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मेडलमैन देवेंद्र झाझड़िया : आसान नहीं था टोक्यो का सफर...जोहड़ पर लकड़ी के भाले से किया करते थे अभ्यास - Rio Olympics

चूरू के देवेंद्र झाझड़िया ने तीसरा ओलंपिक मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है. टोक्यो पैरालंपिक में देवेंद्र ने सिल्वर मेडल जीता है. चूरू जिले में देवेंद्र की इस सफलता के बाद जश्न का माहौल है. पैरा खेलों के सचिन तेंदुलकर कहे जाने वाले भारत के जेवलिन स्टार देवेंद्र झाझड़िया ने सोमवार सवेरे टोक्यो में सिल्वर मेडल जीतने के साथ ही देश के लिए तीन ओलंपिक मेडल जीतने का इतिहास रच दिया.

Javelin Throw Devendra Jhajharia,  Tokyo Paralympics
देवेंद्र झाझड़िया ने दिलाया सिल्वर
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Published : Aug 30, 2021, 3:08 PM IST

Updated : Aug 30, 2021, 8:43 PM IST

चूरू. देवेंद्र झाझड़िया ने टोक्यो में सिल्वर जीत कर ओपंलिक में जीतने के क्रम को बरकरार रखा. इससे पहले वे एथेंस 2004 और रियो 2016 के पैरा ओलंपिक खेलों में देश के लिए स्वर्ण पदक जीत चुके हैं. भारतीय समयानुसार सोमवार 7.30 बजे शुरू हुए मुकाबले में श्रीलंका के हेराथ मुदियां ने देवेंद्र झाझड़िया का वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ते हुए 67.79 मीटर के साथ स्वर्ण पदक जीता.

देवेंद्र ने 64.35 मीटर जेवलिन फेंककर रजत पदक अपने नाम किया. राजस्थान के ही सुंदर गुर्जर ने 64.01 मीटर थ्रो के साथ कांस्य पदक जीता. देवेंद्र के सिल्वर मेडल जीतने की खबर के साथ ही जिले के राजगढ़ तहसील में स्थित उनके गांव झाझड़ियों की ढाणी सहित पूरे जिले में हर्ष की लहर दौड़ गई. उनके चाहने वालों में जश्न का माहौल बन गया. झाझड़ियों की ढाणी में यह खबर मिलते ही उनके चाचा, भाइयों एवं गांववालों ने पटाखे फोड़े तथा एक दूसरे को लड्डू खिलाकर खुशी का इजहार किया.

देवेंद्र झाझड़िया के परिवार में खुशी का माहौल

महिलाओं ने मंगलगीत गाए और लोगों ने एक-दूसरे को गुलाल लगाकर बधाई दी. सोमवार को अपने प्रदर्शन के साथ ही देवेंद्र भारत के लिए किसी भी पैरालंपिक एकल स्पर्धा में तीन बार पदक जीतने वाले पहले खिलाड़ी भी बन गए हैं. चूरू जिले की राजगढ़ तहसील के गांव झाझड़ियों की ढाणी में जन्मे देवेंद्र की इस सफलता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित विभिन्न हस्तियों ने ट्वीट कर उन्हें बधाई दी है.

पैरास्पोर्ट्स के सचिन कहे जाते हैं देवेंद्र

उल्लेखनीय है कि एथेंस पैरा ओलंपिक 2004 में स्वर्ण पदक जीतकर किसी भी एकल स्पर्धा में भारत के लिए पहला पैरा ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाले चूरू के जेवलिन थ्रोअर देवेंद्र झाझड़िया पिछले काफी समय से टोक्यो ओलंपिक की तैयारी में समर्पित ढंग से लगे हुए थे. यहां तक कि अपने पिता रामसिंह झाझड़िया की मृत्यु के समय भी वे केवल 12 दिन ही घर में रुके और तत्काल ट्रेनिंग के लिए गांधीनगर रवाना हो गए. भारत में पैरा स्पोर्ट्स के सचिन तेंदुलकर माने जाने वाले देवेंद्र और उनके प्रशंसकों को पूरा विश्वास था कि देवेंद्र मेडल जीतेंगे, इसलिए जैसे ही देवेंद्र ने परिणाम दिया, सोशल मीडिया भी पर भी वे खूब छाए. फेसबुक, ट्वीटर, व्हाट्सएप्प समेत सभी माध्यमों पर देवेंद्र की चर्चा रही.

पढ़ें- टोक्यो पैरालंपिक में राजस्थान के लिए शानदार दिन, अवनि के बाद देवेंद्र और सुंदर ने देश के लिए जीते मेडल

मिल चुका है सर्वोच्च खेल रत्न पुरस्कार

वर्ष 2004 व वर्ष 2016 में पैरा ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के बाद देवेंद्र को विभिन्न अवार्ड व पुरस्कार मिल चुके हैं. भारत सरकार द्वारा खेल उपलब्धियों के लिए देवेंद्र को राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार दिया गया. इससे पूर्व उन्हें पद्मश्री पुरस्कार, स्पेशल स्पोर्ट्स अवार्ड 2004, अर्जुन अवार्ड 2005, राजस्थान खेल रत्न, महाराणा प्रताप पुरस्कार 2005, मेवाड़ फाउंडेशन के प्रतिष्ठित अरावली सम्मान 2009 सहित अनेक इनाम-इकराम मिल चुके हैं. वे खेलों से जुड़ी विभिन्न समितियों के सदस्य रह चुके हैं.

Javelin Throw Devendra Jhajharia,  Tokyo Paralympics
मेडल के बाद उनके परिवार और गांव की महिलाएं मंगलगीत गाते हुए

साधारण किसान दंपत्ति की संतान हैं देवेंद्र

एक साधारण किसान दंपती रामसिंह और जीवणी देवी के आंगन में 10 जून 1981 को जन्मे देवेंद्र की जिंदगी में एकबारगी अंधेरा-सा छा गया, जब एक विद्युत हादसे ने उनका हाथ छीन लिया. खुशहाल जिंदगी के सुनहरे स्वप्न देखने की उम्र में बालक देवेंद्र के लिए यह हादसा मायूसी के सागर में डुबोने जैसा था. लेकिन हादसे के बाद एक लंबा वक्त बिस्तर पर गुजारने के बाद जब देवेंद्र उठा तो उसके मन में एक और ही संकल्प था. यह संकल्प था बचे हुए दूसरे हाथ से अपनी तकदीर संवारने का. देवेंद्र ने अपनी लाचारी और मजबूरी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. कुदरत के इस अन्याय को उसने अपना संबल बनाकर हाथ में भाला थाम लिया और वर्ष 2004 में एथेंस पैरा ओलंपिक में भालाफेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत कर करिश्मा कर दिखाया.

Javelin Throw Devendra Jhajharia,  Tokyo Paralympics
सिल्वर मेडल की खुशी में उनके गांव में आतिशबाजी

लकड़ी के भाले से हुई शुरुआत

सुविधाहीन परिवेश और विपरीत परिस्थितियों को देवेंद्र ने कभी अपने मार्ग की बाधा स्वीकार नहीं किया. गांव के जोहड़ में एकलव्य की तरह लक्ष्य को समर्पित देवेंद्र ने लकड़ी का भाला बनाकर खुद ही अभ्यास शुरू कर दिया. विधिवत शुरुआत हुई 1995 में स्कूली प्रतियोगिता से. कॉलेज में पढ़ते वक्त बंगलौर में राष्ट्रीय खेलों में जेवलिन थ्रो और शॉटपुट में पदक जीतने के बाद तो देवेंद्र ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 1999 में राष्ट्रीय स्तर पर जेवलिन थ्रो में सामान्य वर्ग के साथ कड़े मुकाबले के बावजूद स्वर्ण पदक जीतना देवेंद्र के लिए बड़ी उपलब्धि थी.

पढ़ें- टोक्यो पैरालंपिक : अवनि, देवेंद्र और सुंदर ने जीता मेडल, CM गहलोत ने की इनाम की घोषणा

बुसान से हुई थी ओलंपिक स्वप्न की शुरुआत

इस तरह उपलब्धियों का सिलसिला चल पड़ा. लेकिन वास्तव में देवेंद्र के ओलंपिक स्वप्न की शुरुआत हुई 2002 के बुसान एशियाड में स्वर्ण पदक जीतने के साथ. वर्ष 2003 के ब्रिटिश ओपन खेलों में देवेंद्र ने जेवलिन थ्रो, शॉटपुट और ट्रिपल जंप तीनों स्पर्धाओं में सोने के पदक अपनी झोली में डाले. देश के खेल इतिहास में देवेंद्र का नाम उस दिन सुनहरे अक्षरों में लिखा गया, जब उन्होंने 2004 के एथेंस पैरा ओलंपिक में भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता. इन खेलों में देवेंद्र द्वारा 62.15 मीटर दूर तक भाला फेंक कर बनाया गया विश्व रिकॉर्ड स्वयं देवेंद्र ने ही रियो में 63.97 मीटर भाला फेंककर तोड़ा. बाद में देवेंद्र ने वर्ष 2006 में मलेशिया पैरा एशियन गेम में स्वर्ण पदक जीता, वर्ष 2007 में ताईवान में अयोजित पैरा वर्ल्ड गेम में स्वर्ण पदक जीता और वर्ष 2013 में लियोन (फ्रांस) में हुई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक देश की झोली में डाला.

अनुशासन व समर्पण से मिली सफलता

अपनी मां जीवणी देवी और डॉ. एपीजे कलाम को अपना आदर्श मानने वाले देवेंद्र कहते हैं कि मैंने अपने आपको सदैव अनुशासन में रखा है. जल्दी सोना और जल्दी उठना मेरी दिनचर्या का हिस्सा है. हमेशा सकारात्मक रहने की कोशिश करता हूं. इससे मेरा एनर्जी लेवल हमेशा बना रहता है. पॉजिटिविटी आपके दिमाग को और शरीर को स्वस्थ बनाए रखती है और बहुत ताकत देती है. उम्र कितनी भी हो, कितने भी मेडल हों, कितने भी रिकॉर्ड तोड़े हों, जब भी मेडल लेकर आता हूं तो सोचता हूं कि वह कौन सा बिंदू है, जहां और अधिक काम करने की जरूरत है.

नई चीजों, तकनीक को समझने का प्रयास करता हूं और कभी खुद को महसूस नहीं होने देता कि 40 का हो गया हूं. उम्र बस एक आंकड़ा है. फिर एक्सपीरिएंस भी काम करता है. एनर्जी उन शुभचिंतकों से भी मिलती है जो मेरे हर मेडल पर वाहवाही करते हैं, मेरा हौसला बढ़ाते हैं.

चूरू. देवेंद्र झाझड़िया ने टोक्यो में सिल्वर जीत कर ओपंलिक में जीतने के क्रम को बरकरार रखा. इससे पहले वे एथेंस 2004 और रियो 2016 के पैरा ओलंपिक खेलों में देश के लिए स्वर्ण पदक जीत चुके हैं. भारतीय समयानुसार सोमवार 7.30 बजे शुरू हुए मुकाबले में श्रीलंका के हेराथ मुदियां ने देवेंद्र झाझड़िया का वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ते हुए 67.79 मीटर के साथ स्वर्ण पदक जीता.

देवेंद्र ने 64.35 मीटर जेवलिन फेंककर रजत पदक अपने नाम किया. राजस्थान के ही सुंदर गुर्जर ने 64.01 मीटर थ्रो के साथ कांस्य पदक जीता. देवेंद्र के सिल्वर मेडल जीतने की खबर के साथ ही जिले के राजगढ़ तहसील में स्थित उनके गांव झाझड़ियों की ढाणी सहित पूरे जिले में हर्ष की लहर दौड़ गई. उनके चाहने वालों में जश्न का माहौल बन गया. झाझड़ियों की ढाणी में यह खबर मिलते ही उनके चाचा, भाइयों एवं गांववालों ने पटाखे फोड़े तथा एक दूसरे को लड्डू खिलाकर खुशी का इजहार किया.

देवेंद्र झाझड़िया के परिवार में खुशी का माहौल

महिलाओं ने मंगलगीत गाए और लोगों ने एक-दूसरे को गुलाल लगाकर बधाई दी. सोमवार को अपने प्रदर्शन के साथ ही देवेंद्र भारत के लिए किसी भी पैरालंपिक एकल स्पर्धा में तीन बार पदक जीतने वाले पहले खिलाड़ी भी बन गए हैं. चूरू जिले की राजगढ़ तहसील के गांव झाझड़ियों की ढाणी में जन्मे देवेंद्र की इस सफलता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित विभिन्न हस्तियों ने ट्वीट कर उन्हें बधाई दी है.

पैरास्पोर्ट्स के सचिन कहे जाते हैं देवेंद्र

उल्लेखनीय है कि एथेंस पैरा ओलंपिक 2004 में स्वर्ण पदक जीतकर किसी भी एकल स्पर्धा में भारत के लिए पहला पैरा ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाले चूरू के जेवलिन थ्रोअर देवेंद्र झाझड़िया पिछले काफी समय से टोक्यो ओलंपिक की तैयारी में समर्पित ढंग से लगे हुए थे. यहां तक कि अपने पिता रामसिंह झाझड़िया की मृत्यु के समय भी वे केवल 12 दिन ही घर में रुके और तत्काल ट्रेनिंग के लिए गांधीनगर रवाना हो गए. भारत में पैरा स्पोर्ट्स के सचिन तेंदुलकर माने जाने वाले देवेंद्र और उनके प्रशंसकों को पूरा विश्वास था कि देवेंद्र मेडल जीतेंगे, इसलिए जैसे ही देवेंद्र ने परिणाम दिया, सोशल मीडिया भी पर भी वे खूब छाए. फेसबुक, ट्वीटर, व्हाट्सएप्प समेत सभी माध्यमों पर देवेंद्र की चर्चा रही.

पढ़ें- टोक्यो पैरालंपिक में राजस्थान के लिए शानदार दिन, अवनि के बाद देवेंद्र और सुंदर ने देश के लिए जीते मेडल

मिल चुका है सर्वोच्च खेल रत्न पुरस्कार

वर्ष 2004 व वर्ष 2016 में पैरा ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के बाद देवेंद्र को विभिन्न अवार्ड व पुरस्कार मिल चुके हैं. भारत सरकार द्वारा खेल उपलब्धियों के लिए देवेंद्र को राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार दिया गया. इससे पूर्व उन्हें पद्मश्री पुरस्कार, स्पेशल स्पोर्ट्स अवार्ड 2004, अर्जुन अवार्ड 2005, राजस्थान खेल रत्न, महाराणा प्रताप पुरस्कार 2005, मेवाड़ फाउंडेशन के प्रतिष्ठित अरावली सम्मान 2009 सहित अनेक इनाम-इकराम मिल चुके हैं. वे खेलों से जुड़ी विभिन्न समितियों के सदस्य रह चुके हैं.

Javelin Throw Devendra Jhajharia,  Tokyo Paralympics
मेडल के बाद उनके परिवार और गांव की महिलाएं मंगलगीत गाते हुए

साधारण किसान दंपत्ति की संतान हैं देवेंद्र

एक साधारण किसान दंपती रामसिंह और जीवणी देवी के आंगन में 10 जून 1981 को जन्मे देवेंद्र की जिंदगी में एकबारगी अंधेरा-सा छा गया, जब एक विद्युत हादसे ने उनका हाथ छीन लिया. खुशहाल जिंदगी के सुनहरे स्वप्न देखने की उम्र में बालक देवेंद्र के लिए यह हादसा मायूसी के सागर में डुबोने जैसा था. लेकिन हादसे के बाद एक लंबा वक्त बिस्तर पर गुजारने के बाद जब देवेंद्र उठा तो उसके मन में एक और ही संकल्प था. यह संकल्प था बचे हुए दूसरे हाथ से अपनी तकदीर संवारने का. देवेंद्र ने अपनी लाचारी और मजबूरी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. कुदरत के इस अन्याय को उसने अपना संबल बनाकर हाथ में भाला थाम लिया और वर्ष 2004 में एथेंस पैरा ओलंपिक में भालाफेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत कर करिश्मा कर दिखाया.

Javelin Throw Devendra Jhajharia,  Tokyo Paralympics
सिल्वर मेडल की खुशी में उनके गांव में आतिशबाजी

लकड़ी के भाले से हुई शुरुआत

सुविधाहीन परिवेश और विपरीत परिस्थितियों को देवेंद्र ने कभी अपने मार्ग की बाधा स्वीकार नहीं किया. गांव के जोहड़ में एकलव्य की तरह लक्ष्य को समर्पित देवेंद्र ने लकड़ी का भाला बनाकर खुद ही अभ्यास शुरू कर दिया. विधिवत शुरुआत हुई 1995 में स्कूली प्रतियोगिता से. कॉलेज में पढ़ते वक्त बंगलौर में राष्ट्रीय खेलों में जेवलिन थ्रो और शॉटपुट में पदक जीतने के बाद तो देवेंद्र ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 1999 में राष्ट्रीय स्तर पर जेवलिन थ्रो में सामान्य वर्ग के साथ कड़े मुकाबले के बावजूद स्वर्ण पदक जीतना देवेंद्र के लिए बड़ी उपलब्धि थी.

पढ़ें- टोक्यो पैरालंपिक : अवनि, देवेंद्र और सुंदर ने जीता मेडल, CM गहलोत ने की इनाम की घोषणा

बुसान से हुई थी ओलंपिक स्वप्न की शुरुआत

इस तरह उपलब्धियों का सिलसिला चल पड़ा. लेकिन वास्तव में देवेंद्र के ओलंपिक स्वप्न की शुरुआत हुई 2002 के बुसान एशियाड में स्वर्ण पदक जीतने के साथ. वर्ष 2003 के ब्रिटिश ओपन खेलों में देवेंद्र ने जेवलिन थ्रो, शॉटपुट और ट्रिपल जंप तीनों स्पर्धाओं में सोने के पदक अपनी झोली में डाले. देश के खेल इतिहास में देवेंद्र का नाम उस दिन सुनहरे अक्षरों में लिखा गया, जब उन्होंने 2004 के एथेंस पैरा ओलंपिक में भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता. इन खेलों में देवेंद्र द्वारा 62.15 मीटर दूर तक भाला फेंक कर बनाया गया विश्व रिकॉर्ड स्वयं देवेंद्र ने ही रियो में 63.97 मीटर भाला फेंककर तोड़ा. बाद में देवेंद्र ने वर्ष 2006 में मलेशिया पैरा एशियन गेम में स्वर्ण पदक जीता, वर्ष 2007 में ताईवान में अयोजित पैरा वर्ल्ड गेम में स्वर्ण पदक जीता और वर्ष 2013 में लियोन (फ्रांस) में हुई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक देश की झोली में डाला.

अनुशासन व समर्पण से मिली सफलता

अपनी मां जीवणी देवी और डॉ. एपीजे कलाम को अपना आदर्श मानने वाले देवेंद्र कहते हैं कि मैंने अपने आपको सदैव अनुशासन में रखा है. जल्दी सोना और जल्दी उठना मेरी दिनचर्या का हिस्सा है. हमेशा सकारात्मक रहने की कोशिश करता हूं. इससे मेरा एनर्जी लेवल हमेशा बना रहता है. पॉजिटिविटी आपके दिमाग को और शरीर को स्वस्थ बनाए रखती है और बहुत ताकत देती है. उम्र कितनी भी हो, कितने भी मेडल हों, कितने भी रिकॉर्ड तोड़े हों, जब भी मेडल लेकर आता हूं तो सोचता हूं कि वह कौन सा बिंदू है, जहां और अधिक काम करने की जरूरत है.

नई चीजों, तकनीक को समझने का प्रयास करता हूं और कभी खुद को महसूस नहीं होने देता कि 40 का हो गया हूं. उम्र बस एक आंकड़ा है. फिर एक्सपीरिएंस भी काम करता है. एनर्जी उन शुभचिंतकों से भी मिलती है जो मेरे हर मेडल पर वाहवाही करते हैं, मेरा हौसला बढ़ाते हैं.

Last Updated : Aug 30, 2021, 8:43 PM IST
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