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चित्तौड़गढ़ः कपासन में खरा पर्व पर बैलों की जगह गायों को भड़काने की अनूठी परम्परा

चित्तौड़गढ़ के आकोला गांव में  दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा और खेखरा पर्व पर बैलों को भड़काने की अनूठी परम्परा है. इसके आधार पर आने वाले साल के जमाने का अनुमान लगाया जाता है.

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Published : Oct 28, 2019, 10:23 PM IST

कपासन (चित्तौड़गढ़). दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा और खेखरा पर्व पर बैलों को भड़काने की परम्परा तो पूरे मेवाड़ में सदियों से चली आ रही है. लेकिन, जिले के आकोला कस्बे में गोर्वधन पूजा पर्व पर गायों को भड़काने की अनूठी परम्परा है. इसके आधार पर आने वाले साल के जमाने का अनुमान लगाया जाता है.

खरा पर्व पर बैलों को भड़काने की अनूठी परम्परा

बेड़च नदी किनारे के जनप्रतिनिधि और ग्रामीणों की उपस्थिति में गायों का विशेष रूप से श्रृंगार किया जाता है. जिसके बाद पूजा अर्चना कर गाय को भड़काया जाता है. इस परंपरा के निर्वहन के लिए ग्वाला खेखरा भड़काने के लिए बास पर बनी हुई चमड़े की कुप्पी और गेढी को हाथ में लेकर गायों के सामने कुप्पी ले जाता है और सबसे पहले भड़कने वाली गाय को ग्वाला दौड़ता हुआ मालिक के घर तक ले जाता है.

पढ़ें : जम्मू-कश्मीर के शोपियां में आतंकियों ने सेब कारोबारी की गोली मारकर हत्या की

वहीं इस रीति-रिवाज के अनुसार ग्वाला को भेंट देकर सम्मान किया जाता है. ग्वाला ने बताया कि गाय को भड़काने की गेढी करीब 104 वर्ष पुरानी है और इसका नाम भानानाथ गेढी है.

कपासन (चित्तौड़गढ़). दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा और खेखरा पर्व पर बैलों को भड़काने की परम्परा तो पूरे मेवाड़ में सदियों से चली आ रही है. लेकिन, जिले के आकोला कस्बे में गोर्वधन पूजा पर्व पर गायों को भड़काने की अनूठी परम्परा है. इसके आधार पर आने वाले साल के जमाने का अनुमान लगाया जाता है.

खरा पर्व पर बैलों को भड़काने की अनूठी परम्परा

बेड़च नदी किनारे के जनप्रतिनिधि और ग्रामीणों की उपस्थिति में गायों का विशेष रूप से श्रृंगार किया जाता है. जिसके बाद पूजा अर्चना कर गाय को भड़काया जाता है. इस परंपरा के निर्वहन के लिए ग्वाला खेखरा भड़काने के लिए बास पर बनी हुई चमड़े की कुप्पी और गेढी को हाथ में लेकर गायों के सामने कुप्पी ले जाता है और सबसे पहले भड़कने वाली गाय को ग्वाला दौड़ता हुआ मालिक के घर तक ले जाता है.

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वहीं इस रीति-रिवाज के अनुसार ग्वाला को भेंट देकर सम्मान किया जाता है. ग्वाला ने बताया कि गाय को भड़काने की गेढी करीब 104 वर्ष पुरानी है और इसका नाम भानानाथ गेढी है.

Intro:कपासन-
-गाय को भड़काने की अनूठी परम्परा।आगामी साल की करते है,भविष्यवाणी।
गांव आकोला दिपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा व खेखरा पर्व पर बैलो को भड़काने की परम्परा तो पूरे मेवाड़ में सदियों से चली आ रही है Body:कपासन-
-गाय को भड़काने की अनूठी परम्परा।आगामी साल की करते है,भविष्यवाणी।
गांव आकोला दिपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा व खेखरा पर्व पर बैलो को भड़काने की परम्परा तो पूरे मेवाड़ में सदियों से चली आ रही है लेकिन चित्तौड़गढ जिले के आकोला कस्बे में गोर्वधन पूजा पर्व पर गायों को भड़काने की अनूठी परम्परा है । इसके आधार पर आने वाले साल के जमाने का अनुमान लगाया जाता है ।कस्बे के स्थित बेडच नदी नदी किनारे पंच पटेलों व जनप्रतिनिधि व ग्रामीणो की उपस्थिति में गायो के विशेष रूप से श्रृंगार तथा पूजा अर्चना का दौर शुरू हुआ । इस खेखरा पर्व पर सफेद गाय सबसे पहले भड़की।
लोगो का मानना है की आने वाले साल अच्छा रहेगा।गौरतलब है की इस परंपरा के निर्वहन के लिए ग्वाला खेखरा भड़काने के लिए बास पर बनी हुई चमड़े की कुप्पी व गेढी को हाथ मे लेकर गायो के सामने कुप्पी ले जाता है ।
सबसे पहले भड़कने वाली गाय को ग्वाला दौड़ता हुआ मालिक के घर तक ले जाता है। रिति रिवाज के अनुसार ग्वाला को भेंट देकर सम्मान किया जाता है ।
ग्वाला नारायण लाल भील व मांगीलाल भील ने बताया कि गाय को भड़काने की गेढी करीब 104 वर्ष पुरानी है तथा इसका नाम भानानाथ गेढी है ।
इस दौरान अगले जमाने मिला जुल रहेगा ।
Conclusion: बाइट-ग्वाल नारायण लाल भील,आकोला
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