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लॉकडाउन के वजह से कुम्हारों का व्यवसाय चौपट, नहीं आ रहा कोई भी ग्राहक

कोरोना महामारी से जहां पूरा देश परेशान है, वहीं राजस्थान के कुम्हार भी इन दिनों परेशानी झेल रहे हैं. कोरोना के कारण कुम्हारों द्वारा तैयार किए गए मटकों को कोई भी लेने नहीं आ रहा है. जिससे उन्हें काफी घाटा उठाना पड़ा रहा है.

कुम्हारों का व्यवसाय चौपट, Potter's business collapsed
कुम्हारों का व्यवसाय चौपट
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Published : Apr 29, 2020, 12:17 AM IST

Updated : May 24, 2020, 11:06 PM IST

कपासन (चित्तौड़गढ़). लॉकडाउन के कारण सभी दुकानें बंद हैं. ऐसे में कुम्हारों द्वारा तैयार किए गए मटके को भी कोई लेने नहीं आ रहा है. जिससे उन्हें काफी घाटा उठाना पड़ा रहा है.

कुम्हारों द्वारा बनाए गए बर्तन अप्रैल से लेकर जून माह तक बिकते थे. जिससे उनके परिवार का भरण पोषण होता था. अब तक कुम्हारों के बर्तनों की ब्रिकी अच्छी खासी हो जाती थी, लेकिन सालभर से मटकों की ब्रिकी का इंतजार कर रहे कुम्हारों के व्यवसाय पर कोरोना वायरस का ग्रहण लग गया है.

पढ़ेंः जयपुर: पॉजिटिव मरीज मिलने के बाद संजय सर्किल के चिन्हित इलाके में लगाया गया कर्फ्यू

हालत यह है कि घड़ा बनाने के कारोबार से जुड़े परिवार दो टाइम की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. राष्ट्रीय प्रजापति महासंघ राजस्थान प्रदेश उपाध्यक्ष शंकर लाल प्रजापत ने बताया कि मटका बनाने में सम्पूर्ण भारत में राजस्थान प्रदेश का नाम है और राजस्थान के सभी गांवों और शहरी इलाकों में आज भी मटके बनाने का व्यवसाय किया जाता है.

लॉकडाउन के चलते राजस्थान के कई शहरों और सभी ग्रामीण क्षेत्रों सहित डांग क्षेत्र में भी कुम्हार समाज के सभी व्यवसायी मटके नहीं बिकने के कारण परेशान हैं. बताया जा रहा है कि कपासन में कुल 50 कुम्भकार परिवार मटके बनाने और बैचने का काम करते हैं.

पढ़ेंः गुजरात में फंसे उदयपुर के युवकों को अब घर वापसी का इंतजार, वीडियो जारी कर शासन-प्रशासन से लगाई गुहार

प्रति परिवार औसतन एक हजार मटके बेच देता है. आकार के आधार पर 50 से लेकर 100 रुपये तक मटके ग्राहकों को बेचे जाते हैं. जिससे वह अपना मुनाफा भी निकाल लेते हैं. कुछ कुम्भकार स्वयं मटके बनाते हैं, तो कुछ गांवों से अनुबंध पर मटके बनवा कर मंगवाते हैं.

कपासन (चित्तौड़गढ़). लॉकडाउन के कारण सभी दुकानें बंद हैं. ऐसे में कुम्हारों द्वारा तैयार किए गए मटके को भी कोई लेने नहीं आ रहा है. जिससे उन्हें काफी घाटा उठाना पड़ा रहा है.

कुम्हारों द्वारा बनाए गए बर्तन अप्रैल से लेकर जून माह तक बिकते थे. जिससे उनके परिवार का भरण पोषण होता था. अब तक कुम्हारों के बर्तनों की ब्रिकी अच्छी खासी हो जाती थी, लेकिन सालभर से मटकों की ब्रिकी का इंतजार कर रहे कुम्हारों के व्यवसाय पर कोरोना वायरस का ग्रहण लग गया है.

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हालत यह है कि घड़ा बनाने के कारोबार से जुड़े परिवार दो टाइम की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. राष्ट्रीय प्रजापति महासंघ राजस्थान प्रदेश उपाध्यक्ष शंकर लाल प्रजापत ने बताया कि मटका बनाने में सम्पूर्ण भारत में राजस्थान प्रदेश का नाम है और राजस्थान के सभी गांवों और शहरी इलाकों में आज भी मटके बनाने का व्यवसाय किया जाता है.

लॉकडाउन के चलते राजस्थान के कई शहरों और सभी ग्रामीण क्षेत्रों सहित डांग क्षेत्र में भी कुम्हार समाज के सभी व्यवसायी मटके नहीं बिकने के कारण परेशान हैं. बताया जा रहा है कि कपासन में कुल 50 कुम्भकार परिवार मटके बनाने और बैचने का काम करते हैं.

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प्रति परिवार औसतन एक हजार मटके बेच देता है. आकार के आधार पर 50 से लेकर 100 रुपये तक मटके ग्राहकों को बेचे जाते हैं. जिससे वह अपना मुनाफा भी निकाल लेते हैं. कुछ कुम्भकार स्वयं मटके बनाते हैं, तो कुछ गांवों से अनुबंध पर मटके बनवा कर मंगवाते हैं.

Last Updated : May 24, 2020, 11:06 PM IST
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