चित्तौड़गढ़. जिले के कपासन उपखण्ड के प्रमुख तीर्थ स्थल शनि महाराज मंदिर संपूर्ण मेवाड़ सहित हाड़ौती मालवा व मारवाड़ क्षेत्र में प्रसिद्धि पाकर राजस्थान व मध्यप्रदेश का प्रमुख तीर्थ बन चुका है. प्रत्येक शनिवार और अमावस्या को दूर दराज से हजारों की तादाद में श्रद्वालु दर्शन करने के लिय यहां पहुंचते हैं. किवदन्ती के अनुसार मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह इस शनि प्रतिमा को अपने हाथी पर बैठाकर उदयपुर ले जा रहे थे. आली गांव में आकर मूर्ति हाथी से अचानक गायब हो गई. काफी ढूंढने का प्रयास करने के बाद भी नहीं मिली. कई वर्षो बाद गांव उचनार खुर्द निवासी जीतमल जाट के खेत से मूर्ति का कुछ हिस्सा प्रकट हुआ. जिसकी लोगों ने काला भेरू नाम रख कर पूजा अर्चना आरम्भ कर दी थी.
प्रतिमा देव शनि महाराज की बताने पर सभी ने यहां तेल चढ़ाना शुरू कर दिया. इसी दौरान यहां एक प्राकृतिक तेल कुण्ड भी खुदाई में निकला. लोग यहां अपनी मंन्नत पूरी होने पर शनिदेव को चुरमा बाटी का भोग लगाते हैं. कहते हैं यहां भोग मंन्दिर में जब तक नहीं पहुंच जाता चीटियां भोजन के पास नही जाती. जैसे ही शनिदेव को भोग लगता है चीटियां चढ़ना शुरू हो जाती हैं.श्रृद्धालु शनिदेव को प्रसन्न करने के लिये यहां काले कपडे़, काला अन्न, काली धातु का दान करते हैं. वहीं अपने जूते भी वहीं छोड़ कर जाते हैं. मंदिर प्रबंधन श्रृद्धालुओं के द्वारा यहां छोड़ गए जूतों के निस्तारण के लिये काफी धनराशि व्यय करता है.
तेल के चढ़ावे की भारी आवक को देखते हुए यहां कार्यरत प्रबन्धकारणी समिति द्वारा 3600 वर्ग फिट में फेले 27 फिट गहरे कुण्ड का निमार्ण करवाया गया है. इसके भरने के बाद इसी नाप का दूसरा व तीसरा कुण्ड भी बनाया गया. इन तेल के कुण्डों में भरे लाखों लीटर तेल में चिटियां तक नहीं लगती. यह तेल चर्मरोग के उपचार के लिये लोग ले जाते हैं. प्रबन्धकारणी समिति के सचिव कालू सिंह, अध्यक्ष मदन सिह राणावत सहित पूरी कमेठी द्वारा इस धार्मिक स्थान के विकास के लिये कई कार्य किए गए हैं. जिससे यहां आने वाले श्रद्वालुओं को किसी प्रकार की कोई तकलीफ ना हो.