बूंदी. जिले के नैनवा उपखंड में सरकारी स्कूलों के हाल बदहाल होते नजर आ रहे है. लेकिन शिक्षा विभाग और सरकार स्कूलों की बदहाल हालत को देख कर भी अनदेखा कर रही है. ग्रामीणों का कहना है कि सरकार की ओर से जर्जर विद्यालयों को जमीदोज तो कर दिया गया, लेकिन उनको वापस बनाना वो भूल गए है.
पूरा मामला खेलमंत्री राज्यमंत्री अशोक चांदना के क्षेत्र नैनवां उपखंड के कालामाल गांव के सरकारी विद्यालय का है. जानकारी के अनुसार कालामाल गांव में साल 1977 में राजकीय प्राथमिक विद्यालय बना था, जो कि बाद में उच्च प्राथमिक विद्यालय में तब्दील हो गया और समय के साथ विद्यालय जर्जर हालत में पहुंच गया. जर्जर हालत के चलते शिक्षा विभाग ने स्कुल भवन को जर्जर घोषित कर ढहाने के आदेश जारी कर दिए है. लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों ने भवन को वापस बनाने के लिए अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है. जिसका खामियाजा विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों को भुगतना पड़ रहा है.
सर्दी, गर्मी और बरसात में बच्चे खुले में ही पढ़ने को है मजबूर-
ग्रामीणों ने बताया कि राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय के स्कूल भवन के जर्जर होने के कारण 8 महीने पहले प्रशासनिक अधिकारियों ने ढहा दिया था. जिसके बाद से बच्चे खुले में ही पढ़ाई कर रहे हैं. जो सर्दी, गर्मी और बरसात में भी खुले में ही पढ़ने को मजबूर हैं. लेकिन शिक्षा विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही से स्कूल भवन 8 महीनों में भी बनना तो दूर की बात है, अब तक उसके टेंडर तक पास नहीं हुए है. जिससे विद्यालय में बच्चों की संख्या लगातार घटती जा रही है.
समस्या से अवगत कराने के बाद भी नहीं मिल रहा समाधान-
ग्रामीणों का कहना है कि गर्मी में बच्चे धूप में बैठने से बीमार पड़ने लगे है. कई बच्चों ने तो स्कूल जाना भी बंद कर दिया है. वहीं बरसात में बच्चे कहां बैठ कर पढ़ाई करें, यहीं समस्या विद्यालय के शिक्षकों के सामने भी आ जाती है. वहीं सर्दी में भी खुले आसमान के तले बच्चे पढ़ाई करने को मजबूर है. ऐसे में ग्रामीणों ने राज्यमंत्री सहित प्रशासनिक अधिकारियों को कई बार इस समस्या से अवगत भी करवाया लेकिन अभी तक बच्चे खुले में ही पढ़ने के लिए जाते हैं.
पत्र पर नहीं हुई कोई कार्रवाई-
जब इस बारे में विद्यालय अध्यापक से बात की तो उन्होंने बताया कि स्कूल प्रबंधक की ओर से शिक्षा विभाग के जिला शिक्षा अधिकारी, जिला कलेक्टर और प्रशासनिक अधिकारियों को स्कूल भवन भूमि के लिए कई बार पत्र लिख चुके हैं. लेकिन आज तक उन पत्र पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है. वहीं ग्रामीणों ने बताया कि अगर यह स्कूल ऐसे ही खुलें मे चलता रहा तो 1 दिन कोई भी बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ने नहीं जायेगा.
सरकार शिक्षा के प्रति गंभीर है या नहीं-
जहां एक ओर सरकार शिक्षा को लेकर सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए कई योजनाएं चला रही है. वहीं दूसरी ओर सरकारी स्कूलों के लिए ना तो जगह आवंटित की गई है और ना ही नए भवन बनाये गए है. जिससे सरकारी स्कूलों के बच्चे सर्दी, गर्मी और बरसात में खुले में ही पढ़ने को मजबूर है. जिससे साफ तौर पर नजर आता है कि सरकार शिक्षा के प्रति कितनी गंभीर है.