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20 साल कारगिल : तीन आतंकवादियों को मारने के बाद शहीद हुए थे सीकर के मो. इकराम खान, मरणोपरांत मिला शौर्य चक्र

26 जुलाई को करगिल विजय दिवस के 20 साल पूरे हो जाएंगे. पाकिस्तान की ओर से करगिल में की गई घुसपैठ को देश के वीर सूरमाओं ने खदेड़ कर फिर से अपना अधिकार कर लिया था. करगिल में शहीद हुए जवानों में राजस्थान के भी कई लाल थे. उन्हीं की वीर गाथाओं से ईटीवी भारत आपको अपने खास सीरिज '20 साल कारगिल' में रूबरू करवाएगा.

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Published : Jul 22, 2019, 4:23 PM IST

तीन आतंकवादियों को मारने के बाद शहीद हुए थे सीकर के मो. इकराम खान

सीकर. जिले के रोल साहब सर गांव के शहीद मोहम्मद इकराम खान. कारगिल युद्ध की समाप्ति के बाद भी चल रहे ऑपरेशन के दौरान शहीद हुए थे. इकराम खान की वीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने शहीद होने से पहले 3 आतंकवादियों को मार गिराया था. उनकी बहादुरी की वजह से ही राष्ट्रपति ने मरणोपरांत उन्हें शौर्य चक्र प्रदान किया था. इकराम का परिवार देश भक्ति से ओत-प्रोत है और उनकी तीन पीढ़ियां फौज में है. उनके दादा और उसके बाद उनके पिता सेना में रहे और उनके भाई भी सेना में हैं. इकराम खान की शहादत के बाद भी उनकी प्रतिमा लगाने के लिए उनके परिवार को 18 साल संघर्ष करना पड़ा आज भी प्रतिमा लगी नहीं है लेकिन अब उसके लिए बजट स्वीकृत हो गया है.

कौन थे इकराम खान
इकराम खान 1996 सेना में भर्ती हुए थे और कारगिल युद्ध के दौरान सेना में रहकर देश की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी. 1999 में हालांकि युद्ध के विराम की घोषणा तो हो गई लेकिन कारगिल में सेना के ऑपरेशन जारी थे. जम्मू कश्मीर के राजौरी सेक्टर में पेट्रोलिंग पर निकले सेना के जवानों पर आतंकवादियों ने हमला किया था. सेना की टुकड़ी में इकराम खान भी शामिल थे. इकराम खान ने फायरिंग कर दो आतंकवादियों को मार गिराया और तीसरे को गोली मारी लेकिन उसकी गोली इकराम खान के भी लग गई. तीसरा आतंकवादी भी मारा गया लेकिन इकराम खान भी बच नहीं सके. उनकी वीरता को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से नवाजा गया.

तीन आतंकवादियों को मारने के बाद शहीद हुए थे सीकर के मो. इकराम खान

तीसरी पीढ़ी सेना में
शहीद मोहम्मद इकराम खान के तीन पीढ़ी सेना में रही है. उनके दादा करीम खान सेना में थे और उनके बाद उनके पिता मोहम्मद इकबाल खान सेना में रहे और कैप्टन के पद से रिटायर हुए. इकबाल खान ने अपने दोनों बड़े बेटे इकरार खान और इकराम खान को खुद की बटालियन में ही सेना में भर्ती करवाया. उनकी बटालियन में रहते हुए ही उनके बेटे इकराम खान शहीद हो गए और इकरार खान आज भी सेना में कार्यरत हैं. तुलसा सरगांव की इस परिवार की वीरता की चर्चा आज भी दूर-दूर तक है.

प्रतिमा के लिए करना पड़ा संघर्ष
इकराम खान की शहादत के बाद उनके परिवार को उनकी प्रतिमा लगाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. उनके पिता कैप्टन इकबाल खान ने सरकारी कार्यालयों के लगातार चक्कर लगाए. लेकिन सरकार ने प्रतिमा लगाने के लिए कोई बजट नहीं दिया आखिर में पिछले साल तत्कालीन विधायक नंदकिशोर महरिया ने शहीद मोहम्मद इकराम खान की प्रतिमा के लिए 3,00,000 रुपए की घोषणा की. विधायक कोटे से बजट तो मिल गया लेकिन अस्वस्थ होने के कारण इकबाल खान प्रतिमा का काम शुरू नहीं करवा पाए.

सेना के किस्से सुनाते नहीं थकते हैं इकबाल
इकबाल खान भले ही अस्वस्थ हैं लेकिन आज भी सेना के किस्से सुनाते हुए नहीं थकते हैं. उन्होंने बताया कि सेना में भर्ती होने के तुरंत बाद ही उन्होंने सोच लिया कि अपने बेटों को देश की सेवा लगाएंगे. उन्हें आर्मी स्कूल में शिक्षा दिलाई और बाद में वह भी फौज में भर्ती हो गए.

सीकर. जिले के रोल साहब सर गांव के शहीद मोहम्मद इकराम खान. कारगिल युद्ध की समाप्ति के बाद भी चल रहे ऑपरेशन के दौरान शहीद हुए थे. इकराम खान की वीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने शहीद होने से पहले 3 आतंकवादियों को मार गिराया था. उनकी बहादुरी की वजह से ही राष्ट्रपति ने मरणोपरांत उन्हें शौर्य चक्र प्रदान किया था. इकराम का परिवार देश भक्ति से ओत-प्रोत है और उनकी तीन पीढ़ियां फौज में है. उनके दादा और उसके बाद उनके पिता सेना में रहे और उनके भाई भी सेना में हैं. इकराम खान की शहादत के बाद भी उनकी प्रतिमा लगाने के लिए उनके परिवार को 18 साल संघर्ष करना पड़ा आज भी प्रतिमा लगी नहीं है लेकिन अब उसके लिए बजट स्वीकृत हो गया है.

कौन थे इकराम खान
इकराम खान 1996 सेना में भर्ती हुए थे और कारगिल युद्ध के दौरान सेना में रहकर देश की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी. 1999 में हालांकि युद्ध के विराम की घोषणा तो हो गई लेकिन कारगिल में सेना के ऑपरेशन जारी थे. जम्मू कश्मीर के राजौरी सेक्टर में पेट्रोलिंग पर निकले सेना के जवानों पर आतंकवादियों ने हमला किया था. सेना की टुकड़ी में इकराम खान भी शामिल थे. इकराम खान ने फायरिंग कर दो आतंकवादियों को मार गिराया और तीसरे को गोली मारी लेकिन उसकी गोली इकराम खान के भी लग गई. तीसरा आतंकवादी भी मारा गया लेकिन इकराम खान भी बच नहीं सके. उनकी वीरता को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से नवाजा गया.

तीन आतंकवादियों को मारने के बाद शहीद हुए थे सीकर के मो. इकराम खान

तीसरी पीढ़ी सेना में
शहीद मोहम्मद इकराम खान के तीन पीढ़ी सेना में रही है. उनके दादा करीम खान सेना में थे और उनके बाद उनके पिता मोहम्मद इकबाल खान सेना में रहे और कैप्टन के पद से रिटायर हुए. इकबाल खान ने अपने दोनों बड़े बेटे इकरार खान और इकराम खान को खुद की बटालियन में ही सेना में भर्ती करवाया. उनकी बटालियन में रहते हुए ही उनके बेटे इकराम खान शहीद हो गए और इकरार खान आज भी सेना में कार्यरत हैं. तुलसा सरगांव की इस परिवार की वीरता की चर्चा आज भी दूर-दूर तक है.

प्रतिमा के लिए करना पड़ा संघर्ष
इकराम खान की शहादत के बाद उनके परिवार को उनकी प्रतिमा लगाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. उनके पिता कैप्टन इकबाल खान ने सरकारी कार्यालयों के लगातार चक्कर लगाए. लेकिन सरकार ने प्रतिमा लगाने के लिए कोई बजट नहीं दिया आखिर में पिछले साल तत्कालीन विधायक नंदकिशोर महरिया ने शहीद मोहम्मद इकराम खान की प्रतिमा के लिए 3,00,000 रुपए की घोषणा की. विधायक कोटे से बजट तो मिल गया लेकिन अस्वस्थ होने के कारण इकबाल खान प्रतिमा का काम शुरू नहीं करवा पाए.

सेना के किस्से सुनाते नहीं थकते हैं इकबाल
इकबाल खान भले ही अस्वस्थ हैं लेकिन आज भी सेना के किस्से सुनाते हुए नहीं थकते हैं. उन्होंने बताया कि सेना में भर्ती होने के तुरंत बाद ही उन्होंने सोच लिया कि अपने बेटों को देश की सेवा लगाएंगे. उन्हें आर्मी स्कूल में शिक्षा दिलाई और बाद में वह भी फौज में भर्ती हो गए.

Intro:सीकर
सीकर जिले के रोल साहब सर गांव के शहीद मोहम्मद इकराम खान। कारगिल युद्ध की समाप्ति के बाद भी चल रहे ऑपरेशन के दौरान शहीद हुए थे। इकराम खान की वीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने शहीद होने से पहले 3 आतंकवादियों को मार गिराया था। उनकी बहादुरी की वजह से ही राष्ट्रपति ने मरणोपरांत उन्हें शौर्य चक्र प्रदान किया था। इकराम का परिवार देश भक्ति से औत प्रोत है और उनकी तीन पीढ़ियां फौज में है। उनके दादा और उसके बाद उनके पिता सेना में रहे और उनके भाई भी सेना में है। इकराम खान की शहादत के बाद भी उनकी प्रतिमा लगाने के लिए उनके परिवार को 18 साल संघर्ष करना पड़ा आज भी प्रतिमा लगी नहीं है लेकिन अब उसके लिए बजट स्वीकृत हो गया है।


Body:इकराम खान 1996 सेना में भर्ती हुए थे और कारगिल युद्ध के दौरान सेना में रहकर देश की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी। 1999 में हालांकि युद्ध के विराम की घोषणा तो हो गई लेकिन कारगिल में सेना के ऑपरेशन जारी थे। जम्मू कश्मीर के राजौरी सेक्टर में पेट्रोलिंग पर निकले सेना के जवानों पर आतंकवादियों ने हमला किया था। सेना की टुकड़ी में इकराम खान भी शामिल थे। इकराम खान ने फायरिंग कर दो आतंकवादियों को मार गिराया और तीसरे को गोली मारी लेकिन उसकी गोली इकराम खान के भी लग गई। तीसरा आतंकवादी भी मारा गया लेकिन इकराम खान भी बच नहीं सके। उनकी वीरता को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से नवाजा गया।

तीसरी पीढ़ी सेना में
शहीद मोहम्मद इकराम खान के तीसरी पीढ़ी सेना में रही है। उनके दादा करीम खान सेना में थे और उनके बाद उनके पिता मोहम्मद इकबाल खान सेना में रहे और कैप्टन के पद से रिटायर हुए। इकबाल खान ने अपने दोनों बड़े बेटे इकरार खान और इकराम खान को खुद की बटालियन में ही सेना में भर्ती करवाया। उनकी बटालियन में रहते हुए ही उनके बेटे इकराम खान शहीद हो गए और इकरार खान आज भी सेना में कार्यरत हैं। तुलसा सरगांव की इस परिवार की वीरता की चर्चा आज भी दूर-दूर तक है।

प्रतिमा के लिए करना पड़ा संघर्ष
इकराम खान की शहादत के बाद उनके परिवार को उनकी प्रतिमा लगाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। उनके पिता कैप्टन इकबाल खान ने सरकारी कार्यालयों के लगातार चक्कर लगाए। लेकिन सरकार ने प्रतिमा लगाने के लिए कोई बजट नहीं दिया आखिर में पिछले साल तत्कालीन विधायक नंदकिशोर महरिया ने शहीद मोहम्मद इकराम खान की प्रतिमा के लिए ₹300000 की घोषणा की। विधायक कोटे से बजट तो मिल गया लेकिन अस्वस्थ होने के कारण इकबाल खान प्रतिमा का काम शुरू नहीं करवा पाए।

सेना के किस्से सुनाते नहीं थकते हैं इकबाल
इकबाल खान भले ही अस्वस्थ हैं लेकिन आज भी सेना के किस्से सुनाते हुए नहीं थकते हैं। उन्होंने बताया कि सेना में भर्ती होने के तुरंत बाद ही उन्होंने सोच लिया कि अपने बेटों को देश की सेवा लगाएंगे। उन्हें आर्मी स्कूल में शिक्षा दिलाई और बाद में वह भी फौज में भर्ती हो गए।


Conclusion:बाईट
1 इकबाल खान शहीद के पिता
2 बलकेश शहीद की माता
3 आदिल खान, स्थानीय निवासी
4 पी टू सी
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