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बूंदी नगर परिषद में प्रशासक के तौर पर अधिशाषी अधिकारी ने संभाला चार्ज - rajasthan news

बूंदी नगर परिषद में राजसथान DLB ने प्रशासक के तौर पर आयुक्त अरुण शर्मा को नियुक्त किया है. जिसके बाद अब उनके सामने कई तरह की चुनौतियां खड़ी हुई है. क्योंकि नगर परिषद आर्थिक तंगी से गुजर रही है. साथ ही पिछले 5 सालों में 50 करोड़ से अधिक का कर्जा उनके सिर पर चढ़ा हुआ है.

राजस्थान न्यूज, bundi news
बूंदी नगर परिषद में प्रशासक के तौर पर आयुक्त अरुण शर्मा ने संभाला चार्ज
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Published : Aug 21, 2020, 10:58 PM IST

बूंदी. नगर परिषद बूंदी में प्रशासक के तौर पर राजस्थान डीएलबी की ओर से अधिशासी अधिकारी को नियुक्त किया गया है. इसी के तहत बने नगर परिषद में आयुक्त अरुण शर्मा ने प्रशासक का चार्ज संभाल लिया है, लेकिन उनके सामने चुनौतियां बहुत है. बूंदी नगर परिषद में पिछले 5 सालों में 50 करोड़ से अधिक का कर्जा उनके सिर पर चढ़ा हुआ है. ऐसे में ना तो परिषद के पास सैलरी चुकाने का पैसा है ना ही विकास करने का ऐसे में पूरे 5 सालों में बूंदी नगर परिषद का कार्यकाल घाटे का सौदा रहा है.

बूंदी नगर परिषद में प्रशासक के तौर पर आयुक्त अरुण शर्मा ने संभाला चार्ज

बूंदी नगर परिषद के सभापति के 5 साल पूरे हो चुके हैं. ऐसे में कोरोना वायरस के चलते इस बार चुनाव नहीं होने से राजस्थान डीएलबी ने सभी नगर पालिकाओं और नगर परिषदों में प्रशासक की नियुक्ति कर दी है और संबंधित आयुक्त को वहां का प्रशासक नियुक्त किया है.

बूंदी नगर परिषद में भी आयुक्त अरुण शर्मा ने प्रशासक के तौर पर अपना चार्ज संभाल लिया है, लेकिन इन 5 सालों में बूंदी नगर परिषद का कार्यकाल घाटे का सौदा रहा है, हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि बूंदी नगर परिषद में आज से 5 साल पहले 7 करोड़ पर कि अधिक की आय के साथ मुनाफे में थी, लेकिन जब नगर परिषद के सभापति का कार्यकाल खत्म हुआ तो बूंदी नगर परिषद अब 50 करोड़ घाटे के नीचे से गुजर रही है और आर्थिक तंगी से जूझ रही है.

पढ़ें- 129 नगरीय निकायों में लगाए गए प्रशासक, नया बोर्ड बनने तक संभालेंगे काम

सबसे बड़ी बात ये है कि इस नगर परिषद के कर्मचारियों को सैलरी तक भी नहीं मिल पा रही है. 5 माह से नगर परिषद के अधिकतर कर्मचारियों की सैलरी नहीं बन पाई है और आज भी सैलरी के लिए दर-दर कर्मचारी भटक रहे हैं. करीब 2 सालों से किसी भी ठेकेदारों का यहां पर भुगतान भी नहीं किया गया है उनका भी भुगतान अटका पड़ा है. इसी तरह छोटे-मोटे कार्यों को मिलाकर 20 से ₹25 करोड का भुगतान अटका हुआ है. कुल मिलाकर बूंदी नगर परिषद में करीब 50 करोड़ से अधिक आय का कर्जा माथे चढ़ चुका है और बूंदी नगर परिषद के पास इनकम सोर्स नहीं बचे हैं जिससे वो अपनी आय का सोर्स बढ़ा सके.

प्रशासक के तौर पर नियुक्त हुए आयुक्त अरुण शर्मा का कहना है कि बूंदी नगर परिषद में सैलरी की कमी चल रही है. यहां पर 5 माह से किसी भी कर्मचारी को सैलरी नहीं मिली है और चरण बनाकर कर्मचारियों को जैसे-जैसे पैसा आता जाता है. वैसे उन्हें आधी अधूरी सैलरी दी जाती है, लेकिन संपूर्ण सैलरी नहीं मिल पा रही है. इसी के साथ कुछ ठेकेदारों के भी पैसे बकाया हैं. यहां तक कि विद्युत विभाग के बिजली के बकाया बिल की कीमत भी ₹15 करोड़ हैं जो भी चुकता नहीं हो पाया है आधे पैसे जमा कराकर हम बिजली का बिल भुगतान कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि नगर परिषद की माली हालत खस्ताहाल हो चली है. ऐसे में हमारे पास इनकम सोर्स पूरी तरह से खत्म हो गए हैं और मेरे प्रशासक के तौर पर कोशिश करूंगा कि मैं नगर परिषद में इनकम सोर्स लगाकर यहां की आर्थिक स्थिति को सही कर पाऊं, साथ में कुछ ऐसी योजना लाई जाएगी ताकि शहर में नगर परिषद को आए मिल सके.

उधर वरिष्ठ पार्षद टीकम चंद जैन का कहना है कि 15 साल के कार्यकाल में ये 5 साल बड़े ही बदहाली के दौर से गुजरे हैं. पूर्व के तत्कालीन सभापति सदाकत अली ने भी काफी कोशिश कर बूंदी नगर परिषद को घाटे से उबरा था और सभी कर्मचारियों के पैसे उन्होंने दिए थे. साथ में उनके अंतिम कार्यकाल तक उन्होंने ₹7 करोड़ तक की एफडी बैंक में जमा करा दी थी, लेकिन इस कार्यकाल में वो 7 करोड़ की एफडी भी नगर परिषद ने तोड़ ली और आज उल्टा ₹50 करोड़ की देनदारी हमारी बाकी है. यहां पर इनकम में सोर्स भी थे लेकिन उनका यूटिलाइजेशन सही से नहीं हो पाया यही कारण रहा कि आज नगर परिषद घाटे में है.

भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे सभापति को डीएलबी ने किया था निलंबित

अपने कार्यकाल में कई मुद्दों पर विवादित रहने वाले नगर परिषद के तत्कालीन सभापति महावीर मोदी को एक हफ्ते पूर्व डीएलबी की ओर से निलंबित कर दिया गया था. ऐसे में वो बीजेपी पार्टी से आते थे. जहां पर उपसभापति हिना अगवान को 3 दिन के लिए सभापति बनने का मौका मिला तो उन्होंने भी सफाई व्यवस्था और कर्मचारियों की सैलरी व्यवस्था को सही करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, चुनौतियां उनके पास बहुत सारी थी, लेकिन समय कम था.

पढ़ें- निर्वाचन विभाग के सभी जिला अधिकारियों को निर्देश, मांगी कोरोना स्थिति की साप्ताहिक रिपोर्ट

सभापति महावीर मोदी के ऊपर शहर के कई वार्ड पार्षदों ने और आम लोगों ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे और उसी की शिकायत डीएलबी को गई थी. यही कारण रहा कि जिला कलेक्टर ने इस मामले की जांच की तो सभापति महावीर मोदी को कई मामलों में संदिग्ध पाया गया जिसके चलते डीएलबी ने उन्हें निलंबित कर दिया.

बूंदी नगर परिषद में करोड़ों रुपए की सैलरी कर्मचारियों की बकाया है. इसी तरह ठेकेदारों की विकास कार्यों की विद्युत बिल की सहित दर्जन भर ऐसे कारण हैं जिनके करोड़ों रुपए नगर परिषद को दिए जाने हैं, लेकिन नगर परिषद के पास इनकम सोर्स नहीं है जिसके चलते लगातार बूंदी नगर परिषद में घाटे होते चले जा रहे हैं.

बूंदी. नगर परिषद बूंदी में प्रशासक के तौर पर राजस्थान डीएलबी की ओर से अधिशासी अधिकारी को नियुक्त किया गया है. इसी के तहत बने नगर परिषद में आयुक्त अरुण शर्मा ने प्रशासक का चार्ज संभाल लिया है, लेकिन उनके सामने चुनौतियां बहुत है. बूंदी नगर परिषद में पिछले 5 सालों में 50 करोड़ से अधिक का कर्जा उनके सिर पर चढ़ा हुआ है. ऐसे में ना तो परिषद के पास सैलरी चुकाने का पैसा है ना ही विकास करने का ऐसे में पूरे 5 सालों में बूंदी नगर परिषद का कार्यकाल घाटे का सौदा रहा है.

बूंदी नगर परिषद में प्रशासक के तौर पर आयुक्त अरुण शर्मा ने संभाला चार्ज

बूंदी नगर परिषद के सभापति के 5 साल पूरे हो चुके हैं. ऐसे में कोरोना वायरस के चलते इस बार चुनाव नहीं होने से राजस्थान डीएलबी ने सभी नगर पालिकाओं और नगर परिषदों में प्रशासक की नियुक्ति कर दी है और संबंधित आयुक्त को वहां का प्रशासक नियुक्त किया है.

बूंदी नगर परिषद में भी आयुक्त अरुण शर्मा ने प्रशासक के तौर पर अपना चार्ज संभाल लिया है, लेकिन इन 5 सालों में बूंदी नगर परिषद का कार्यकाल घाटे का सौदा रहा है, हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि बूंदी नगर परिषद में आज से 5 साल पहले 7 करोड़ पर कि अधिक की आय के साथ मुनाफे में थी, लेकिन जब नगर परिषद के सभापति का कार्यकाल खत्म हुआ तो बूंदी नगर परिषद अब 50 करोड़ घाटे के नीचे से गुजर रही है और आर्थिक तंगी से जूझ रही है.

पढ़ें- 129 नगरीय निकायों में लगाए गए प्रशासक, नया बोर्ड बनने तक संभालेंगे काम

सबसे बड़ी बात ये है कि इस नगर परिषद के कर्मचारियों को सैलरी तक भी नहीं मिल पा रही है. 5 माह से नगर परिषद के अधिकतर कर्मचारियों की सैलरी नहीं बन पाई है और आज भी सैलरी के लिए दर-दर कर्मचारी भटक रहे हैं. करीब 2 सालों से किसी भी ठेकेदारों का यहां पर भुगतान भी नहीं किया गया है उनका भी भुगतान अटका पड़ा है. इसी तरह छोटे-मोटे कार्यों को मिलाकर 20 से ₹25 करोड का भुगतान अटका हुआ है. कुल मिलाकर बूंदी नगर परिषद में करीब 50 करोड़ से अधिक आय का कर्जा माथे चढ़ चुका है और बूंदी नगर परिषद के पास इनकम सोर्स नहीं बचे हैं जिससे वो अपनी आय का सोर्स बढ़ा सके.

प्रशासक के तौर पर नियुक्त हुए आयुक्त अरुण शर्मा का कहना है कि बूंदी नगर परिषद में सैलरी की कमी चल रही है. यहां पर 5 माह से किसी भी कर्मचारी को सैलरी नहीं मिली है और चरण बनाकर कर्मचारियों को जैसे-जैसे पैसा आता जाता है. वैसे उन्हें आधी अधूरी सैलरी दी जाती है, लेकिन संपूर्ण सैलरी नहीं मिल पा रही है. इसी के साथ कुछ ठेकेदारों के भी पैसे बकाया हैं. यहां तक कि विद्युत विभाग के बिजली के बकाया बिल की कीमत भी ₹15 करोड़ हैं जो भी चुकता नहीं हो पाया है आधे पैसे जमा कराकर हम बिजली का बिल भुगतान कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि नगर परिषद की माली हालत खस्ताहाल हो चली है. ऐसे में हमारे पास इनकम सोर्स पूरी तरह से खत्म हो गए हैं और मेरे प्रशासक के तौर पर कोशिश करूंगा कि मैं नगर परिषद में इनकम सोर्स लगाकर यहां की आर्थिक स्थिति को सही कर पाऊं, साथ में कुछ ऐसी योजना लाई जाएगी ताकि शहर में नगर परिषद को आए मिल सके.

उधर वरिष्ठ पार्षद टीकम चंद जैन का कहना है कि 15 साल के कार्यकाल में ये 5 साल बड़े ही बदहाली के दौर से गुजरे हैं. पूर्व के तत्कालीन सभापति सदाकत अली ने भी काफी कोशिश कर बूंदी नगर परिषद को घाटे से उबरा था और सभी कर्मचारियों के पैसे उन्होंने दिए थे. साथ में उनके अंतिम कार्यकाल तक उन्होंने ₹7 करोड़ तक की एफडी बैंक में जमा करा दी थी, लेकिन इस कार्यकाल में वो 7 करोड़ की एफडी भी नगर परिषद ने तोड़ ली और आज उल्टा ₹50 करोड़ की देनदारी हमारी बाकी है. यहां पर इनकम में सोर्स भी थे लेकिन उनका यूटिलाइजेशन सही से नहीं हो पाया यही कारण रहा कि आज नगर परिषद घाटे में है.

भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे सभापति को डीएलबी ने किया था निलंबित

अपने कार्यकाल में कई मुद्दों पर विवादित रहने वाले नगर परिषद के तत्कालीन सभापति महावीर मोदी को एक हफ्ते पूर्व डीएलबी की ओर से निलंबित कर दिया गया था. ऐसे में वो बीजेपी पार्टी से आते थे. जहां पर उपसभापति हिना अगवान को 3 दिन के लिए सभापति बनने का मौका मिला तो उन्होंने भी सफाई व्यवस्था और कर्मचारियों की सैलरी व्यवस्था को सही करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, चुनौतियां उनके पास बहुत सारी थी, लेकिन समय कम था.

पढ़ें- निर्वाचन विभाग के सभी जिला अधिकारियों को निर्देश, मांगी कोरोना स्थिति की साप्ताहिक रिपोर्ट

सभापति महावीर मोदी के ऊपर शहर के कई वार्ड पार्षदों ने और आम लोगों ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे और उसी की शिकायत डीएलबी को गई थी. यही कारण रहा कि जिला कलेक्टर ने इस मामले की जांच की तो सभापति महावीर मोदी को कई मामलों में संदिग्ध पाया गया जिसके चलते डीएलबी ने उन्हें निलंबित कर दिया.

बूंदी नगर परिषद में करोड़ों रुपए की सैलरी कर्मचारियों की बकाया है. इसी तरह ठेकेदारों की विकास कार्यों की विद्युत बिल की सहित दर्जन भर ऐसे कारण हैं जिनके करोड़ों रुपए नगर परिषद को दिए जाने हैं, लेकिन नगर परिषद के पास इनकम सोर्स नहीं है जिसके चलते लगातार बूंदी नगर परिषद में घाटे होते चले जा रहे हैं.

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