बूंदी. हाथियों का दंगल, राग रागिनी, रास लीलाएं , युद्ध के लिए जाते घोड़े राजदरबार सहित कई विषयों के चित्रों के लिए बूंदी शैली की अपनी पहचान है. इन चित्रों में प्राचीन समय के चित्रकारों की बारीकियों ने ही बूंदी चित्र शैली को ऊंचाई पर पहुंचाया लेकिन आज यही अपना स्वरूप खोती जा रही है. वर्तमान में बूंदी चित्र शैली में सिर्फ दुकान तक ही सीमित रह गई है. बूंदी में वर्तमान में एक भी प्राचीन समय की मूल पेंटिंग नहीं बची है. यहां की बूंदी चित्र शैली की सभी मूल पेंटिंग दूसरी जगह पर चली गई है. बूंदी के प्राचीन दरवाजों पर भी आज भी बूंदी शैली की पेंटिंग दिखाई देती है. पूरे जिले में आज बूंदी शैली के कुछ ही कलाकार बचे हैं जो बड़े संघर्ष के साथ चित्र को जिंदा रखे हुए हैं.
चार कलाकार बूंदी की चित्र शैली को जिंदा रखे हुए हैं. इनमें सबसे पहला नाम आता है गोपाल सोनी का. गोपाल सोनी ने अपना पूरा जीवन ही बूंदी चित्र शैली को समर्पित कर दिया लेकिन दुख की बात है कि आज तक सरकार की ओर से उनको ना कोई मदद ना ही सम्मान नहीं मिला.
बूंदी चित्र शैली से जुड़े एक और युवा कलाकार हैं युग प्रसाद व इन्होंने ने भी बूंदी चित्र शैली को अपना करियर और व्यवसाय बनाया हुआ है युग प्रसाद विदेशी पर्यटकों को बूंदी चित्र शैली की पेंटिंग बनाना सिखाते हैं विदेशी पर्यटकों को बूंदी चित्र शैली की पेंटिंग बहुत पसंद आती है । प्रसाद ने बूंदी शैली को जुड़े अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि बूंदी शैली प्राचीन शैली है और इसकी के कद्र भारतीय भले ही ना करें लेकिन विदेशी इस शैली को बहुत पसंद करते हैं. बूंदी के राजा रानियों एवं से जुड़े सुंदर शैली प्रसाद बनाते हैं.
वहीं बूंदी की चित्र शैली को विदेशी पर्यटक खूब पसंद करते हैं. यहां की कला और पेंटिंग पर्यटकों का मन मोहती है. फ्रांस से आए एक पर्यटक ने बूंदी की चित्र शैली को खूब सराहा. वहीं पर्यटन अधिकारी प्रेम शंकर का कहना है कि कई बार हमने सरकार को भूमि चित्र शैली के लिए उसके सहेजने के लिए प्रस्ताव बनाकर भेजे लेकिन राज्य सरकार ने अभी तक भी हमें कोई स्वीकृति नहीं दी है. इस बार भी फिर मांग उठी है तो हम फिर प्रस्ताव बना कर सरकार को भेजेंगे.