बूंदी. आज बूंदी जिला 779 साल का हो गया. बूंदी को 'परिंदों का स्वर्ग' भी कहा जाता है. छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध यह जिला अपनी प्राकृतिक धरोहरों के लिए जाना जाता है. यहां की संस्कृति, लोक परंपराएं और ऐतिहासिक धरोहर देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं. अरावली की पर्वत श्रृंखलाएं बूंदी को और भी मनोरम बनाती हैं.
26.70 प्रतिशत वन क्षेत्र से है घिरा...
जिले में घने जंगल हैं, जहां पशु और पक्षी स्वछंद विचरण करते हैं. यहां के जलाशयों में भ्रमण करते देशी-विदेशी परिंदे देखे जा सकते हैं. बूंदी जिले में रणथंभौर बाघ परियोजना, मुकुंदरा टाइगर रिजर्व, रामगढ़ विषधारी अभ्यारण, चंबल घड़ियाल अभ्यारण और जवाहर सागर अभ्यारण का भाग सम्मिलित है. जिले में वर्तमान में 1542.42 वर्ग किलोमीटर वन भूमि है, जो जिले के भौगोलिक क्षेत्रफल का 26.70 प्रतिशत है.
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इतिहासकारों के अनुसार 24 जून 1241 में हाड़ा वंश के राव देवा ने मीणा सरदारों से इस जिले को जीता था. कहा जाता है कि 'बूंदा मीणा' ने इस जिले की स्थापना की थी, इसलिए इसका नाम 'बूंदी' पड़ा. बूंदी की पूर्व रियासत पर 24 राजाओं का राज रहा. जिनके शासन काल में अलग-अलग निर्माण कराए गए. शहर का विस्तार किया गया. कुंड-बावड़ियां और छतरियों का निर्माण करवाया गया.
![बूंदी के प्रसिद्ध जलाशय, famous reservoir of Bundi, Rajasthan Tourism, history of bundi district](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/7746734__fsfw.png)
ये हैं आकर्षण का मुख्य केंद्र ...
हालांकि, बूंदी के इतिहास को लेकर इतिहासकारों की अलग-अलग मान्यताएं भी हैं. यहां के अद्भुत महल राजपूत वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है. इसमें बूंदी के कई भित्ति चित्र भी शामिल हैं. यहां का हजारी पोल, नौबत खाना, हाथी पोल, दीवाने ए आम, छत्र महल, बादल महल और फूल महल विशेष आकर्षण का केंद्र हैं.
विदेशी पक्षी करते हैं यहां की सैर...
जिले में कई जलाशय हैं. जिला मुख्यालय सहित 9 विभिन्न जलाशयों में सर्दी के आगमन के साथ ही देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं. इस दौरान इन जलाशयों में विचरते पक्षियों की चहचाहट से पूरा जिला गूंज उठाता है. जिले में मुख्य रूप से 9 बर्ड वाचिंग प्वाइंट है.
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इन जलाशयों के साथ ही चंबल नदी के जलभराव क्षेत्रों में बड़ी संख्या में पक्षियों को विचरण करते हुए देखा जा सकता है. इन जलाशयों में बार हेडेड गीज, कॉमन टील, पेलिकन, नार्दन पिनटेल, इंडियन स्कीमर, रिवर टर्न, पर्पल हेरोन, पोण्ड हेरोन, कोम्ब डक, पेंटेड स्टोर्क, वूली नेकेड स्टार्क, डार्टर कॉरमाण्ट, ग्रेटर स्पॉटेड ईगल, नॉर्दन शावलेवर, स्पॉट बिल डक के साथ ही और भी विभिन्न प्रजाति के एग्रेट्स भी दिखाई देते हैं. इसके अलावा स्थानीय पक्षियों में कबूतर, तोता, मोर पक्षी ,सारस क्रेन देखे जा सकते हैं.
उम्र बढ़ी, विकास की रफ्तार घटी...
प्राकृतिक भौगोलिक और सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्धि यह जिला खनिज संपदा का भंडार समेटे हुए है, लेकिन प्रशासनिक की अनदेखी के कारण छोटी काशी बूंदी शहर अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है. यह जिला विकास को आज भी तरस रहा है. राजा-रजवाड़े आए और चले गए, लेकिन बूंदी जिला जस का तस है.
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बूंदी की बावड़ियां, कुंड, तालाब, किले और महल पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान रखते हैं, लेकिन आज संरक्षण के अभाव में यह सब विरासत विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई हैं. बूंदी का दुर्भाग्य रहा है कि जितनी भी यहां विपुल संप्रदाय हैं, उतनी यहां बेकद्री और उपेक्षा हुई है. केवल प्रशासनिक स्तर पर नहीं बल्कि राजनीतिक स्तर पर भी इनकी उपेक्षा हुई है. बूंदी ने कई उतार-चढ़ाव देखे. वहीं, विकास की दौड़ में इसके नजदीकी शहर आगे बढ़ गए, लेकिन यह जिला जहां था वहीं ठहरा हुआ है.
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'बावड़ियों के शहर से गायब हुई बावड़ियां'...
छोटी काशी बूंदी को बावड़ियों का शहर भी कहा जाता है. यहां हर इलाके में एक ना एक बावड़ी देखने को जरूर मिलेगी. प्राचीन समय में इन बावड़ियों से लोग पानी पिया करते थे और अपनी प्यास बुझाते थे. लेकिन समय बदला, स्थितियां बदलीं तो यह बावड़ियां अब लुप्त होने की कगार पर पहुंच गई हैं.
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'रानी नाथावत की बावड़ी है संरक्षित'...
बताया जाता है कि किसी समय 50 से अधिक बावड़ियां बूंदी में हुआ करती थी. लेकिन अतिक्रमण के कारण सार संभाल नहीं होने के चलते अब यहां 20 बावड़ियां ही रह गई हैं. जिसमें से केवल रानीजी की बावड़ी बची है. जिसे रानी नाथावत की बावड़ी कहा जाता है. इन बावड़ियों में प्राकृतिक सौंदर्य और कलाकृतियां मौजूद हैं, जिनको देखकर पर्यटक खुद-ब-खुद खींचे चले आते हैं. अगर इन बावड़ियों की देखरेख कर ली जाए तो विरासत भी बच जाएगी और बूंदी में पानी की कमी भी नहीं रहेगी.
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'झीलें हो रही गंदगी का शिकार'...
शहर में नवल सागर झील और जैतसागर झील दो बड़ी झीलें हैं. नवल सागर झील बूंदी गढ़ पैलेस के सामने स्थित होने के कारण पूरे पर्यटन क्षेत्र की शोभा बढ़ाती है, लेकिन नवल सागर झील भी इन दिनों बदहाल सी हो गई है. आसपास के लोगों ने इस झील में गंदे नाले छोड़ दिए हैं, जिसके चलते झील का पानी मठमैला हो गया है. गंदा पानी होने की वजह से इस झील में मौजूद मछलियों की लगातार मौत भी हो रही हैं. बदबू आने से कई बार पर्यटक इस झील पर जाने की बजाय खुद मुंह मोड़ने लगे हैं.
इसी तरह शहर के सुख महल के पास स्थित जैतसागर झील जिसे जिले के बड़े तालाब के नाम से भी जाना जाता है. वर्तमान में इस झील को कमल के जड़ों ने जकड़ा हुआ है और पूरे पानी पर कमल की जड़े होने के कारण यह पानी पूरी तरह से खराब हो गया है. कई बार लोगों ने कमल जोड़ों को हटाने की मांग की ओर हटाने की कार्रवाई भी की गई, लेकिन समस्या जस की तस रही. वर्तमान में पूरे झील का पानी गंदा हो चुका है.
![बूंदी के प्रसिद्ध जलाशय, famous reservoir of Bundi, Rajasthan Tourism, history of bundi district](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/7746734__wefw.png)
'बिजली व्यवस्था चौपट'...
आसपास की बिजली की व्यवस्था भी पूरी तरह से चौपट हो चुकी है. जब भी यहां पर्यटक गुजरते हैं तो यहां की दुर्गंध को देखते हुए कई तरह के कमेंट करते हैं. बूंदी शहर के लोगों ने इन दोनों झील को भी सुधारने की मांग की है और कहा है कि जल्द से जल्द सरकार स्थापना दिवस को ध्यान में रखते हुए इन दोनों झील को बजट दिया जाए.
'रामगढ़ अभ्यारण्य में बाघ छोड़े जाने की मांग'...
रामगढ़ अभयारण्य बूंदी के आधे हिस्से में फैला हुआ है. यहां बड़ी संख्या में वन्य जीव पाए जाते हैं और बूंदी के रामगढ़ अभयारण्य को बाघ के लिए जच्चा घर कहा जाता है. यहां खुद-ब-खुद बाघ खिंचा चला जाता है. रामगढ़ अभयारण्य सवाई माधोपुर के रणथंबौर अभयारण्य से जुड़ा हुआ है और बिना मूवमेंट के ही बाघ यहां पर आ जाते हैं. यहां की व्यवस्थाएं पूरी हैं, अब केवल बाघ का इंतजार है.
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पिछले साल की बात की जाए तो यहां से t-91 बाघ को कोटा के मुकुंदरा हिल्स में छोड़ा गया था. जिसका भी विरोध जिले की जनता ने जताया था और कहा था कि बूंदी के हक को कोटा में छोड़ दिया गया. सरकार ने लोगों को आश्वासन दिया कि जल्द यहां बाघ छोड़ा जाएगा. वहीं, इसका प्रस्ताव भी है, लेकिन उम्मीदें कब पूरी होगी यह कह नहीं सकते. अगर रामगढ़ अभयारण्य में बाघ छोड़ा जाता है तो पर्यटन स्थल के साथ-साथ रामगढ़ अभयारण्य ने को भी चार चांद लगेंगे और इससे व्यवसाय जुड़ेंगे, तो बूंदी की भौगोलिक स्थिति भी सही हो जाएगी.
'विलुप्ती की कगार पर ऐतिहासिक धरोहर'...
यूं तो बूंदी में कई प्राकृतिक भौगोलिक संप्रदाय हैं. जिन्हें देश-विदेश के हजारों की तादाद में पर्यटक बूंदी आते हैं. जिनमें बूंदी की विश्व प्रसिद्ध चित्र शैली, नागर-सागर का कुंड, धाबाई का कुंड, रानीजी की बावड़ी, 84 खंभों की छतरी, नवल सागर झील, जैतसागर सागर झील,सुख महल, जिला संग्रहालय केंद्र, भीमलत महादेव, रामेश्वर महादेव, बूंदी गढ़ पैलेस ,केशव राय भगवान मंदिर, इंदरगढ़ बिजासन माता मंदिर, कमलेश्वर महादेव और बाबा मीरा साहब का मजार शामिल है. इनमें से कुछ जगह ऐसी हैं जो पूरी तरह से लुप्त होने की कगार पर है.
जिले के पुश्तैनी धंधे अब धीरे-धीरे दम तोड़ने लगे हैं, बचा है तो सिर्फ बूंदी का चावल. यहां की राइस मिलें यहां की अर्थव्यवस्था में 75 फीसदी योगदान देती हैं. बूंदी की ऐतिहासिक धरोहर धीरे-धीरे अंधेरे में जा रही है और उसकी चमक खत्म होते भी नजर आ रही है. बूंदी की सालगिरह है और सरकार को चाहिए कि वे ऐतिहासिक धरोहर और उद्योग धंधों पर ध्यान दें, ताकि बूंदी भी राजस्थान के अन्य जिलों की तरह तरक्की की राह लिख सके.