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चित्तौड़गढ़: किसान अफीम की खेती को बचाने के लिए कर रहे कड़ी मेहनत

चित्तौड़गढ़ के कपासन में अफीम की खेती करने वाले किसानों के चेहरों पर खुशी दिखाई दी है. ये खुशी अफीम पर आने वाले फूलों और डोडो के उगने से आई है. अफीम की फसल को लेकर किसान भी कड़ी मेहनत कर रहे है. जिससे वो अपनी फसल को बचा सके.

chittaurgarh latest news, अफीम की खेती
अफीम की फसल से किसानों की उम्मीद
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Published : Feb 1, 2020, 11:45 PM IST

कपासन (चित्तौड़गढ़). काले सोने (अफीम) की फसल को उगाने में जी जान से किसान जुट गए है. फूलों और डोडो के आने के साथ ही किसानों के चेहरे खिल गए है. इसके साथ ही किसानों को अपनी फसलों की सुरक्षा करने के लिये कई प्रकार के जतन करने पड़ रहे हैं.

बता दें कि भारत सरकार के केंद्रीय वित्त मंत्रालय की ओर से सितंबर माह में अफीम नीति की घोषणा के बाद नारकोटिक्स ब्यूरो की ओर से पात्र काश्तकारों को नियमानुसार 5, 6, 10 और 12 आरी के पट्टे जारी होते ही किसानों की रातों की नींद उड़ जाती हैं. नकद फसल के रूप में पहचान रखने वाली अफीम की खेती बुवाई से लेकर अंत तक कड़ी सुरक्षा में की जाने वाली खेती भी कही जाती है.

पढ़ें- चित्तौड़गढ़ में सूर्य सप्तमी पर्व पर 700 विद्यार्थियों ने किया सूर्य नमस्कार

अफीम तस्करों और अफीम के नशे के आदी लोगों की गिद्व निगाहे भीं फसल पर रहती है. क्योंकि अफीम की फसल पकने के समय नशेडियों और तस्करों की ओर से अफीम फसल के डोडे चोरी होने की घटनाएं भी बलवती हो जाती है. बता दें कि राजस्थान में की जाने वाली कुल अफिम खेती का 57 प्रतिशत भाग में अकेला चित्तौड़गढ़ जिला अफिम बुआई करता है. वहीं, प्रतापगढ में 23 प्रतिशत और शेष बांरा, उदयपुर और झालावाड जिले में इसकी खेती की जाती है.

अफीम की फसल से किसानों की उम्मीद

वहीं, क्षेत्र में बहुतायत से पाए जाने वाली नील गायों के झुंड, तोतों और जंगली जानवरों से भी फसल को बचाने के लिए किसान 24 घंटे लगे हुए हैं. जिसके चलते किसान अफीम के खेत को कांटेदार तारों और लोहे की जालियों से बाड़बंदी के साथ-साथ तोतों से बचाव के लिए पूरे खेत को प्लास्टिक नेट से ढक दिया है.

वहीं, शीतलहर से बचाव के लिए पुरानी साड़ियों की कनात और हाइब्रिड मक्के के पौधे लगा कर फसल को बचाने का प्रयास किया जाता है. जबकि मौसमी बिमारियों से फसल को मुक्त रखने में भी कृषि विशेषज्ञों की सलाह अनुसार समय-समय पर दवाओं का स्प्रे किया जा रहा है. खास तौर पर अफीम फसल में जड़ गलन, पौधों का पीला होना, फफूंद जनित रोग, काली मस्सी और सफेद मस्सी, तना सड़न जैसी बीमारियां भी इनके लिए नुकसानदायक साबित होती हैं.

पढ़ें- चित्तौड़गढ़: अण्डरब्रिज में भरा पानी, सुविधा के नाम पर दुविधा में जनता

खासकर काली मस्सी और सफेद मस्सी जिसे वैज्ञानिक भाषा में डाउनीमिड्ल्यु और पाऊड्री मिड्ल्यु कहा जाता है. प्रतिकूल मौसम के चलते ये रोग भी अधिकता से होते हैं. इनसे बचाव के लिए उपाय जरुरी हो जाते हैं. वहीं, रात में निगरानी के लिए परिवार के सदस्य बारी-बारी से दो तीन मंजिला मचान बना कर फसल की चौकसी करते हैं. ये सिलसिला अफीम की लुबाई, चिराई होकर अफीम का तौल होने तक जारी रहता है.

कपासन (चित्तौड़गढ़). काले सोने (अफीम) की फसल को उगाने में जी जान से किसान जुट गए है. फूलों और डोडो के आने के साथ ही किसानों के चेहरे खिल गए है. इसके साथ ही किसानों को अपनी फसलों की सुरक्षा करने के लिये कई प्रकार के जतन करने पड़ रहे हैं.

बता दें कि भारत सरकार के केंद्रीय वित्त मंत्रालय की ओर से सितंबर माह में अफीम नीति की घोषणा के बाद नारकोटिक्स ब्यूरो की ओर से पात्र काश्तकारों को नियमानुसार 5, 6, 10 और 12 आरी के पट्टे जारी होते ही किसानों की रातों की नींद उड़ जाती हैं. नकद फसल के रूप में पहचान रखने वाली अफीम की खेती बुवाई से लेकर अंत तक कड़ी सुरक्षा में की जाने वाली खेती भी कही जाती है.

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अफीम तस्करों और अफीम के नशे के आदी लोगों की गिद्व निगाहे भीं फसल पर रहती है. क्योंकि अफीम की फसल पकने के समय नशेडियों और तस्करों की ओर से अफीम फसल के डोडे चोरी होने की घटनाएं भी बलवती हो जाती है. बता दें कि राजस्थान में की जाने वाली कुल अफिम खेती का 57 प्रतिशत भाग में अकेला चित्तौड़गढ़ जिला अफिम बुआई करता है. वहीं, प्रतापगढ में 23 प्रतिशत और शेष बांरा, उदयपुर और झालावाड जिले में इसकी खेती की जाती है.

अफीम की फसल से किसानों की उम्मीद

वहीं, क्षेत्र में बहुतायत से पाए जाने वाली नील गायों के झुंड, तोतों और जंगली जानवरों से भी फसल को बचाने के लिए किसान 24 घंटे लगे हुए हैं. जिसके चलते किसान अफीम के खेत को कांटेदार तारों और लोहे की जालियों से बाड़बंदी के साथ-साथ तोतों से बचाव के लिए पूरे खेत को प्लास्टिक नेट से ढक दिया है.

वहीं, शीतलहर से बचाव के लिए पुरानी साड़ियों की कनात और हाइब्रिड मक्के के पौधे लगा कर फसल को बचाने का प्रयास किया जाता है. जबकि मौसमी बिमारियों से फसल को मुक्त रखने में भी कृषि विशेषज्ञों की सलाह अनुसार समय-समय पर दवाओं का स्प्रे किया जा रहा है. खास तौर पर अफीम फसल में जड़ गलन, पौधों का पीला होना, फफूंद जनित रोग, काली मस्सी और सफेद मस्सी, तना सड़न जैसी बीमारियां भी इनके लिए नुकसानदायक साबित होती हैं.

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खासकर काली मस्सी और सफेद मस्सी जिसे वैज्ञानिक भाषा में डाउनीमिड्ल्यु और पाऊड्री मिड्ल्यु कहा जाता है. प्रतिकूल मौसम के चलते ये रोग भी अधिकता से होते हैं. इनसे बचाव के लिए उपाय जरुरी हो जाते हैं. वहीं, रात में निगरानी के लिए परिवार के सदस्य बारी-बारी से दो तीन मंजिला मचान बना कर फसल की चौकसी करते हैं. ये सिलसिला अफीम की लुबाई, चिराई होकर अफीम का तौल होने तक जारी रहता है.

Intro:कपासन-
काले सोने की फसल में जी.जान से जुटा किसान। फूलो ओर डोडो के आने के साथ ही किसानो के खिले चेहरे। फसल की सुरक्षा के लिये किसानो को करने पड रहे है कई प्रकार के जतन।
बता दे कि भारत सरकार के केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा सितंबर माह में अफीम नीति की घोषणा के बाद नारकोटिक्स ब्यूरो द्वारा पात्र काश्तकारों को नियमानुसार 5, 6, 10 व 12 आरी के पट्टे जारी होते ही किसानों के रातों की नींद उड़ जाती हैं। नकद फसल के रूप में पहचान रखने वाली अफीम की खेती बुवाई से लेकर अंत तक कड़ी सुरक्षा में की जाने वाली खेती भी कही जाती है। अफीम तस्करों तथा अफीम के नशे के आदी लोगों की गिद्व निगाहे भीं फसल पर रहती है। क्योंकि अफीम की फसल पकने के समय नशेडियों और तस्करों द्वारा अफीम फसल के डोडे चोरी होने की घटनाएं भी बलवती हो जाती है।
आपको बता दे कि राजस्थान में की जाने वाली कुल अफिम खेती का 57 प्रतिशत भाग में अकेला चित्तौडगढ जिला अफिम बुआई करता है। वही प्रतापगढ में 23 प्रतिशत व शेष बांरा, उदयपुर व झालावाड जिले में इसकी खेती की जाती है।
वहीं क्षेत्र में बहुतायत से पाए जाने वाले नील गायों के झुंड तोतों एवं जंगली जानवरों से भी फसल को बचाने के लिए किसान 24 घंटे लगे हुए हैं जिसके चलते किसान अफीम के खेत को कांटेदार तारों व लोहे की जालियों से बाड़बंदी के साथ.साथ तोतों से बचाव के लिए पूरे खेत को प्लास्टिक नेट से ढक दिया है।
वही शीतलहर से बचाव के लिए पुरानी साड़ियों की कनात तथा हाइब्रिड मक्का के पौधे लगाना कर फसल को बचाने का प्रयास किया जाता है। जबकि मौसमी बिमारियों से फसल को मुक्त रखने में भी कृषि विशेषज्ञों की सलाह अनुसार समय.समय पर दवाओं का स्प्रे किया जा रहा है खास तौर पर अफीम फसल में जड़ गलन ,पौधों का पीला होना ,फफूंद जनित रोग ,काली मस्सी व सफेद मस्सी तना सड़न जैसी बीमारियां भी इनके लिए नुकसानदायक साबित होती है ।
खासकर काली मस्सी व सफेद मस्सी जिसे वैज्ञानिक भाषा में डाउनीमिड्ल्यु व पाऊड्री मिड्ल्यु कहा जाता है प्रतिकुल मौसम के चलते ये रोग भी अधिकता से होते हैं। इनसे बचाव के लिए उपाय जरुरी हो जाते हैं। वहीं रात्रि में निगरानी के लिए परिवार के सदस्य बारी.बारी से दो तीन मंजिला मचान बना कर फसल की चौकसी करते हैं ये सिलसिला अफीम की लुवाई चिराई होकर अफीम का तौल होने तक जारी रहता है।
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बाइट- अफिम किसान- (1)शंकर लाल जाट , सोनियाणा
(2) रामनारायण जाट
(3) बालुराम जाटBody:कपासन-
काले सोने की फसल में जी.जान से जुटा किसान। फूलो ओर डोडो के आने के साथ ही किसानो के खिले चेहरे। फसल की सुरक्षा के लिये किसानो को करने पड रहे है कई प्रकार के जतन।
बता दे कि भारत सरकार के केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा सितंबर माह में अफीम नीति की घोषणा के बाद नारकोटिक्स ब्यूरो द्वारा पात्र काश्तकारों को नियमानुसार 5, 6, 10 व 12 आरी के पट्टे जारी होते ही किसानों के रातों की नींद उड़ जाती हैं। नकद फसल के रूप में पहचान रखने वाली अफीम की खेती बुवाई से लेकर अंत तक कड़ी सुरक्षा में की जाने वाली खेती भी कही जाती है। अफीम तस्करों तथा अफीम के नशे के आदी लोगों की गिद्व निगाहे भीं फसल पर रहती है। क्योंकि अफीम की फसल पकने के समय नशेडियों और तस्करों द्वारा अफीम फसल के डोडे चोरी होने की घटनाएं भी बलवती हो जाती है।
आपको बता दे कि राजस्थान में की जाने वाली कुल अफिम खेती का 57 प्रतिशत भाग में अकेला चित्तौडगढ जिला अफिम बुआई करता है। वही प्रतापगढ में 23 प्रतिशत व शेष बांरा, उदयपुर व झालावाड जिले में इसकी खेती की जाती है।
वहीं क्षेत्र में बहुतायत से पाए जाने वाले नील गायों के झुंड तोतों एवं जंगली जानवरों से भी फसल को बचाने के लिए किसान 24 घंटे लगे हुए हैं जिसके चलते किसान अफीम के खेत को कांटेदार तारों व लोहे की जालियों से बाड़बंदी के साथ.साथ तोतों से बचाव के लिए पूरे खेत को प्लास्टिक नेट से ढक दिया है।
वही शीतलहर से बचाव के लिए पुरानी साड़ियों की कनात तथा हाइब्रिड मक्का के पौधे लगाना कर फसल को बचाने का प्रयास किया जाता है। जबकि मौसमी बिमारियों से फसल को मुक्त रखने में भी कृषि विशेषज्ञों की सलाह अनुसार समय.समय पर दवाओं का स्प्रे किया जा रहा है खास तौर पर अफीम फसल में जड़ गलन ,पौधों का पीला होना ,फफूंद जनित रोग ,काली मस्सी व सफेद मस्सी तना सड़न जैसी बीमारियां भी इनके लिए नुकसानदायक साबित होती है ।
खासकर काली मस्सी व सफेद मस्सी जिसे वैज्ञानिक भाषा में डाउनीमिड्ल्यु व पाऊड्री मिड्ल्यु कहा जाता है प्रतिकुल मौसम के चलते ये रोग भी अधिकता से होते हैं। इनसे बचाव के लिए उपाय जरुरी हो जाते हैं। वहीं रात्रि में निगरानी के लिए परिवार के सदस्य बारी.बारी से दो तीन मंजिला मचान बना कर फसल की चौकसी करते हैं ये सिलसिला अफीम की लुवाई चिराई होकर अफीम का तौल होने तक जारी रहता है।
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बाइट- अफिम किसान- (1)शंकर लाल जाट , सोनियाणा
(2) रामनारायण जाट
(3) बालुराम जाटConclusion:
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