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स्पेशल: एक मां...दिव्यांग बेटे के गम ने ऐसा बदला कि, आज अकेले संवार रहीं 70 बच्चों का भविष्य

चूरू में एक मां की सराहनीय पहल. दरअसल, एक महिला जो एक दिव्यांग बच्चे की मां है. उन्होंने समाज के लिए कुछ ऐसा करने की ठानी कि वे आज करीब 70 बच्चों का भविष्य संवारने में लगी हुई हैं.

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Published : Feb 4, 2020, 10:19 AM IST

Updated : Feb 5, 2020, 7:10 AM IST

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दिव्यांग बच्चों के लिए खोला स्कूल

चूरू. एक मां के जीवन में सबसे बड़ा सुख उसकी संतान की खुशियां होती हैं. अपनी संतान की जरा सी तकलीफ भी माता-पिता से सहन नहीं होती. ऐसी ही एक मां है, जिन्होंने दिव्यांग बच्चों की तकलीफ को समझा और उनके लिए एक स्कूल खोला. जहां वे सात साल से 70 दिव्यांग बच्चों को नि:शुल्क पढ़ा रही हैं.

दिव्यांग बच्चों के लिए खोला स्कूल

अंजू नेहरा मधुर स्पेशल शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थान चला रही हैं, जहां वे दिव्यांग बच्चों का भविष्य संवार रही हैं. अंजू का ये सफर तब शुरू हुआ, जब बेटे मधुर का जन्म हुआ. कुछ दिनों बाद उन्हें पता चला कि उनका बेटा दिव्यांग है, तब मन को पीड़ा हुई. वहीं जब बेटा स्कूल जाने के काबिल हुआ तो दिव्यांग बच्चों के स्कूल में दाखिला करवाया. बस यहीं पर अंजू के मन में ख्याल आया कि उन्हें भी इन बच्चों के लिए कुछ करना चाहिए.

यह भी पढ़ें. वर्ल्ड कैंसर-डेः देश में हर दिन मर रहे 1300 लोग, हाड़ौती में 7 हजार हर साल

जिसके बाद अंजू ने मुंबई से स्पेशल डीएड कोर्स किया और अपने शहर आकर उन्होंने साल 2013 में बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाना शुरू कर दिया. शुरू में दो बच्चों के साथ शुरू किए गए इस सेवा कार्य का धीरे-धीरे विस्तार होता गया. आज अंजू के मधुर स्पेशल शिक्षण संस्थान स्कूल में 70 दिव्यांग बच्चें पढ़ रहे हैं. अंजू ने इस स्कूल का नाम भी बेटे मधुर के नाम पर ही रखा है.

पति ने दिया पूरा साथ...

अंजू के इस नेक काम में उनके पति का पूरा साथ मिला. नौ सेना से रिटायर्ड जवान अंजू के पति ने अपनी पेंशन का ज्यादा हिस्सा अपनी पत्नी को दे देते हैं. इतना ही नहीं वे स्कूल प्रबंधन में भी पूरा सहयोग कर रहे हैं. वहीं अंजू नेहरा को स्कूल के संचालन में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा. किराए पर स्कूल चलाने वाली अंजू को साल 2013 से अब तक सात साल में कई बार स्कूल की जगह बदलनी पड़ी.

यह भी पढ़ें. Special : 8 करोड़ रुपए की लागत से करीब 5 महीने में तैयार होगा जयपुर हेरिटेज नगर निगम कार्यालय

दिव्यांगों की मदद को हिचकते थे लोग...

अंजू का कहना है कि शुरूआत में लोग या तो ऐसे बच्चों के लिए स्कूल खोलने के लिए जगह किराए पर देते ही नहीं थे. कोई मदद को आगे भी आता था, कुछ दिन में हाथ पीछे खींच लेता था. बच्चों के स्कूल के भवन के लिए बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा. अब भामाशाह हनीफ खां ने चूरू में देपालसर में एक बीघा जमीन दान में दी है, जहां स्कूल के भवन निर्माण का काम चल रहा है.

बच्चों के लिए पूरा प्रबंध...

अंजू कहती हैं कि मैंने मेरे मंदबुद्धि बेटे का स्पेशल स्कूल में दाखिल करवाया, तभी यह ख्याल आया कि मुझे भी ऐसा स्कूल शुरू करना चाहिए. बाद में मुम्बई से डीएड कर चूरू में स्कूल शुरू कर दिया. मधुर स्पेशल में अभी 70 बच्चों के लिए 12 का स्टाफ है. वहीं स्कूल में 6 शिक्षक हैं, दो केयर टेकर हैं. बच्चों को लाने और ले जाने के लिए तीन गाड़ियां हैं. यहां बच्चों से फीस नहीं ली जाती है और स्टडी मेटेरियल भी फ्री है. यह सब व्यवस्था जनसहयोग से की जा रही है.

चूरू. एक मां के जीवन में सबसे बड़ा सुख उसकी संतान की खुशियां होती हैं. अपनी संतान की जरा सी तकलीफ भी माता-पिता से सहन नहीं होती. ऐसी ही एक मां है, जिन्होंने दिव्यांग बच्चों की तकलीफ को समझा और उनके लिए एक स्कूल खोला. जहां वे सात साल से 70 दिव्यांग बच्चों को नि:शुल्क पढ़ा रही हैं.

दिव्यांग बच्चों के लिए खोला स्कूल

अंजू नेहरा मधुर स्पेशल शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थान चला रही हैं, जहां वे दिव्यांग बच्चों का भविष्य संवार रही हैं. अंजू का ये सफर तब शुरू हुआ, जब बेटे मधुर का जन्म हुआ. कुछ दिनों बाद उन्हें पता चला कि उनका बेटा दिव्यांग है, तब मन को पीड़ा हुई. वहीं जब बेटा स्कूल जाने के काबिल हुआ तो दिव्यांग बच्चों के स्कूल में दाखिला करवाया. बस यहीं पर अंजू के मन में ख्याल आया कि उन्हें भी इन बच्चों के लिए कुछ करना चाहिए.

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जिसके बाद अंजू ने मुंबई से स्पेशल डीएड कोर्स किया और अपने शहर आकर उन्होंने साल 2013 में बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाना शुरू कर दिया. शुरू में दो बच्चों के साथ शुरू किए गए इस सेवा कार्य का धीरे-धीरे विस्तार होता गया. आज अंजू के मधुर स्पेशल शिक्षण संस्थान स्कूल में 70 दिव्यांग बच्चें पढ़ रहे हैं. अंजू ने इस स्कूल का नाम भी बेटे मधुर के नाम पर ही रखा है.

पति ने दिया पूरा साथ...

अंजू के इस नेक काम में उनके पति का पूरा साथ मिला. नौ सेना से रिटायर्ड जवान अंजू के पति ने अपनी पेंशन का ज्यादा हिस्सा अपनी पत्नी को दे देते हैं. इतना ही नहीं वे स्कूल प्रबंधन में भी पूरा सहयोग कर रहे हैं. वहीं अंजू नेहरा को स्कूल के संचालन में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा. किराए पर स्कूल चलाने वाली अंजू को साल 2013 से अब तक सात साल में कई बार स्कूल की जगह बदलनी पड़ी.

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दिव्यांगों की मदद को हिचकते थे लोग...

अंजू का कहना है कि शुरूआत में लोग या तो ऐसे बच्चों के लिए स्कूल खोलने के लिए जगह किराए पर देते ही नहीं थे. कोई मदद को आगे भी आता था, कुछ दिन में हाथ पीछे खींच लेता था. बच्चों के स्कूल के भवन के लिए बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा. अब भामाशाह हनीफ खां ने चूरू में देपालसर में एक बीघा जमीन दान में दी है, जहां स्कूल के भवन निर्माण का काम चल रहा है.

बच्चों के लिए पूरा प्रबंध...

अंजू कहती हैं कि मैंने मेरे मंदबुद्धि बेटे का स्पेशल स्कूल में दाखिल करवाया, तभी यह ख्याल आया कि मुझे भी ऐसा स्कूल शुरू करना चाहिए. बाद में मुम्बई से डीएड कर चूरू में स्कूल शुरू कर दिया. मधुर स्पेशल में अभी 70 बच्चों के लिए 12 का स्टाफ है. वहीं स्कूल में 6 शिक्षक हैं, दो केयर टेकर हैं. बच्चों को लाने और ले जाने के लिए तीन गाड़ियां हैं. यहां बच्चों से फीस नहीं ली जाती है और स्टडी मेटेरियल भी फ्री है. यह सब व्यवस्था जनसहयोग से की जा रही है.

Intro:चूरू। एक मां के जीवन में सबसे बड़ा सुख उसकी संतान की खुशियां होती है। बेटे-बेटी की जरा सी तकलीफ भी माता-पिता से सहन नहीं होती खासकर मां से। हम बात कर रहे है चूरू में विशेष बच्चों का स्कूल चलाने वाली अंजू नेहरा की। अंजू के जीवन में भी खुशियां आई। जब बेटे मधुर का जन्म हुआ। लेकिन कुछ समय बाद पता चला कि बेटा मंदबुद्धि है। तब मन को पीड़ा हुई। बेटा स्कूल जाने के काबिल हुआ तो विशेष बच्चों के स्कूल में दाखिला करवा दिया।
बस यही पर अंजू के मन में ख्याल आया कि उसे भी विशेष बच्चों के लिए कुछ करना चाहिए। विशेष बच्चों का भविष्य बनाने के लिए अंजू ने मुम्बई से स्पेशल डीएड कोर्स किया। साल 2013 में चूरू शहर में विशेष बच्चों को निशुल्क पढ़ना शुरू कर दिया। शुरू में दो बच्चों के साथ शुरू किए गए इस सेवा कार्य का धीरे-धीरे विस्तार होता गया। आज अंजू के मधुर स्पेशल शिक्षण संस्थान स्कूल में 70 विशेष बच्चों को निशुल्क पढ़ा रही है। स्कूल का नाम भी बेटे मधुर के नाम पर ही रखा है।


Body:: पति ने दिया पूरा साथ
विशेष बच्चों को निशुल्क पढ़ाने में अंजू के पति ने भी पूरा साथ दिया। नौ सेना से रिटायर्ड अंजू के पति की ज्यादातर पेंशन इन बच्चो पर ही खर्च हो रही। इतना ही नहीं वे स्कूल प्रबंधन में भी पूरा सहयोग कर रहे है।
: कई बार स्कूल करनी पड़ी शिफ्ट
अंजू नेहरा को स्कूल के संचालन में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। किराए पर स्कूल चलाने वाली अंजू को साल 2013 से अब तक सात साल में कई बार स्कूल की जगह बदलनी पड़ी।हालांकि अभी वे जहां स्कूल चला रही है वो जगह उनके पास चार साल से है।
अंजू का कहना है कि शुरुआत में लोग या तो ऐसे बच्चों के लिए स्कूल खोलने के लिए जगह किराए पर देते ही नहीं थे। देने के बाद खाली भी जल्दी ही करवा लेते थे। हालांकि अब भामाशाह हनीफ खां ने चूरू में देपालसर में एक बीघा जमीन दान में दी है, जहां भवन निर्माण का काम चल रहा है।



Conclusion:बाइट: अंजू नेहरा, संचालक, मधुर स्पेशल शिक्षण संस्थान, चूरू।
मैंने मेरे मंदबुद्धि बेटे का स्पेशल स्कूल में दाखिल करवाया तभी यह ख्याल आया कि मुझे भी ऐसा स्कूल शुरू करना चाहिए। बाद में मुम्बई से डीएड कर चूरू में स्कूल शुरू कर दिया।मधुर स्पेशल में अभी 70 बच्चों के लिए 12 का स्टाफ है। स्कूल में 6 विशेष शिक्षक है, दो केयर टेकर है और बच्चों को लाने व ले जाने के लिए तीन गाड़ी ड्राइवर है। यहां बच्चों से फीस नहीं ली जाती है और स्टडी मेटेरियल भी फ्री है। यह सब व्यवस्था जनसहयोग से की जा रही है।
Last Updated : Feb 5, 2020, 7:10 AM IST
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