्मनी, जापान, लंदन और ब्राजील में भारी मांग है. लेकिन पूंजी एवं संसाधनों के अभाव में लघु हथकरधा उधोग दम तोड़ रहा है.
ऐसे तैयार की जाती है कालीन...

हथकरघा उद्योग संचालक ने बताया कि कच्चा माल बड़े शहर के दुकानदारों से लिया जाता है. उसे लाकर ग्रामीण महिलाएं बारीक कारीगरी से नक़्शे के मुताबिक़ कालीन का निर्माण करती है. एक कालीन के निर्माण में तीन महिलाएं काम करती हैं, जो हाथों से ही डिजाइन बनाती हैं.

कालीन की डिजाइन को देखकर ही मार्केट में इसकी कीमत निर्धारित की जाती है. जितनी अच्छी डिजाइन होती है, उसके अनुसार ही उसकी कीमत अदा की जाती है. उद्योग संचालक ने बताया कि कालीन का निर्माण वे ही लोग करते हैं. लेकिन मुनाफा अधिक बड़े शहरों के दुकानदार कमा रहे हैं.

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पूंजी नहीं होने पर कच्चा माल उपलब्ध नहीं होता है, जिससे मजबूरी में दुकानदारों से माल लिया जाता है. जिसकी काफी कम कीमत हथकरघा उद्योग संचालकों को मिल रही है.
वहीं देखरेख की बात की जाए तो प्रशासन और सरकार इन उद्योगों पर ध्यान नहीं दे रही है. जिससे बेशकीमती कालीन तैयार करने वाले उद्योग पनप नहीं पा रही.

Intro:धौलपुर जिले के गांव पाय का पुरा एवं सेवा का पुरा में झोंपड़ियों में संचालित हथकरधा उद्धोग की कालीन एवं गलीचे देश विदेश में अपनी छाप छोड़ रहे है। लेकिन उद्धोग संचालकों के लिए संसाधनों का अभाव होने पर ये उधोग दम तोड़ रहे है। कुछ बर्षों पूर्व शुरू हुए लघु उधोग को ग्रामीणों ने निजी बल बूते पर पंख लगाए थे। प्रशासन और सर्कार की उदासीनता से हथकरधा कारखाने बंद होने के कगार पर पहुंच रहे है। हथकरधा उधोग से निर्मित कालीन और गलीचों की मांग देश के जयपुर लखनऊ हैदरावाद सहित फ़्रांस रूस लंदन और ब्राजील में है। 





Body:गौरतलब है कि धौलपुर जिले के दो छोटे गांव पाय का पुरा एवं सेवा का पुरा में संचालित हथकरधा उधोग प्रशासन और सरकार की बेरुखी से बंद होने के कगार पर पहुंच रहे है। हथकरधा उधोग को ग्रामीणों द्वारा निजी स्तर पर जगह का अभाव होने पर झोंपड़ियों में संचालित किया जा रहा है। पूंजी का अभाव होने के कारण इस बेशकीमती उधोग को पंख नहीं लग रहे है। आलम यहाँ तक है यह लघु कारखाने बंद होने के कगार पर पहुंच रहे है। हथकरधा उधोग में बेशकीमती कालीन एवं गलीचे बनाये जाते है। उधोग संचालक बचन सिंह ने बताया कि हथकरधा उधोग को गांव के अंदर झोंपड़ियों में संचालित किया जा रहा है। हथकरधा उधोग में अधिकांश महिलाओं को रोजगार दिया जाता है। गांव की युवतिया और महिलायें हाथों से मेहनत कर कालीन एवं गलीचे बनाती है। पूंजी का अभाव होने पर कच्चा माल बड़े व्यापारी उपलब्ध कराते है।जयपुर आगरा हैदराबाद और लखनऊ से व्यापारियों से सम्पर्क बने हुए है। जो कच्चा माल देते है। कच्चे माल की कालीन एवं गलीचे झोंपड़ियों में संचालित हथकरधा उधोग में बनाये जाते है।संचालक ने बताया एक कालीन के निर्माण में तीन महिलाओं को हाथों से बारीक काम करने में करीब एक माह का समय लगता है। जिसकी जिसकी मजदूरी महिलाओं को करीब 20 हजार रूपये दी जाती है। कालीन को तैयार कर बड़े शहरों के दुकानदारों को पहुंचाया जाता है। जिसकी लाखों में कमाई की जाती है। बचन सिंह ने बताया भारत देश के अलावा फ्रांस,रूस जर्मनी जापान लंदन और ब्राजील में भारी मांग है। लेकिन पूंजी एवं संसाधनों के अभाव में लघु हथकरधा उधोग दम तोड़ रहा है। 

ऐसे तैयार की जाती है कालीन 

हथकरधा उधोग संचालक ने बताया कि कच्चा माल बड़े शहर के दुकानदारों से लिया जाता है। उसे लाकर ग्रामीण महिलाएं बारीकी कारीगरी से नक़्शे के मुताबिक़ कालीन का निर्माण करती है। एक कालीन के निर्माण में तीन महिलाये काम करती है। जो हाथों से ही डिजाइन सलेक्ट बनाई जाती है। बारीकी नक्काशी डालकर कालीन को बनाया जाता है। कालीन की डिजाइन को देखकर ही मार्केट में कीमत निर्धारित की जाती है। जितनी डिजाइन अच्छी होती है। उसकी के अनुसार कीमत अदा की जाती है। उधोग संचालक ने बताया कि कालीन का निर्माण हम लोग करते है। लेकिन मुनाफा अधिक बड़े शहरों के दुकानदार कमा रहे है। पूंजी नहीं होने पर कच्चा माल उपलब्ध नहीं होता है। जिससे मजबूरी में दुकानदारों से माल लिया जाता है ,जिसकी काफी कम कीमत हथकरधा उधोग संचालकों को मिल रही है।


Conclusion:उधर प्रशासन और सरकार इन उधोग पर ध्यान नहीं दे रही है। जिससे बेशकीमती कालीन तैयार करने वाले उधोग दम तोड़ रहे है। 
1,Byte:- सुनीता,कारीगर
2,Byte:- गोरा,कारीगर
Report:-
Neeraj Sharma
Dholpur
सर स्पेशल स्टोरी सादर प्रेषित है.
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