धौलपुर. प्रदेश के धौलपुर में चम्बल नदी के बीहड़ो में स्थित प्राचीन मंदिर अचलेश्वर महादेव अपनी विशेष पहचान के लिए देशभर में ख्याति बटोर रहा है. यह शिव मंदिर करीव हजारों साल पुराना है. किसी को नहीं मालूम की इसकी स्थापना कब की गई. अचलेश्वर महादेव का शिव लिंग दिन में तीन बार रंग बदलता है. सुबह लाल दोपहर को केसरिया और शांम को श्याम वर्ण का हो जाता है. यह अपने आप में चमत्कार से कम नहीं है. यही कारण है कि लाखों की तादाद में अब श्रद्धालु पहुंचते हैं.
श्रद्धालुओं के अनुसार मंदिर बीहड़ में होने की वजह से भक्त डर की वजह से कम संख्या में पहुंचते थे. यहां डकैतों और जंगली जानवरों का खतरा बना रहता था. लेकिन समय बदलने के साथ हालात भी बदल गए. भगवान् अचलेश्वर पर मौजूदा समय में भक्तों का तांता लगा रहता है. इस ऐतिहासिक और चमत्कारी शिव लिंग के दर्शन के लिए उत्तरप्रदेश-मध्यप्रदेश के श्रद्धालु भी पहुंच रहे हैं.
खुदाई के दौरान अचानक बढ़ने लगा आकार
मंदिर तक जाने के लिए चम्बल पुल के बगल से भक्तों ने रास्ता बनवाया है. श्रद्धालुओं के मुताबिक मंदिर के गर्भ गृह की खुदाई भी कराई गई थी. लेकिन शिव की पिंडी का अंत नहीं पाया गया. जैसे -जैसे खुदाई बढ़ती गयी वैसे-वैसे शिव की पिंडी की चौड़ाई भी बढ़ती गयी. ऊपर गोल नीचे चोकाकार फिर इसके बाद अष्टाकार हो गई. आखिर खुदाई करते-करते जब लम्बा समय गुजर गया तो खुदाई को बंद करा दिया.
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दिन में 3 बार रंग बदलता है शिवलिंग
भगवान अचलेश्वर के शिवलिंग का कोई अंत नहीं पाया गया. मौजूदा समय में शिवलिंग को देखने से प्रतीत होता है कि यह ज्योर्तिलिंग के रूप में स्थित है. इतना ही नहीं आपको यह जानकर हैरानी होगी कि शिवजी की पिंडी दिन में तीन बार रंग बदलती है. सुबह इसकी आभा लालिमा लिए होती है. दोपहर में यह केसरिया हो जाती है. वहीं शाम को यह सांवला रंग धारण कर लेती है.
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ऐसी मान्यता है कि कुंवारे लडके-लड़कियां अगर शिवजी से अपनी शादी के लिए प्रार्थना करते हैं. भगवान भोलेनाथ उनकी मनोकामना जरूर पूरी करते है. मंदिर में गुफाए भी है. यहां साधु-संत तपस्या करते थे. अब इन गुफाओं का कोई उपयोग नहीं होता. भक्त बताते हैं कि इस मूर्ति के दर्शन मात्र से ही अर्थ धर्म काम और मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.