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जन गण मन : यहां आजादी के 17 साल पहले ही फहरा दिया गया था तिरंगा

चूरू जिले का धर्म स्तूप, जहां आजादी के 17 साल पहले ही तिरंगे झंडे को फहरा दिया गया था. धर्म स्तूप पर तिरंगा फहराने के बाद स्वतंत्रता सेनानी चंदन मल बहड़ और उनके साथियों को काफी यातनाएं भी झेलनी पड़ीं थीं.

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आजादी से 17 साल पहले फहरा दिया तिरंगा
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Published : Jan 26, 2020, 8:15 AM IST

Updated : Jan 26, 2020, 8:43 AM IST

चूरू. तिरंगा देश की आन, बान और शान है. तिरंगे के लिए ना जाने कितने ही लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी तो कितनों ने ही कठोर संघर्ष किया है. चूरू से भी तिरंगे का अनूठा इतिहास जुड़ा हुआ है.

आजादी से 17 साल पहले फहरा दिया तिरंगा

चूरू के धर्म स्तूप पर देश के आजाद होने के 17 साल पहले ही तिरंगा झंडा फहरा दिया गया था. धर्म स्तूप पर तिरंगा फहराने के बाद स्वतंत्रता सेनानी चंदन मल बहड़ और उनके साथियों को काफी यातनाएं झेलनी पड़ीं. उनके खिलाफ मुकदमे भी दर्ज किए गए. वरिष्ठ साहित्यकार भंवर सिंह सामौर बताते हैं, कि चूरू का धर्म स्तूप आजादी की लड़ाई का प्रतीक है. चूरू की अनेक घटनाओं का साक्षी रहा है. ऐसी ही ऐतिहासिक घटना 26 जनवरी 1930 को हुई. स्वामी गोपाल दास के युवा सहयोगी चंदन मल बहड़ ने चूरू के धर्म स्तूप पर सबसे पहले तिरंगा फहराया. उनके साथियों ने भी मदद की.

आजादी से पहले पिलानी के बिड़ला परिवार ने बनवाया था धर्म स्तूप...

साहित्यकार भंवर सिंह सामौर बताते हैं, कि चूरू के धर्म स्तूप को लाल घंटाघर भी कहते हैं. इसे पिलानी के बिड़ला परिवार ने बनवाया था. बिड़ला परिवार का चूरू में ननिहाल था. इस धर्म स्तूप में विभिन्न धर्मों के महापुरुषों के वचन और उनकी ओर से कही गई बातें उकेरी गईं हैं. चूरू का यह धर्म स्तूप जिले की कई ऐतिहासिक घटनाओं को अपने आप में समेटे हुए है. बिड़ला परिवार ने ही चूरू में ऐसा ही एक और स्तूप बनवाया, जिसे सफेद घंटाघर कहते हैं.

यह दर्द भी है...

वरिष्ठ साहित्यकार भंवर सामौर बताते हैं, कि धर्म स्तूप पर तिरंगा झंडा फहराने वाले बहड़ के नाम पर चूरू शहर में एक सर्किल का नामकरण किया गया है. कलेक्ट्रेट सर्किल से बहड़ सर्किल तक उनके नाम पर एक मार्ग का नामकरण किया गया था. लेकिन आज इस मार्ग पर बहड़ के नाम की एक भी नाम पट्टिका नहीं है. प्रशासन को इस तरफ भी ध्यान देना चाहिए.

चूरू. तिरंगा देश की आन, बान और शान है. तिरंगे के लिए ना जाने कितने ही लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी तो कितनों ने ही कठोर संघर्ष किया है. चूरू से भी तिरंगे का अनूठा इतिहास जुड़ा हुआ है.

आजादी से 17 साल पहले फहरा दिया तिरंगा

चूरू के धर्म स्तूप पर देश के आजाद होने के 17 साल पहले ही तिरंगा झंडा फहरा दिया गया था. धर्म स्तूप पर तिरंगा फहराने के बाद स्वतंत्रता सेनानी चंदन मल बहड़ और उनके साथियों को काफी यातनाएं झेलनी पड़ीं. उनके खिलाफ मुकदमे भी दर्ज किए गए. वरिष्ठ साहित्यकार भंवर सिंह सामौर बताते हैं, कि चूरू का धर्म स्तूप आजादी की लड़ाई का प्रतीक है. चूरू की अनेक घटनाओं का साक्षी रहा है. ऐसी ही ऐतिहासिक घटना 26 जनवरी 1930 को हुई. स्वामी गोपाल दास के युवा सहयोगी चंदन मल बहड़ ने चूरू के धर्म स्तूप पर सबसे पहले तिरंगा फहराया. उनके साथियों ने भी मदद की.

आजादी से पहले पिलानी के बिड़ला परिवार ने बनवाया था धर्म स्तूप...

साहित्यकार भंवर सिंह सामौर बताते हैं, कि चूरू के धर्म स्तूप को लाल घंटाघर भी कहते हैं. इसे पिलानी के बिड़ला परिवार ने बनवाया था. बिड़ला परिवार का चूरू में ननिहाल था. इस धर्म स्तूप में विभिन्न धर्मों के महापुरुषों के वचन और उनकी ओर से कही गई बातें उकेरी गईं हैं. चूरू का यह धर्म स्तूप जिले की कई ऐतिहासिक घटनाओं को अपने आप में समेटे हुए है. बिड़ला परिवार ने ही चूरू में ऐसा ही एक और स्तूप बनवाया, जिसे सफेद घंटाघर कहते हैं.

यह दर्द भी है...

वरिष्ठ साहित्यकार भंवर सामौर बताते हैं, कि धर्म स्तूप पर तिरंगा झंडा फहराने वाले बहड़ के नाम पर चूरू शहर में एक सर्किल का नामकरण किया गया है. कलेक्ट्रेट सर्किल से बहड़ सर्किल तक उनके नाम पर एक मार्ग का नामकरण किया गया था. लेकिन आज इस मार्ग पर बहड़ के नाम की एक भी नाम पट्टिका नहीं है. प्रशासन को इस तरफ भी ध्यान देना चाहिए.

Intro:26 जनवरी विशेष
चूरू। तिरंगा देश की आन, बान और शान है। तिरंगे के लिए ना जाने कितने ही लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी तो कितनों ने ही कठोर संघर्ष किया है। चूरू से भी तिरंगे का अनूठा इतिहास जुड़ा हुआ है। चूरू के धर्म स्तूप पर देश के आजाद होने के 17 साल पहले ही तिरंगा झंडा फहरा दिया गया था।
धर्म स्तूप पर तिरंगा फहराने के बाद स्वतंत्रता सेनानी चंदन मल बहड़ और उनके साथियों को काफी यातनाएं झेलनी पड़ी। उनके विरुद्ध मुकदमा भी दर्ज किए गए। वरिष्ठ साहित्यकार भंवर सिंह सामौर बताते है कि चूरू का धर्म स्तूप आजादी की लड़ाई का प्रतीक है। चूरू की अनेक घटनाओं का साक्षी रहा है।
सामौर ऐसी ही ऐतिहासिक घटना 26 जनवरी 1930 को हुई। स्वामी गोपाल दास के युवा सहयोगी चंदन मल बहड़ ने चूरू के धर्म स्तूप पर सबसे पहले तिरंगा फहराया। उनके साथियों ने भी मदद की।


Body:: आजादी से पहले पिलानी के बिड़ला परिवार ने बनवाया था धर्म स्तूप
साहित्यकार भंवर सिंह सामौर बताते है कि चूरू का यह धर्म स्तूप जिसे लाल घंटाघर भी कहते है, इसे पिलानी के बिड़ला परिवार की ओर से बनवाया गया था। बिड़ला परिवार का चूरू में ननिहाल था। इस धर्म स्तूप में विभिन्न धर्मों के महापुरुषों के वचन व उनकी ओर से कही गई बातें उकेरी गई है।
साहित्यकार सामौर बताते है कि चूरू का यह धर्म स्तूप जिले की कई ऐतिहासिक घटनाओं को अपने आप मे छुपाए हुए है। बिड़ला परिवार ने ही चूरू में ऐसा ही एक ओर स्तूप बनवाया जिसे सफेद घंटाघर कहते है।


Conclusion:: यह दर्द भी है
वरिष्ठ साहित्यकार भंवर सामौर बताते है कि धर्म स्तूप पर देश का तिरंगा झंडा फहराने वाले बहड़ के नाम पर चूरू शहर में एक सर्किल का नामकरण तो किया गया है। कैलेक्ट्रेट सर्किल से बहड़ सर्किल तक उनके नाम पर एक मार्ग का नामकरण किया था। लेकिन आज इस मार्ग पर बहड़ के नाम की एक भी नाम पट्टिका नहीं है। प्रशासन को इस तरफ भी ध्यान देना चाहिए।
Last Updated : Jan 26, 2020, 8:43 AM IST
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