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दस दुकानों में सिमट कर रह गया लालजी-कानजी का मेला, कोरोना के कारण नहीं मिली अनुमति

चित्तौड़गढ़ में शरद पूर्णिमा पर लगने वाला तीन दिवसीय लालजी-कानजी मेला इस साल कोरोना की भेंट चढ़ गया. जहां इस साल यह मेला महज 10 दुकानों में ही सिमट कर रह गया.

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Published : Oct 30, 2020, 7:25 PM IST

दस दुकानों में सिमटा लालजी-कानजी मेला, Lalji Kanji fair in ten shops
दस दुकानों में सिमटा लालजी-कानजी मेला

चित्तौड़गढ़. जिले के घोसुंडा कस्बे में शरद पूर्णिमा पर लगने वाले तीन दिवसीय लालजी-कानजी का मेला इस वर्ष कोरोना की भेंट चढ़ गया. इस मेले में जहां हर वर्ष करीब 400 दुकानें लगती थी, ऐसे में इस बार यह मेला महज 10 दुकानों में ही सिमट कर रह गया. बता दें कि कोरोना के चलते प्रशासन ने इस बार मेले की अनुमति नहीं थी. ऐसे में धार्मिक आयोजन भी घर के अंदर सिमट कर रह गए.

दस दुकानों में सिमटा लालजी-कानजी मेला

ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा पर लगने वाले इस मेले के दौरान तीन दिन तक भगवान कृष्ण गांव की सीमा में आते हैं. जानकारी के अनुसार चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय से करीब 17 किलोमीटर दूर घोसुंडा गांव स्थित है. यहां करीब 400 साल पहले भगवान कृष्ण गांव में रहने वाले भगत परिवार के यहां कोढ़ी के रूप में आए और ग्रामीणों को भी दर्शन दिए थे.

भगवान जाते हुए अपना मोर पंखी मुकुट दे गए थे. तब से ही शरद पूर्णिमा पर तीन दिवसीय मेला लगता है. ग्रामीणों का मत है कि भगत गोवर्धनदास (काबरा) ने भगवान से यहीं निवास का आग्रह किया था. तब भगवान ने वचन दिया था कि वे यहां उनकी लीलाएं करते रहेंगे. वर्ष में तीन दिन घोसुंडा गांव की सीमा में रहेंगे. तब से शरद पूर्णिमा के एक दिन पहले मेला शुरू हो भगवान की लीलाएं होती है. हर वर्ष यहां भव्य मेला लगता है और बड़ी संख्या में दुकानों के अलावा झूले और चकरियां भी लगती है, लेकिन इस वर्ष मेले के साथ ही कई धार्मिक आयोजन कोरोना की भेंट चढ़ गया.

पढ़ें- नागौर कलेक्टर का ट्वीट बना चर्चा का विषय, समुदाय विशेष पर साधा निशाना

प्रशासन की ओर से कोई अनुमति नहीं दी गई थी. इसके कारण शरद पूर्णिमा पर निकलने वाला लालजी-कानजी की शोभायात्रा भी नहीं निकली. गांव में तालाब की पाल पर होने वाले धार्मिक आयोजन भी नहीं हुए. सबसे बड़ी बात यह है कि लोग मेले में नहीं पहुंचे. गांव में हर वर्ष जहां शरद पूर्णिमा पर तालाब के पास मनिहारी, खिलौने, खान-पान, घरेलू सामग्री की कई दुकानें लगती थी. वहीं इस वर्ष मात्र 5 दुकानें ही थी. मेला नहीं लगने के कारण गांव के लोग भी मायूस दिखाई दिए. भगत परिवार के राजेन्द्र काबरा ने बताया कि भगवान का मुकुट घर में ही रहता है और वर्ष में केवल तीन दिन दर्शन के लिए निकाला जाता है. वहीं इस वर्ष कोरोना के चलते पूरा आयोजन ही घर में सिमट कर रह गया है.

चित्तौड़गढ़. जिले के घोसुंडा कस्बे में शरद पूर्णिमा पर लगने वाले तीन दिवसीय लालजी-कानजी का मेला इस वर्ष कोरोना की भेंट चढ़ गया. इस मेले में जहां हर वर्ष करीब 400 दुकानें लगती थी, ऐसे में इस बार यह मेला महज 10 दुकानों में ही सिमट कर रह गया. बता दें कि कोरोना के चलते प्रशासन ने इस बार मेले की अनुमति नहीं थी. ऐसे में धार्मिक आयोजन भी घर के अंदर सिमट कर रह गए.

दस दुकानों में सिमटा लालजी-कानजी मेला

ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा पर लगने वाले इस मेले के दौरान तीन दिन तक भगवान कृष्ण गांव की सीमा में आते हैं. जानकारी के अनुसार चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय से करीब 17 किलोमीटर दूर घोसुंडा गांव स्थित है. यहां करीब 400 साल पहले भगवान कृष्ण गांव में रहने वाले भगत परिवार के यहां कोढ़ी के रूप में आए और ग्रामीणों को भी दर्शन दिए थे.

भगवान जाते हुए अपना मोर पंखी मुकुट दे गए थे. तब से ही शरद पूर्णिमा पर तीन दिवसीय मेला लगता है. ग्रामीणों का मत है कि भगत गोवर्धनदास (काबरा) ने भगवान से यहीं निवास का आग्रह किया था. तब भगवान ने वचन दिया था कि वे यहां उनकी लीलाएं करते रहेंगे. वर्ष में तीन दिन घोसुंडा गांव की सीमा में रहेंगे. तब से शरद पूर्णिमा के एक दिन पहले मेला शुरू हो भगवान की लीलाएं होती है. हर वर्ष यहां भव्य मेला लगता है और बड़ी संख्या में दुकानों के अलावा झूले और चकरियां भी लगती है, लेकिन इस वर्ष मेले के साथ ही कई धार्मिक आयोजन कोरोना की भेंट चढ़ गया.

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प्रशासन की ओर से कोई अनुमति नहीं दी गई थी. इसके कारण शरद पूर्णिमा पर निकलने वाला लालजी-कानजी की शोभायात्रा भी नहीं निकली. गांव में तालाब की पाल पर होने वाले धार्मिक आयोजन भी नहीं हुए. सबसे बड़ी बात यह है कि लोग मेले में नहीं पहुंचे. गांव में हर वर्ष जहां शरद पूर्णिमा पर तालाब के पास मनिहारी, खिलौने, खान-पान, घरेलू सामग्री की कई दुकानें लगती थी. वहीं इस वर्ष मात्र 5 दुकानें ही थी. मेला नहीं लगने के कारण गांव के लोग भी मायूस दिखाई दिए. भगत परिवार के राजेन्द्र काबरा ने बताया कि भगवान का मुकुट घर में ही रहता है और वर्ष में केवल तीन दिन दर्शन के लिए निकाला जाता है. वहीं इस वर्ष कोरोना के चलते पूरा आयोजन ही घर में सिमट कर रह गया है.

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