चूरू. आठ विधानसभा क्षेत्रों से मिलकर बनी चूरू लोकसभा सीट पर भाजपा ने एक बार फिर मौजूदा सांसद राहुल कस्वां पर भरोसा जताकर मैदान पर उतारा है. वहीं, विधानसभा चुनाव में चूरू सीट पर राजेंद्र राठौड़ के सामने शिकस्त झेल चुके रफीक मंडेलिया को कांग्रेस ने मौका दिया है. ऐसे में अबकी बार इस सीट पर रोचक मुकाबला होने की उम्मीद है. कस्वां के सामने अपनी जीत को बरकरार रखने का दबाव है तो मंडेलिया के सामने खुद को साबित करने की चुनौती.
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर दोनो ही प्रत्याशी चुनावी मैदान पर दमखम आजमा रहे है. दोनों के सामने कई चुनौतियां हैं जिनसे पार पाने के लिए दोनों एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. दोनों पर चुनावी कैम्पेन के सहारे जनता की समस्याओं को सामने लाने और निराकरण की जिम्मेदारी है.
राहुल कस्वां के पिता रामसिंह कस्वां 1991 और 1999 से 2014 तक सांसद रहे हैं. इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में रामसिंह की जगह उनके बेटे राहुल कस्वां चूरू से सांसद बने. इस चुनाव में राहुल ने बसपा प्रत्याशी अभिनेष महर्षी को 2.94 लाख वोट से हराया था. अब पार्टी ने फिर से कस्वां पर भरोसा जताया है. कस्वां की मां कलवा कस्वां भी सादुलपुर से 2008 में विधानसभा सदस्य रह चुकी है.
कांग्रेस के रफीक मंडेलिया हाल ही में चूरू से बीजेपी के कद्दावर नेता राजेन्द्र राठौड़ के सामने चुनाव हार गए है. इससे पहले रफीक मंडेलिया 2009 में राहुल कस्वां के पिता रामसिंह कस्वां के सामने 12,400 वोट से चुनाव हार गए थे. हालांकि मंडेलिया के पिता हाजी मकबूल मंडेलिया 2008 में चूरू से विधायक रहे है. इसके बाद 2013 के चुनाव में मकबूल मंडेलिया राजेन्द्र राठौड़ से चुनाव हार गए थे.
कस्वां के सामने चुनौती
कस्वां चूरू के मौजूदा सांसद है. इसलिए लोगों को कईं अपेक्षाएं थी, जिनमे से कई पूरी नही हो पाई. सादुलपुर से पिता चुनाव हारे है और हनुमानगढ़ की नोहर व भादरा सीट से सबसे ज्यादा लीड मिली थी. अब भादरा से सीपीआइएम के बलवान पूनिया मैदान में है. पूनिया यहां उनके वोट बैंक में सेंध लगा सकते है. टिकट वितरण में बीजेपी के दिग्गज नेता से खींचतान रही. आम लोगों में चर्चा है कि इस नेता के समर्थक अगर मन से नही जुड़े तो कस्वां को नुकसान होगा.
मंडेलिया के सामने चुनौतियां
मंडेलिया को बार-बार हार के बाद भी टिकट मिलने से दूसरे दावेदार नाराज चल रहे है. उनका मानना है कि मंडेलिया के पास चुनाव प्रबंधन कमजोर है. विधानसभा चुनाव में कम अंतर से हारना भी यही बड़ी वजह है.