चित्तौड़गढ़. भाजपा की ओर से विधायक चंद्रभान सिंह आक्या का चित्तोड़गढ़ सीट से टिकट काट दिया गया है. राजनीतिक पंडित मानते हैं कि पार्टी को विधानसभा चुनाव में इसका नुकसान हो सकता है, क्योंकि आक्या का प्रचार अभियान और भी आक्रामक होता जा रहा है. विधायक आक्या इसके लिए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष व स्थानीय सांसद सीपी जोशी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और लोगों की सहानुभूति पाने का प्रयास कर रहे हैं. जिस प्रकार से टिकट कटने के बाद पांच बड़े-बड़े सम्मेलन करवाए गए, निश्चित ही उनके साथ लोगों की सहानुभूति भी दिखाई दे रही है. क्षेत्र के सियासी जानकारों की मानें तो आक्या के टिकट कटने की मुख्य वजह 28 साल से चली आ रही उनकी जोशी से सियासी अदावत है. सीपी जोशी और आक्या के बीच कॉलेज के दिनों से ही सियासी विरोधाभास रहा है.
चित्तौड़गढ़ के राजकीय कॉलेज की राजनीति में एनएसयूआई का अहम पार्ट रहे कांग्रेस के युवा नेता अरविंद ढिलीवाल के अनुसार 1995 में सीपी जोशी उनके साथ एनएसयूआई की राजनीति में सक्रिय थे और उन्हें छात्र संघ उपाध्यक्ष का चुनाव लड़ाया गया. अगले साल जोशी के साथ 1995 में उन्होंने खुद भी अध्यक्ष पद के लिए टिकट मांगा लेकिन टिकट नहीं मिला. सीपी जोशी ने एनएसयूआई से अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा जबकि वो निर्दलीय चुनावी मैदान में थे. जोशी चुनाव जीत गए.
कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए थे जोशी : प्रॉपर्टी व्यवसाई नेमीचंद जैन ने बताया कि जोशी जब तक कॉलेज की राजनीति में रहे, एनएसयूआई में ही रहे. उसके बाद कांग्रेस को छोड़ते हुए भाजपा के बैनर तले जिला परिषद का चुनाव लड़ा और वहां से भाजपा की राजनीति में आए. वरिष्ठ पत्रकार जेपी दशोरा की मानें तो दोनों के बीच 1995 से ही राजनीतिक अदावत चल रही थी क्योंकि आक्या खुद भी भदेसर से आते है और एबीवीपी में सक्रिय थे. उस समय से ही दोनों के बीच मतभेद थे लेकिन जोशी के भाजपा में आने के बाद भी दूरियां कम नहीं हो पाई, क्योंकि आक्या उन्हें अवसरवादी मानते थे. जब आक्या भदेसर की राजनीति में उतरे तो तल्खी और भी बढ़ गई. हालांकि दोनों ने इसे सार्वजनिक मंच पर नहीं आने दिया.
2013 में ओर अधिक बढ़ गई थी तल्खी : कोऑपरेटिव बैंक के अध्यक्ष बनने के बाद आक्या ने भाजपा में सक्रियता बढ़ा दी और परिवर्तन यात्रा के दौरान 2013 में शक्ति प्रदर्शन के बूते चित्तौड़गढ़ विधानसभा से टिकट लाने में सफल रहे. टिकट मिलने के बाद जोशी का पारा गर्म हो गया और बगावत पर उतर गए लेकिन भविष्य उज्जवल होने की दुहाई देकर उन्हें उस समय शांत कर दिया गया. उसके बाद से ही दोनो के बीच अदावत और भी बढ़ गई, क्योंकि 2013 में जोशी ही विधायक टिकट के मुख्य दावेदार थे. हालांकि जोशी दो बार सांसद भी बन गए लेकिन दोनों के बीच अंदरुनी तल्खी कभी खत्म नहीं हुई. इस वर्ष जोशी के प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान संभालने के बाद खाई और भी चौड़ी हो गई. संभवत सालों की यह खींचतान आक्या का टिकट कटाने में अपना पार्ट प्ले कर गई.