कपासन (चित्तौड़गढ़). दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा और खेखरा पर्व पर बैलों को भड़काने की परम्परा तो पूरे मेवाड़ में सदियों से चली आ रही है. लेकिन, जिले के आकोला कस्बे में गोर्वधन पूजा पर्व पर गायों को भड़काने की अनूठी परम्परा है. इसके आधार पर आने वाले साल के जमाने का अनुमान लगाया जाता है.
बेड़च नदी किनारे के जनप्रतिनिधि और ग्रामीणों की उपस्थिति में गायों का विशेष रूप से श्रृंगार किया जाता है. जिसके बाद पूजा अर्चना कर गाय को भड़काया जाता है. इस परंपरा के निर्वहन के लिए ग्वाला खेखरा भड़काने के लिए बास पर बनी हुई चमड़े की कुप्पी और गेढी को हाथ में लेकर गायों के सामने कुप्पी ले जाता है और सबसे पहले भड़कने वाली गाय को ग्वाला दौड़ता हुआ मालिक के घर तक ले जाता है.
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वहीं इस रीति-रिवाज के अनुसार ग्वाला को भेंट देकर सम्मान किया जाता है. ग्वाला ने बताया कि गाय को भड़काने की गेढी करीब 104 वर्ष पुरानी है और इसका नाम भानानाथ गेढी है.