चूरू. गहलोत कैबिनेट में विधान परिषद के प्रस्ताव पर मुहर लगने के साथ ही प्रदेश में एक बार फिर सियासी बयानबाजी का दौर शुरू हो गया है. विधान परिषद के गठन के जरिए सियासी लाभ लेने की जुगत में लगी गहलोत सरकार के खिलाफ अब विपक्ष ने मोर्चा खोल दिया है.
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उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने विधान परिषद के गठन की कवायद को गहलोत सरकार की ओर से असंतुष्टों को संतुष्ट करने और सरकार को बचाने का कुत्सित प्रयास बताया है. चूरू निवास पर जन सुनवाई के दौरान विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने मीडिया से मुखातिब होते हुए कहा कि साल 2012 में तत्कालीन गहलोत सरकार ने विधान परिषद के लिए प्रस्ताव पारित किया था, लेकिन पिछले चार दशक से एक भी विधान परिषद का अनुमोदन केंद्र सरकार ने नहीं किया है.
राठौड़ ने कहा कि संविधान में संशोधन के माध्यम से ही विधान परिषद प्रभावी होती है. दोनों सदनों में लोकसभा और राज्यसभा में तीन चौथाई बहुमत से संविधान का संशोधन होना जरूरी है. इन 40 सालों में बिहार के बाद किसी भी विधान परिषद का सर्जन नहीं हुआ है. राठौड़ ने कहा कि साल 2012 में तत्कालीन गहलोत सरकार ने जो प्रस्ताव पारित किया उसे 2013 में केंद्र सरकार ने कुछ आक्षेप लगाकर फिर राज्य सरकार को भेज दिया था. उसके बाद राज्यों के वित्तिय हालात में कई परिवर्तन आए हैं.
विशेष तौर पर अब कोरोना काल जैसी विकट परिस्थिति में आर्थिक स्थिति खराब है, गहलोत सरकार का दुबारा विधान परिषद के गठन के लिए प्रस्ताव भेजना सियासी चाल है. राठौड़ ने कहा कि अंतर्द्वंद से घिरी हुई अपनी सरकार को बचाने का एक कुत्सित काम गहलोत सरकार की ओर से किया जा रहा है.
सात साल बाद अचानक विधान परिषद का जिन्न बोतल से बाहर आना, कांग्रेस के भयाक्रांत विधायकों को दिलासा देने जैसा है. उन्होंने आरोप लगाया कि इस सरकार में यह सिद्ध हो गया कि यह non performing गवर्नमेंट है और इस सरकार का विकास और गवर्नेस के साथ कोई संबंध नहीं है.
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उन्होंने कहा कि गहलोत सरकार अपने को आंतरिक असंतोष से बचाने का एक प्रयास विधान परिषद के जरिए कर रहे हैं, लेकिन वह कामयाब नहीं होंगे. इस समय अचानक विधान परिषद के प्रस्ताव का गठन आना आश्चर्यचकित करने वाला है इसका मुख्य उद्देश्य एक ही है गहलोत सरकार में जो अंतर्द्वंद है उसमें कुछ लोगों को विधान परिषद में स्थान देकर संतुष्ट करने का एक प्रयास मात्र है.