बूंदी. गांवा री सरकार में आज बात कर रहे हैं केशवरायपाटन विधानसभा के जयस्थल ग्राम पंचायत की. इस ग्राम पंचायत में कई मूलभूत सुविधाओं की कमी है और इसी कमी के चलते यहां पर ग्रामीणों का आक्रोश साफ तौर से देखा जा सकता है. बता दें कि केशवरायपाटन की यह ऐसी ग्राम पंचायत है जो सबसे बड़ी ग्राम पंचायत है. यहां पर किसी समय 12 हजार की जनसंख्या हुआ करती थी. लेकिन, मूलभूत सुविधाएओं का अभाव इतना कम रहा कि आज इस ग्राम पंचायत की जनसंख्या केवल 4300 ही रह गई है.
फिर भी सबसे अधिक किसी ग्राम पंचायत की जनसंख्या इस इलाके में है. इस इलाके में जब से पंचायत का निर्माण हुआ तब से लेकर अब तक 7 से अधिक सरपंच रह चुके हैं और उन सरपंचों की ओर से कई प्रकार के वादे किए, लेकिन आज तक वह वादे पूरे नहीं हो सके. जिसके चलते आमजन में काफी आक्रोश देखा जा सकता है. ईटीवी भारत ने इस गांव की हकीकत जानने के लिए तय किया कि आखिरकार गांव में क्या-क्या समस्या है. यहां पर हमें पहले कच्चे रास्ते से नदी तक जाना पड़ा. यहां से नदी पर नाव के सहारे पानी को पार कर हम जयस्थल ग्राम पंचायत में पहुंचे.
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बता दें कि यहां पर आते ही अच्छी रोड नजर आई. शुरुआत में लगा कि काफी अच्छी रोड होगी, लेकिन जैसे ही आगे बढ़े तो सड़क की दुर्दशा में भ्रष्टाचार की बू आती हुई नजर आई. आगे चले तो जयस्थल गांव का मुख्य चौराहा आया. जहां पर ग्रामीणों का हुजूम लगा हुआ था. पंचायत राज चुनाव चल रहे हैं तो कुछ प्रत्याशी प्रचार करते हुए नजर आए. यहां पर हमने ग्रामीणों से बात की तो ग्रामीणों ने ईटीवी भारत के कैमरे पर जितने भी सरपंच रहे उन सब पर आक्रोष जताना शुरू कर दिया और कई तरह के आरोप लगाना शुरू कर दिया.
ग्रामीणों ने हमें बताया कि इस ग्राम पंचायत में अस्पताल जो जर्जर अवस्था में है. उस अस्पताल को सही करवाया जाए और एक अच्छा अस्पताल उसे बनाकर वहां पर स्टाफ की कमी को दूर किया जाए. यही नहीं इतनी बड़ी जनसंख्या में यहां पर एक आपातकालीन एंबुलेंस नहीं है. एंबुलेंस की मांग को पूरी की जाए. साथ ही गांव के किसी भी सड़क पर शौचालय की व्यवस्था नहीं है. शौचालय की व्यवस्था को पूर्ण किया जाए. ग्रामीणों ने ईटीवी भारत को कहा कि एक ओर देश आगे बढ़ा है लेकिन इस ग्राम पंचायत में एक भी बैंक नहीं है, ना ही वहां एटीएम है तो हमारी सरपंच से यही मांगे कि यहां पर बैंक और एटीएम खुलवाया जाए.
सबसे बड़ी बात है कि रात के अंधेरे में यहां पर रोड लाइटें नहीं होने के चलते पूरे गांव की सड़कें अंधेरे में रहती है और अंधेरे में यह गांव कई सालों से डूबा हुआ है. वहीं ग्रामीणों ने कहा कि महिला सरपंच जब बनी तो महिला होने के नाते हम उससे ज्यादा बहस कर नहीं सके और अधिकतर समय उन्होंने अपने घर गृहस्थी के कार्य में लगा दिया और पूरे 5 साल पूरे हो गए. ऐसे में उन्होंने इस ग्राम पंचायत को विकास पथ पर लाने के लिए कोई कार्य नहीं किया.
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जयस्थल ग्राम पंचायत की बात करें तो जयस्थल ग्राम पंचायत में अब तक सात सरपंच हुए हैं. जिनमें से पिछली बार सरपंच बनी चंद्रकला जांगिड़ 161 मतों से जीती थी. यहां पर इस बार करीब 7 सरपंचों ने अपना दावा ठोका है तो 11 वार्ड पंचों की संख्या पर 24 दावेदारों ने अपना दावा ठोका है और पुरजोर से यहां पर प्रचार किया जा रहा है. जितने भी सरपंच यहां पर बनकर आए उन सरपंचों ने इन मूलभूत सुविधाओं के बारे में ग्रामीणों को अवगत करवाया और इन वादों को पूरा करने की बात कही लेकिन वह दावे खोखले साबित होते गए और विकास पथ पर बूंदी की जयस्थल ग्राम पंचायत उबर नहीं पाई.
इस जयस्थल ग्राम पंचायत की सबसे बड़ी मांग है नदी पर पुलिया बनाना. आजादी के 70 साल बाद भी इस जयस्थल ग्राम पंचायत को जोड़ने के लिए और मुख्यधारा में लाने के लिए पुलिया का निर्माण नहीं हो सका है. जिसके चलते आज भी ग्रामीण, बच्चे और इमरजेंसी के सारे कार्य ग्रामीण इसी टूटी हुई नाव के सहारे नदी को पार करके करते हैं और आया जाया करते हैं.
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हालात तो तब खराब हो जाते हैं जब यह नदी बारिश के दौरान उफान पर होती है. ऐसे में आवाजाही बाधित हो जाती है. आपको बता दें कि एक तरफ फोलाई गांव है तो दूसरी तरफ जयस्थल गांव है. यहां फोलाई से छात्र-छात्राएं जयस्थल गांव में जाकर पढ़ाई करते हैं. ऐसे में जब नदी उफान पर होती है तो उनका संपर्क गांव से टूट जाता है और वह स्कूल तक जा नहीं पाते. जिसके चलते उन्हें शिक्षा भी पूरी नहीं मिल पाती. उनका भविष्य खतरे में आ जाता है. यह समस्या आज कि नहीं काफी वर्षों की है. लेकिन आज तक शासन प्रशासन ने इस जयस्थल ग्राम पंचायत की सुध नहीं ली और दिनों दिन इस जयस्थल ग्राम पंचायत के हालात बुरे होते जा रहे हैं.
जयस्थल ग्राम पंचायत के तट पर प्रसिद्ध कोडया का बालाजी स्थान है. यहां पर आए दिन श्रद्धालुओं का जमावड़ा भी लगा रहता है. ऐसे में टूटी हुई नाव के सहारे श्रद्धालु इस रास्ते को आने जाने के उपयोग में लेते हैं लेकिन कई बार तो यहां पर नाव पलट जाने से भी हादसे सामने आ चुके हैं. लेकिन, सवाल है कि आज तक किसी ने भी इस पुलिया बनाने को लेकर ध्यान नहीं दिया और रोज जोखिम डालकर ग्रामीण इस नाव को पार कर रहे हैं. इन लोगों को वाहन से बूंदी आने के लिए पहले कोटा जाना पड़ता है और 80 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है जबकि पुलिया बन जाये तो 40 किलोमीटर का ही सफर तय करना पड़ेगा. लम्बी दूरी तय करने के चलते ग्रामीण बूंदी नहीं आकर कोटा ही चले जा जाते है. जिसे सारा रेवन्यु कोटा जा रहा है.
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राज्य सरकारे पंचायत राज चुनाव में कई वादे भी करती हैं और लाखों करोड़ों रुपए की योजना ग्रामीण इलाकों में लागू होने की बात भी करते हैं. लेकिन, हालात जस के तस इन इलाकों में बने रहते हैं. उन्हीं में से ही बूंदी का जयस्थल ग्राम पंचायत है जो विधानसभा क्षेत्र का सबसे बड़ा ग्राम पंचायत होने के बाद भी आज विकास पथ पर खरा नहीं उतर पाया है.
आज भी ग्रामीणों की कई समस्याएं हैं और उन समस्याओं का समाधान हो नहीं पाया है. जरूरत है कि इस जय स्थल ग्राम पंचायत को सुधारने की और विकास पथ पर लाने की वरना वह दिन जब दूर नहीं जब इस गांव की ग्राम पंचायत के लोग पलायन करने पर मजबूर हो जाएंगे और जय स्थल ग्राम पंचायत एक कस्बा भी नहीं रहेगा.