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चित्तौड़ दुर्ग पर छाई सीताफल की मिठास, बाहरी लोगों को भी आ रहे रास...कई राज्यों में बढ़ी मांग - Department Of Horticulture

विश्व विख्यात चित्तौड़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) पर बड़ी संख्या में सीताफल (Shareefa Fruit) के पेड़ लगे हुए हैं. इन पेड़ों पर सीताफल की बहार आई हुई है. मिठास के लिए पहचान रखने वाले चित्तौड़गढ़ के सीताफल (शरीफा) की मांग देश के कई राज्यों में है. इन दिनों बड़ी तादाद में सीताफल टूट रहे हैं और मांग आस-पास के राज्यों तक पूरी की जा रही है. अपने परिचित, इष्ट मित्रों व अधिकारियों तक सीताफल भिजवाए जा रहे हैं

shareefa fruit in chittorgarh
चित्तौड़ दुर्ग पर छाई सीताफल की मिठास
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Published : Nov 21, 2021, 7:58 PM IST

चित्तौड़गढ़. राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के सीताफल की मिठास का लुत्फ अब कई राज्यों के लोग उठा रहे हैं. जानकारी में सामने आया कि विश्व विख्यात चित्तौड़ दुर्ग करीब 14 किलोमीटर में फैला हुआ है. इस दुर्ग की पहाड़ी पर जगह-जगह सीताफल के पेड़ लगे हुए हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि यहां सीताफल के पेड़ की बुवाई किसी ने नहीं की है. लंबे समय से यह पेड़ चित्तौड़ दुर्ग पर देखे जा रहे हैं तथा इसके पेड़ लगातार आगे की तरफ फैलते जा रहे हैं.

ऐसे में इन पेड़ों पर हर वर्ष सर्दी की शुरुआत के साथ ही सीताफल की फसल आ जाती है. चित्तौड़ दुर्ग पर बड़ी संख्या कुंड एवं बावडियां होने के कारण सीताफल के पेड़ों को पानी भी पर्याप्त मात्रा में मिलता रहता है. ऐसे में इन सीताफल की मिठास ही इनकी पहचान बन कर रह गई है. मिठास के कारण ही अन्य स्थानों के मुकाबले चित्तौड़ दुर्ग के सीताफल की मांग अधिक रहती है. यहां करीब 2 महीने ही सीताफल आते हैं, लेकिन यहां दुर्ग पर आने वाले देश-विदेश के पर्यटकों को काफी रास आते हैं.

प्रतिदिन सात से आठ क्विंटल उत्पादन...

इसके अलावा चित्तौड़गढ़ शहर से बाहर प्रदेश के अन्य जिलों तथा राज्यों में भी सीताफल की मांग रहती है. पूर्व में जो अधिकारी चित्तौड़गढ़ में रह चुके हैं वह अपने परिचित से सीताफल जरूर मंगवाते हैं. यही कारण है कि इन दिनों लगातार सीताफल पार्सल में पैक कर बाहर भिजवाए जा रहे हैं. चित्तौड़गढ़ शहर में इन दिनों आलम यह है कि अन्य स्थानों से सीताफल मंगवा कर भी चित्तौड़ दुर्ग के सीताफल बताकर बेचे जा रहे हैं और लोग बिना पूछताछ एवं जानकारी के आराम से सीताफल खरीद कर ले जा रहे हैं.

पढ़ें : शादी में चलाया पटाखा छत पर आकर गिरा..बच्चों ने जलाया तो हाथ में फटा, तीन बच्चे गंभीर घायल

बताया जा रहा है कि इस वर्ष सर्दी का मौसम थोड़ा देरी से आया और बरसात भी कम हुई थी. ऐसे में सीताफल की फसल थोड़ी कमजोर हुई है. कम उत्पादन के बावजूद भी सीताफल की अच्छी मांग है. बरसात कम होने का एक असर यह भी हुआ कि सीताफल अन्य वर्षों के मुकाबले इस वर्ष आकार में भी थोड़े छोटे हैं. इसके बावजूद सीताफल पेड़ से टूटने के साथ ही बिक्री में खत्म भी हो रहे हैं.

प्रतिदिन सात से आठ क्विंटल उत्पादन...

जानकारी में सामने आया है कि चित्तौड़ दुर्ग पर प्रतिदिन सात से आठ क्विंटल सीताफल का उत्पादन हो रहा है. यहां सीताफल के करीब 25 अलग-अलग बाड़े हैं, जिनमें अलग-अलग परिवार सीताफल तोड़ कर बिक्री करते हैं. दुर्ग के सीताफल की बिक्री 100 से 120 रुपए किलो तक हो रही है.

उद्यान विभाग और तहसील देती है ठेके, बरसात से तय होते हैं मूल्य...

जानकारी में सामने आया है कि चित्तौड़ दुर्ग के ऐतिहासिक भवनों की देख-रेख पुरातत्व विभाग करता आया है, लेकिन यहां जो सीताफल की खेती है. उसकी चित्तौड़गढ़ तहसील के अलावा उद्यान विभाग देख-रेख करता आया है. ऐसे में हर वर्ष सीताफल के पेड़ों को लेकर नीलामी होती है. इस वर्ष तहसील के अंतर्गत आने वाले सीताफल की नीलामी 91 हजार में हुई है.

वहीं, उद्यान विभाग के तहत आने वाले सीताफल की नीलामी दो लाख रुपए में हुई है. बताया जा रहा है पेड़ पर सीताफल छोटे होते हैं, तभी इनकी नीलामी की प्रक्रिया पूरी हो जाती है. बरसात अच्छी होती है तो मूल्य अधिक मिल जाते हैं. वरना इस वर्ष की तरह कम मूल्य में सीताफल की नीलामी हो जाती है.

चित्तौड़गढ़. राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के सीताफल की मिठास का लुत्फ अब कई राज्यों के लोग उठा रहे हैं. जानकारी में सामने आया कि विश्व विख्यात चित्तौड़ दुर्ग करीब 14 किलोमीटर में फैला हुआ है. इस दुर्ग की पहाड़ी पर जगह-जगह सीताफल के पेड़ लगे हुए हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि यहां सीताफल के पेड़ की बुवाई किसी ने नहीं की है. लंबे समय से यह पेड़ चित्तौड़ दुर्ग पर देखे जा रहे हैं तथा इसके पेड़ लगातार आगे की तरफ फैलते जा रहे हैं.

ऐसे में इन पेड़ों पर हर वर्ष सर्दी की शुरुआत के साथ ही सीताफल की फसल आ जाती है. चित्तौड़ दुर्ग पर बड़ी संख्या कुंड एवं बावडियां होने के कारण सीताफल के पेड़ों को पानी भी पर्याप्त मात्रा में मिलता रहता है. ऐसे में इन सीताफल की मिठास ही इनकी पहचान बन कर रह गई है. मिठास के कारण ही अन्य स्थानों के मुकाबले चित्तौड़ दुर्ग के सीताफल की मांग अधिक रहती है. यहां करीब 2 महीने ही सीताफल आते हैं, लेकिन यहां दुर्ग पर आने वाले देश-विदेश के पर्यटकों को काफी रास आते हैं.

प्रतिदिन सात से आठ क्विंटल उत्पादन...

इसके अलावा चित्तौड़गढ़ शहर से बाहर प्रदेश के अन्य जिलों तथा राज्यों में भी सीताफल की मांग रहती है. पूर्व में जो अधिकारी चित्तौड़गढ़ में रह चुके हैं वह अपने परिचित से सीताफल जरूर मंगवाते हैं. यही कारण है कि इन दिनों लगातार सीताफल पार्सल में पैक कर बाहर भिजवाए जा रहे हैं. चित्तौड़गढ़ शहर में इन दिनों आलम यह है कि अन्य स्थानों से सीताफल मंगवा कर भी चित्तौड़ दुर्ग के सीताफल बताकर बेचे जा रहे हैं और लोग बिना पूछताछ एवं जानकारी के आराम से सीताफल खरीद कर ले जा रहे हैं.

पढ़ें : शादी में चलाया पटाखा छत पर आकर गिरा..बच्चों ने जलाया तो हाथ में फटा, तीन बच्चे गंभीर घायल

बताया जा रहा है कि इस वर्ष सर्दी का मौसम थोड़ा देरी से आया और बरसात भी कम हुई थी. ऐसे में सीताफल की फसल थोड़ी कमजोर हुई है. कम उत्पादन के बावजूद भी सीताफल की अच्छी मांग है. बरसात कम होने का एक असर यह भी हुआ कि सीताफल अन्य वर्षों के मुकाबले इस वर्ष आकार में भी थोड़े छोटे हैं. इसके बावजूद सीताफल पेड़ से टूटने के साथ ही बिक्री में खत्म भी हो रहे हैं.

प्रतिदिन सात से आठ क्विंटल उत्पादन...

जानकारी में सामने आया है कि चित्तौड़ दुर्ग पर प्रतिदिन सात से आठ क्विंटल सीताफल का उत्पादन हो रहा है. यहां सीताफल के करीब 25 अलग-अलग बाड़े हैं, जिनमें अलग-अलग परिवार सीताफल तोड़ कर बिक्री करते हैं. दुर्ग के सीताफल की बिक्री 100 से 120 रुपए किलो तक हो रही है.

उद्यान विभाग और तहसील देती है ठेके, बरसात से तय होते हैं मूल्य...

जानकारी में सामने आया है कि चित्तौड़ दुर्ग के ऐतिहासिक भवनों की देख-रेख पुरातत्व विभाग करता आया है, लेकिन यहां जो सीताफल की खेती है. उसकी चित्तौड़गढ़ तहसील के अलावा उद्यान विभाग देख-रेख करता आया है. ऐसे में हर वर्ष सीताफल के पेड़ों को लेकर नीलामी होती है. इस वर्ष तहसील के अंतर्गत आने वाले सीताफल की नीलामी 91 हजार में हुई है.

वहीं, उद्यान विभाग के तहत आने वाले सीताफल की नीलामी दो लाख रुपए में हुई है. बताया जा रहा है पेड़ पर सीताफल छोटे होते हैं, तभी इनकी नीलामी की प्रक्रिया पूरी हो जाती है. बरसात अच्छी होती है तो मूल्य अधिक मिल जाते हैं. वरना इस वर्ष की तरह कम मूल्य में सीताफल की नीलामी हो जाती है.

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