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राजस्थान में एक ऐसा मंदिर....जहां दर्शन के बाद लोग जूते छोड़कर चले जाते हैं

मारवाड़ क्षेत्र एक प्रमुख तीर्थस्थल बन चुका है. प्रत्येक शनिवार और अमावस्या को दूर दराज से हजारों की तादाद में श्रृद्धालु दर्शन करने के लिय यहां पहुंचते हैं. श्रृद्धालु शनि देव को प्रसन्न करने के लिये यहां काले कपडे़, काला अन्न, काली धातु का दान करते हैं. वहीं श्रृद्धालु अपने जूते भी यहां छोड़ कर चले जाते हैं.

राजस्थान का शनि मंदिर जहां दर्शन के बाद लोग जूते छोड़कर चले जाते हैं.
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Published : May 13, 2019, 1:40 PM IST

Updated : May 13, 2019, 2:08 PM IST

चित्तौड़गढ़. जिले के कपासन उपखण्ड के प्रमुख तीर्थ स्थल शनि महाराज मंदिर संपूर्ण मेवाड़ सहित हाड़ौती मालवा व मारवाड़ क्षेत्र में प्रसिद्धि पाकर राजस्थान व मध्यप्रदेश का प्रमुख तीर्थ बन चुका है. प्रत्येक शनिवार और अमावस्या को दूर दराज से हजारों की तादाद में श्रद्वालु दर्शन करने के लिय यहां पहुंचते हैं. किवदन्ती के अनुसार मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह इस शनि प्रतिमा को अपने हाथी पर बैठाकर उदयपुर ले जा रहे थे. आली गांव में आकर मूर्ति हाथी से अचानक गायब हो गई. काफी ढूंढने का प्रयास करने के बाद भी नहीं मिली. कई वर्षो बाद गांव उचनार खुर्द निवासी जीतमल जाट के खेत से मूर्ति का कुछ हिस्सा प्रकट हुआ. जिसकी लोगों ने काला भेरू नाम रख कर पूजा अर्चना आरम्भ कर दी थी.

राजस्थान का शनि मंदिर जहां दर्शन के बाद लोग जूते छोड़कर चले जाते हैं.

प्रतिमा देव शनि महाराज की बताने पर सभी ने यहां तेल चढ़ाना शुरू कर दिया. इसी दौरान यहां एक प्राकृतिक तेल कुण्ड भी खुदाई में निकला. लोग यहां अपनी मंन्नत पूरी होने पर शनिदेव को चुरमा बाटी का भोग लगाते हैं. कहते हैं यहां भोग मंन्दिर में जब तक नहीं पहुंच जाता चीटियां भोजन के पास नही जाती. जैसे ही शनिदेव को भोग लगता है चीटियां चढ़ना शुरू हो जाती हैं.श्रृद्धालु शनिदेव को प्रसन्न करने के लिये यहां काले कपडे़, काला अन्न, काली धातु का दान करते हैं. वहीं अपने जूते भी वहीं छोड़ कर जाते हैं. मंदिर प्रबंधन श्रृद्धालुओं के द्वारा यहां छोड़ गए जूतों के निस्तारण के लिये काफी धनराशि व्यय करता है.

तेल के चढ़ावे की भारी आवक को देखते हुए यहां कार्यरत प्रबन्धकारणी समिति द्वारा 3600 वर्ग फिट में फेले 27 फिट गहरे कुण्ड का निमार्ण करवाया गया है. इसके भरने के बाद इसी नाप का दूसरा व तीसरा कुण्ड भी बनाया गया. इन तेल के कुण्डों में भरे लाखों लीटर तेल में चिटियां तक नहीं लगती. यह तेल चर्मरोग के उपचार के लिये लोग ले जाते हैं. प्रबन्धकारणी समिति के सचिव कालू सिंह, अध्यक्ष मदन सिह राणावत सहित पूरी कमेठी द्वारा इस धार्मिक स्थान के विकास के लिये कई कार्य किए गए हैं. जिससे यहां आने वाले श्रद्वालुओं को किसी प्रकार की कोई तकलीफ ना हो.

चित्तौड़गढ़. जिले के कपासन उपखण्ड के प्रमुख तीर्थ स्थल शनि महाराज मंदिर संपूर्ण मेवाड़ सहित हाड़ौती मालवा व मारवाड़ क्षेत्र में प्रसिद्धि पाकर राजस्थान व मध्यप्रदेश का प्रमुख तीर्थ बन चुका है. प्रत्येक शनिवार और अमावस्या को दूर दराज से हजारों की तादाद में श्रद्वालु दर्शन करने के लिय यहां पहुंचते हैं. किवदन्ती के अनुसार मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह इस शनि प्रतिमा को अपने हाथी पर बैठाकर उदयपुर ले जा रहे थे. आली गांव में आकर मूर्ति हाथी से अचानक गायब हो गई. काफी ढूंढने का प्रयास करने के बाद भी नहीं मिली. कई वर्षो बाद गांव उचनार खुर्द निवासी जीतमल जाट के खेत से मूर्ति का कुछ हिस्सा प्रकट हुआ. जिसकी लोगों ने काला भेरू नाम रख कर पूजा अर्चना आरम्भ कर दी थी.

राजस्थान का शनि मंदिर जहां दर्शन के बाद लोग जूते छोड़कर चले जाते हैं.

प्रतिमा देव शनि महाराज की बताने पर सभी ने यहां तेल चढ़ाना शुरू कर दिया. इसी दौरान यहां एक प्राकृतिक तेल कुण्ड भी खुदाई में निकला. लोग यहां अपनी मंन्नत पूरी होने पर शनिदेव को चुरमा बाटी का भोग लगाते हैं. कहते हैं यहां भोग मंन्दिर में जब तक नहीं पहुंच जाता चीटियां भोजन के पास नही जाती. जैसे ही शनिदेव को भोग लगता है चीटियां चढ़ना शुरू हो जाती हैं.श्रृद्धालु शनिदेव को प्रसन्न करने के लिये यहां काले कपडे़, काला अन्न, काली धातु का दान करते हैं. वहीं अपने जूते भी वहीं छोड़ कर जाते हैं. मंदिर प्रबंधन श्रृद्धालुओं के द्वारा यहां छोड़ गए जूतों के निस्तारण के लिये काफी धनराशि व्यय करता है.

तेल के चढ़ावे की भारी आवक को देखते हुए यहां कार्यरत प्रबन्धकारणी समिति द्वारा 3600 वर्ग फिट में फेले 27 फिट गहरे कुण्ड का निमार्ण करवाया गया है. इसके भरने के बाद इसी नाप का दूसरा व तीसरा कुण्ड भी बनाया गया. इन तेल के कुण्डों में भरे लाखों लीटर तेल में चिटियां तक नहीं लगती. यह तेल चर्मरोग के उपचार के लिये लोग ले जाते हैं. प्रबन्धकारणी समिति के सचिव कालू सिंह, अध्यक्ष मदन सिह राणावत सहित पूरी कमेठी द्वारा इस धार्मिक स्थान के विकास के लिये कई कार्य किए गए हैं. जिससे यहां आने वाले श्रद्वालुओं को किसी प्रकार की कोई तकलीफ ना हो.

Intro: कपासन -शनिमहाराज श्रद्वालु हर माह चढाते है लाखो लीटर तेल। न्याय के देवता शनिमहाराज जहां भोग से पहले चिटिया भी नही खाती खाना।Body:,कपासन-
चित्तौडगढ जिले के कपासन उपखण्ड का प्रमुख तिर्थ स्थल शनिमहाराज आली सम्पुर्ण मेवाड सहीत हाडोती मालवा व मारवाड क्षैत्र में अपनी प्रसिद्वी पाकर राजस्थान व मध्यप्रदेश का एक प्रमुख तिर्थ बन चुका है। प्रत्येक शनिवार व अमावस्या को दुर दराज से हजारो की तादाद में श्रद्वालु दर्शन करने के लिय यहा पहुचते है। व शनि को प्रसन्न करने के विभिन्न जतन करते है।
किवदन्ती के अनुसार मेवाड के महाराणा उदयसिह इस शनि प्रतिमा को अपने हाथी पर बैठा कर उदयपुर ले जा रहे थे। आली गांव में आकर मुर्ति हाथी से अचानक गायब हो गई । काफी ढुढने का प्रयास करने के बाद भी वो नही मिली। कई वर्षो बाद गांव उचनार खुर्द निवासी जीतमल जाट के खेत से मुर्ति का कुछ हिस्सा प्रकट हुआ। जिसकी लोगो ने काला भेरू नाम रख कर पूजा अर्चना आरम्भ कर दि थी। सतो द्वारा प्रतिमा न्याय के देव शनिमहाराज की बताने पर सभी ने यहा तेल चढाना शुरू कर दिया। इसी दौरान यहा एक प्राकृतिक तेल कुण्ड भी खुदाई में निकला।
चमत्कार तो यह है कि यहा लोग अपनी मन्नत पुरी होने पर शनिदेव के चुरमा बाटी का भोग लगाते है । बालभोग मन्दिर में जबतक नही पहुच जाता चिटियां भोजन के पास नही जाती। जैसे ही शनिदेव के भोग लगता है चिटिया चढना शुरू हो जाती है। श्रृद्वालु न्याय के देव शनिदेव को प्रसन्न करने के लिये यहा काले कपडे , काला अन्न, काली धातु का दान करते है वही अपने जुते वही छोड कर जाते है। प्रबन्धकारणी द्वारा श्रृद्वालुओ के द्वारा यहा छोड कर गये जुतो के निस्तारण के लिये काफी धनराशि का व्यय करना पडता है।
तेल के चढावे की भारी आवक को देखते हुए यहा कार्यरत प्रबन्धकारणी समिति द्वारा 3600 वर्ग फिट में फेले 27 फिट गहरे कुण्ड का निमार्ण करवाया। इसके भरने के बाद इसी नाप का दुसरा व तीसरा कुण्ड भी बनाया गया। इन तेल के कुण्डो में भरे लाखो लीटर तेल में चिटिया तक नही लगती। यह तेल चर्मरोग के उपचार के लिये लोग लेजाते है।
प्रबन्धकारणी समिति के सचिव कालु सिह , अध्यक्ष मदन सिह राणावत सहीत पुरी कमेठी द्वारा इस धार्मिक स्थान के विकास के लिये कई सजृनात्क कार्य किये है। जिससे आने वाले श्रद्वालुओ को किसी प्रकार की कोई तकलीफ ना हो ।Conclusion: यहा लगने वाले तीन दिवसीय वार्षिक मेले मे मेलार्थियो के लिये कई मनोरंजन व सांस्कृतिक कार्यक्रम कमेठी द्वारा आयोजित किये जाते है। वही यहा प्रति माह 10 लाख रूपये से ज्यादा चढावे के रूप में राशि प्राप्त होती है।
Last Updated : May 13, 2019, 2:08 PM IST
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