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चित्तौड़गढ़ः अपनों तक पहुंचने की जिद्द, 300 KM तक मजदूर कर रहे पैदल सफर - corona virus news

चित्तौड़गढ़ में अन्य प्रदेशों से कई लोग मजदूरी के लिए आए हुए हैं और लॉकडाउन के चलते अपने कार्यस्थल से भी विमुख होकर घर लौटने लगे हैं. कई लोग तो ऐसे हैं जो 300 किलोमीटर तक पैदल अपने घर की ओर रवाना हो रहे हैं.

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मजदूर कर रहे है पैदल सफर
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Published : Mar 28, 2020, 9:13 PM IST

चित्तौड़गढ़. कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते पूरे देश में लॉकडाउन की स्थिति है. ऐसे में सभी कामकाज ठप पड़े हुए हैं. इसके कारण मुख्य रूप से मजदूरी करने वाले लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं. चित्तौड़गढ़ में भी देश के अन्य प्रदेशों से कई लोग मजदूरी के लिए आए हुए हैं और लॉकडाउन के चलते अपने कार्यस्थल से भी विमुख होकर घर लौटने लगे हैं. कई लोग तो ऐसे हैं जो 300 किलोमीटर तक पैदल अपने घर की ओर रवाना हो रहे हैं.

300 किलोमीटर तक मजदूर कर रहे है पैदल सफर

जानकारी के अनुसार कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते चित्तौड़गढ़ में भी सभी तरह के काम-काज ठप पड़ा हुए है. जिले में मध्यप्रदेश के रतलाम, मंदसौर, जावरा सहित राजस्थान के प्रतापगढ़, कोटा, बूंदी, पश्चिम बंगाल, यूपी और बिहार से बड़ी संख्या में मजदूर है. जो सभी अभी कार्य स्थलों पर खाली बैठे हुए हैं. कुछ की स्थिति तो सही है और रुकने की भी व्यवस्था है, लेकिन कई लोग ऐसे थे, जो ठेकेदार के अंतर्गत काम कर खुले आसमान के नीचे दिन निकाल रहे थे. वहीं ऐसे लोगों को परिवार की चिंता सताने लगी है.

पढ़ेंः आमजन को कैब उपलब्ध करवाएगी जयपुर ट्रैफिक पुलिस

ऐसे में यह लोग कार्यस्थल पर नहीं रुक कर अपनी मातृभूमि की ओर पलायन करने लगे हैं. वैसे तो अब जिला, तहसील और उपखंड के अलावा भी ग्राम पंचायत मुख्यालय तक सरकार के साथ ही विभिन्न संगठन गरीब और बाहर से आए लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था कर रहे हैं. लेकिन अब ये लोग पलायन करने लगे हैं.

चित्तौड़गढ़ क्षेत्र में भी रतलाम से मजदूर कार्य करने आए थे. यह अभी गेहूं की भूसी भरने का कार्य करे थे, लेकिन करीब 10 दिनों से काम-काज ठप पड़ा हुआ है. ये लोग बिलकुल निर्धन होने के कारण मीणा समाज के परिवार पैदल ही रतलाम के लिए रवाना हुए हैं.

पढ़ेंः लॉक डाउन: जयपुर में दुकानों और मंडियों में अभी भी जनता की भीड़ उमड़ रही

चित्तौड़गढ़ से रतलाम की दूरी करीब 200 किलोमीटर है और जिला मुख्यालय से पारी का खेड़ा करीब 100 किलोमीटर दूर पड़ता है. ऐसे में यह मजदूर करीब 300 किलोमीटर तक का सफर पैदल ही करेंगे. वहीं इन्हें ना ही कोई रोक रहा है ना कोई टोक रहा है. प्रशासन भी इनकी सुध नहीं ले पा रहा है. इनके पास रुकने और खाने का भी कोई ठिकाना नहीं है. राह में जो कोई मनुहार करते हैं वहां खाना खाकर आगे के लिए रवाना हो जाते हैं.

चित्तौड़गढ़. कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते पूरे देश में लॉकडाउन की स्थिति है. ऐसे में सभी कामकाज ठप पड़े हुए हैं. इसके कारण मुख्य रूप से मजदूरी करने वाले लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं. चित्तौड़गढ़ में भी देश के अन्य प्रदेशों से कई लोग मजदूरी के लिए आए हुए हैं और लॉकडाउन के चलते अपने कार्यस्थल से भी विमुख होकर घर लौटने लगे हैं. कई लोग तो ऐसे हैं जो 300 किलोमीटर तक पैदल अपने घर की ओर रवाना हो रहे हैं.

300 किलोमीटर तक मजदूर कर रहे है पैदल सफर

जानकारी के अनुसार कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते चित्तौड़गढ़ में भी सभी तरह के काम-काज ठप पड़ा हुए है. जिले में मध्यप्रदेश के रतलाम, मंदसौर, जावरा सहित राजस्थान के प्रतापगढ़, कोटा, बूंदी, पश्चिम बंगाल, यूपी और बिहार से बड़ी संख्या में मजदूर है. जो सभी अभी कार्य स्थलों पर खाली बैठे हुए हैं. कुछ की स्थिति तो सही है और रुकने की भी व्यवस्था है, लेकिन कई लोग ऐसे थे, जो ठेकेदार के अंतर्गत काम कर खुले आसमान के नीचे दिन निकाल रहे थे. वहीं ऐसे लोगों को परिवार की चिंता सताने लगी है.

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ऐसे में यह लोग कार्यस्थल पर नहीं रुक कर अपनी मातृभूमि की ओर पलायन करने लगे हैं. वैसे तो अब जिला, तहसील और उपखंड के अलावा भी ग्राम पंचायत मुख्यालय तक सरकार के साथ ही विभिन्न संगठन गरीब और बाहर से आए लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था कर रहे हैं. लेकिन अब ये लोग पलायन करने लगे हैं.

चित्तौड़गढ़ क्षेत्र में भी रतलाम से मजदूर कार्य करने आए थे. यह अभी गेहूं की भूसी भरने का कार्य करे थे, लेकिन करीब 10 दिनों से काम-काज ठप पड़ा हुआ है. ये लोग बिलकुल निर्धन होने के कारण मीणा समाज के परिवार पैदल ही रतलाम के लिए रवाना हुए हैं.

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चित्तौड़गढ़ से रतलाम की दूरी करीब 200 किलोमीटर है और जिला मुख्यालय से पारी का खेड़ा करीब 100 किलोमीटर दूर पड़ता है. ऐसे में यह मजदूर करीब 300 किलोमीटर तक का सफर पैदल ही करेंगे. वहीं इन्हें ना ही कोई रोक रहा है ना कोई टोक रहा है. प्रशासन भी इनकी सुध नहीं ले पा रहा है. इनके पास रुकने और खाने का भी कोई ठिकाना नहीं है. राह में जो कोई मनुहार करते हैं वहां खाना खाकर आगे के लिए रवाना हो जाते हैं.

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