बूंदी. कहा जाता है कि बूंदी की होली, ब्रज की होली के जैसी होती है या ये भी कह सकते हैं कि देश की दूसरी ब्रज की होली बूंदी में मनाई जाती है. यहां हर साल की भांति होली के पर्व पर फागोत्सव की धूम मचती है. पिछले 500 सालों से चली आ रही इस परंपरा को यहां के लोगों ने आज भी जिंदा रखा है. इस महोत्सव के दौरान शहर भर के लोग सुबह-सुबह चारभुजा नाथ मंदिर पहुंचते हैं और ठाकुर जी की आराधना कर वर्षों पुरानी परंपरा के तहत आयोजित फागोत्सव का हिस्सा बनते हैं.
पहले तो गिने-चुने मंदिरों में ही फागोत्सव का पर्व मनाया जाता था, लेकिन अब तो विभिन्न सामाजिक संगठन भी इन रंगों की मस्ती में डूबे नजर आते है, लेकिन बूंदी के चारभुजा नाथ मंदिर में होली की एक अलग ही छटा बिखरी हुई रहती है. शहर के तिलक चौक स्थित जन-जन के आराध्य चारभुजा नाथ मंदिर में चारभुजा मंदिर विकास समिति की ओर से यहां पर हर वर्ष फागोत्सव मनाया जाता है.
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बता दें कि यहां सुबह 6:00 बजे से भगवान चारभुजा नाथ के साथ श्रद्धालु रंग-बिरंगे फूलों और रंग से होली खेलते हैं. इस दौरान केसर युक्त दूग्ध का प्रसाद भी वितरित किया जाता है. वहीं, मंगला आरती में ठाकुर जी के पट्टे बंद हुए होते है तो इस दौरान भक्तजन फाग के गीत, भजन और आरती गाते हैं. जैसे ही ठाकुर जी के पट खुलते है तो मंदिर में ठाकुर जी के जमकर जयकारे लगते है और पट खुलते ही फागोत्सव की शुरुआत हो जाती हैं. इस दौरान ठाकुर जी को रंग अर्पित किया जाता हैं. इसके बाद पुजारी की ओर से सभी भक्तों को रंग भेंट किया जाता है.
चारभुजा नाथ मंदिर के पुजारी पंडित पूरण शर्मा ने बताया कि 10 दिन तक फागोत्सव में भक्तजन महाराज चारभुजा जी के साथ फूलों के गुलाल और रंगों से होली खेलते है. साथ ही यहां पर श्रद्धालुओं की ओर से फाग गीत गाए जाते हैं. वहीं, कार्यक्रम की समाप्ति के बाद महाप्रसादी का आयोजन किया जाता हैं. कहा जाता है कि यहां बंसत पंचमी से ही यहां चारभुजा नाथ जी को होली खिलाई जाने लगती है. साथ ही वस्त्र धारण कराकर नागर बेल पान के पत्तों की माला पहनाई जाती है, फिर केसर रंगों के छींटे डाले जाते हैं.
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रणथंबोर से लाई गई थी चारभुजा नाथ जी की मूर्ति
कहा जाता है कि यह देवालय हाड़ा नरेशो के पहले 1242 ईस्वी से पूर्व बना था. यह मंदिर पहले सारणेश्वर शिव मंदिर के नाम से जाना जाता था. इसके बाद संवत 1624 में चारभुजा जी की मूर्ति राव राजा सुरजन सिंह ने सवाई माधोपुर के रणथंबोर दुर्ग से यहां स्थापित करवाई. वहां शिव जी की पुरानी मूर्ति मंदिर के बाहर सभा मंडप में पधराई गई. ऐसी मान्यता है कि नरेश सुरजन को सपने में चारभुजा नाथ ने ही यहां स्थापित होने के आदेश दिए थे. यह मंदिर पूर्व मुखी हैं, पूर्व में यह क्षारणेश्वर भूतेश्वर महादेव मंदिर कहलाता था.